विश्व प्रसिद्ध महाभारत पूरे 18 दिनों तक चली थी। जिसमें लाखों योद्धाओं ने अपनी जानें गवायीं थीं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है।
महाभारत में भाग लेने वालों योद्धाओं और वीरों का भोजन कौन और कैसे बनाता था?
क्योंकि रोज हजारों की संख्या में लोग मारे जाते थे। ऐसे में खाने को किस हिसाब से बनाया जाता था। इसको लेकर काफी सवाल उठते हैं।
अगर आपके मन में ऐसा कभी विचार नहीं आया है तो आज हम आपको महाभारत में भोजन बनाने वाले लोंगो के बारे में बताने जा रहे हैं।
यकीन जानिए इसके पीछे का रहस्य जावकर आप भी हैरान हो जाएंगे कि, ऐसा कैसे संभव हुआ..
आपको बता दें, महाभारत के युद्ध में करीब 50 लाख से ज्यादा लोगों ने भाग लिया था।
महाभारत को हम सही मायने में विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध कह सकते हैं। क्योंकि उस समय शायद ही कोई ऐसा राज्य था जिसने इस युद्ध में भाग ना लिया हो।
उस समय भारतवर्ष के समस्त राजा या तो कौरव अथवा पांडव के पक्ष में खड़े दिख रहे थे। हम सभी जानते हैं की श्री बलराम और रुक्मी ये दो ही व्यक्ति ऐसे थे जिन्होंने इस युद्ध में भाग नहीं लिया। किन्तु एक और राज्य ऐसा था जो युद्ध क्षेत्र में होते हुए भी युद्ध से विरक्त था। और वो था दक्षिण का राज्य “उडुपी”।
उडुपी के राजा ने एक अच्छा निर्णय भी लिया। कहा जाता है कि, उन्होंने श्रीकृष्ण के पास जाकर उनसे कहा कि इस युद्ध में लाखों योद्धा शामिल होंगे और युद्ध करेंगे लेकिन इनके लिए भोजन का प्रबंध कैसे होगा?
बिना भोजन के तो कोई योद्धा लड़ ही नहीं पाएगा। मैं चाहता हूं कि दोनों पक्षों के सैनिकों के लिए भोजन का प्रबंध मैं करूं। श्रीकृष्ण ने उडुपी के राजा को इसकी अनुमति दे दी।
लेकिन राजा के समक्ष यह सवाल था कि प्रतिदिन में भोजन किस हिसाब से बनवाऊं? खाना कम या ज्यादा तो नहीं होगा? उनकी इस चिंता का हल श्रीकृष्ण ने निकाल लिया था।
पहले दिन उन्होंने सभी योद्धाओं के लिए भोजन का प्रबंध किया। उनकी कुशलता ऐसी थी कि दिन के अंत तक एक दाना अन्न का भी बर्बाद नहीं होता था।
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जैसे-जैसे दिन बीतते गए योद्धाओं की संख्या भी कम होती गयी। दोनों ओर के योद्धा यह देख कर हैरान हो जाते थे कि दिन के अंत तक उडुपी नरेश केवल उतने ही लोगों का भोजन बनवाते थे जितने वास्तव में युद्ध के बाद जीवित होते थे।
किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उन्हें ये कैसे पता चल जाता है कि आज कितने योद्धाओं की मृत्यु होगी।
इतने विशाल सेना के भोजन का प्रबंध करना अपने आप में ही एक आश्चर्य था और उसपर भी इस प्रकार कि अन्न का एक दाना भी बर्बाद ना हो, ये तो किसी चमत्कार से कम नहीं था।
इसका रहस्य उस दिन खुला जब महाभारत को पांडवों ने जीत लिया और जीत के बाद बैछकर बातें करने लगे।
इस बीच युधिष्ठिर ने उडुपी नरेश से पूछा कि वो खाने कैसे बनाते थे। इसके पीछे का रहस्य क्या है?
इसपर उडुपी नरेश ने कहा सम्राट ! आपने जो इस युद्ध में विजय पायी है उसका श्रेय किसे देंगे ?इसपर युधिष्ठिर ने कहा श्रीकृष्ण के अतिरिक्त इसका श्रेय और किसे जा सकता है ? अगर वे ना होते तो कौरव सेना को परास्त करना असंभव था।
तब उडुपी नरेश ने कहा महाराज ! अगर श्री कृष्ण न होते तो इतने लोगों को खाना नहीं बन पाता।
तब उडुपी नरेश ने इस रहस्य पर से पर्दा उठाया और कहा महाराज! श्रीकृष्ण प्रतिदिन रात्रि में मूँगफली खाते थे।मैं प्रतिदिन उनके शिविर में गिन कर मूँगफली रखता था और उनके खाने के पश्चात गिन कर देखता था
, कि उन्होंने कितनी मूंगफली खायी है।वे जितनी मूँगफली खाते थे उससे ठीक 1000 गुणा सैनिक अगले दिन युद्ध में मारे जाते थे। और मैं इसी हिसाब से खाना बनवाता था।
जैसे ही ये बात लोगों ने सुनी वो चकित रह गये और सोचने लगे श्रीकृष्ण न होते तो न तो पांडव जीत पाते और न ही भोजन की व्यवस्था हो पाती।
आपको बता दें भोजन को लेकर एक बात ये भी कही जाती है कि, युद्ध के बाद श्री कृष्ण जितना भोजन करते थे युद्ध में उतने ही लोग मारे जाते थे।