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पति के खिलाफ चुनावी रण में पत्नियां

cartoon neta ji पति के खिलाफ चुनावी रण में पत्नियां

नई दिल्ली। सूबे में सियासी पारा गरम है । रैलियों सभाओं के साथ नामांकन का दौर चल रहा है। इस बार विधान सभा चुनाव में कुछ खास ही नजारा देखने को मिलने वाला है। हमने सूबे में राजनीति के गलियारों में चाचा-भतीजे का विवाद देखा, पिता-पुत्र की रार देखी लेकिन अब सबसे मजेदार तकरार पति और पत्नी की देखने को मिल सकती है। जी हां इस बार चुनावी जंग में पत्तियों के खिलाफ उनकी पत्नियां ही ताल-ठोंक रही हैं।

cartoon neta ji पति के खिलाफ चुनावी रण में पत्नियां

यूपी किसी सियासत में पति बनाम पत्नी
सूबे में कई विधान सभा सीटों पर नामांकन का दौरो चल रहा है। ताजा मामला एटा जिले से जुड़ा है जहां दो विधान सभा सीटों पर तीन प्रत्याशियों की पत्नियों ने अपने पतियों के खिलाफ ही मोर्चा खो दिया है। सूबे में कई जगह पति के खिलाफ पत्नियां खड़ी नजर आ रही हैं। जिसके बाद मामला बड़ा ही रोचक और पेचीदा बन गया है। सूबे के एटा जिले की दो विधान सभा जिसमें बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे गजेंद्र सिंह चौहान के खिलाफ उनकी ही पत्नी कमलेश चौहान ने मोर्चा निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर खोला है। दूसरा सपा प्रत्याशी जुगेंद्र सिंह यादव के खिलाफ भी इसी एटा सदर सीट से उनकी पत्नी रेखा यादव भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोंक रही हैं। तो वही अलीगंज विधानसभा सीट सपा के प्रत्याशी और मौजूदा विधायक रामेश्वर सिंह यादव के खिलाफ उनकी पत्नी राममूर्ति ने दावा ठोंका है। जिसके बाद एक बार फिर पति को खिलाफ पत्नियों के नामांकन की खबरों ने बाजार में एक रोचकता बढ़ा दी है। लेकिन पति के खिलाफ पत्नियों की ये बगावत नहीं बल्कि पतियों की एक सोची समझी चाल भी है।

राजनीति के विशेषज्ञों की राय
पति के खिलाफ नामांकन को राजनीति के विशेषज्ञ एक सोची समझी चालकी भरी चाल मान रहे हैं। हांलाकि इन पत्नियों का दावा है कि पर्चा भरा है तो चुनाव भी लड़ेंगी। लेकिन राजनीति के महारथियों का कहना है कि कानूनी मुद्दों और चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के मद्देनजर कई बार किसी तकनीकि पेंच में अगर नामांकन रद्द हो जाये तो चुनावी रण पत्नियों के सहारे ही लड़ा जाये इसके साथ ही चुनाव में आने वाले खर्च को भी वो कुछ हद तक पत्नियों के खाते में डाल सकते हैं। इसके अलावा कई अन्य बारीकियां हैं जिसका फायदा उठाने के लिए पत्नियों का नामांकन कराया गया है।

नेता निकाल रहे है खर्च से निपटने का समीकरण
इसके अलावा नेताओं के की रिश्तेदार और सम्बन्धी भी चुनाव में अपनों के खिलाफ मैदान में खड़े हैं। जिनका सीधा-सीधा लाभ मौजूदा प्रत्याशियों को मिल रहा है। क्योंकि इन निर्दलीय प्रत्याशियों के सहारे कई प्रत्याशी वाहनों का परमीशन चुनावी खर्च और कई सारे गुणा-गणित का ताल मेल कर लेते हैं। क्योंकि चुनाव आयोग की बंदिशों में चुनावी रण में उतरना इनके बूते के बाहर की बात होती है।

अजस्रपीयूष

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