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बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने के लिए रावल के नहीं आ पाए तो किसी ब्रह्मचारी सरोला ब्राह्मण से पूजा  कराने का है एक विकल्प 

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देहरादून। बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने के लिए रावल के नहीं आ पाए तो किसी ब्रह्मचारी सरोला ब्राह्मण से पूजा कराने का एक विकल्प है। इस  व्यवस्था का जिक्र बाकायदा श्रीबदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के एक्ट में है। 30 अप्रैल को बदरीनाथ के कपाट खुलने हैं। सरकार का पूरा प्रयास है कि बदरीनाथ मंदिर के रावल ईश्वरी प्रसाद नम्बूदरी कपाट खुलने से पहले पहुंच जाएं। अगर वे नहीं पहुंच पाए तो फिर क्या होगा? 1939 के बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर एक्ट में वैकल्पित ब्यवस्था का उल्लेख है। मंदिर समिति के पूर्व मुख्य कार्याधिकारी जगत सिंह बिष्ट ने बताया कि एक्ट 1939 के रावल चेप्टर में लिखा है कि विशेष परिस्थिति में बदरीनाथ धाम में रावल उपलब्ध न रहने पर कोई सरोला ब्रह्मचारी ब्राह्मण वैकल्पिक तौर पर पूजा अर्चना कर सकता है।

1776 में भी आई थी ऐसी स्थिति

विक्रम संवत 1833 (सन 1776) में तत्कालीन रावल रामकृष्ण स्वामी का बदरीनाध धाम में आकस्मिक निधन हो गया था। तब गढ़वाल नरेश प्रदीप शाह ने डिमरी जाति के पंडित गोपाल डिमरी को पूजा के लिए नियुक्त किया। श्रीबदरीनाथ धाम पुष्प वाटिका पुस्तक में पंडित अम्बिका दत्त डिमरी ने भी इसका उल्लेख किया है।

केदारनाथ के रावल के पहुंचने की आस

केदारनाथ धाम के रावल 1008 भीमा शंकर लिंग के 29 अप्रैल को कपाट खुलने से पूर्व ऊखीमठ पहुंचने की उम्मीद बढ़ गई है। रावल ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार ने अनुमति दे दी है।

केदारनाथ धाम के रावल अभी महाराष्ट्र के नांदेड और श्री बदरीनाथ धाम के रावल केरल में हैं। ऐसे में केंद्र से चार्टेड प्लेन या सड़क मार्ग से लाने की विशेष मंजूरी मांगी गई है। श्री बदरीनाथ धाम की पूजा अर्चना को टिहरी के राजा की ओर से दूसरे विकल्प तय करने की भी व्यवस्था है। उसका भी अध्ययन हो रहा है।

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