लखनऊ: महादेव की आराधना करने के कई तरीके हैं, जिनमें रुद्राभिषेक और जलाभिषेक भी शामिल है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भक्त कई तरह से पूजा अर्चना करते हैं। आचार्य राजेंद्र तिवारी जी से बातचीत के दौरान रुद्राभिषेक और जलाभिषेक के बीच का अंतर पता चला। महाशिवरात्रि में इस बार भक्त पूरी तैयारी के साथ पूजन-अर्चन करेंगे।
पंच अमृत से अभिषेक ही है रुद्राभिषेक
आचार्य जी ने बताया कि रुद्र का अर्थ होता है भगवान शिव। जब भगवान शंकर पर भक्ति और भाव से केवल जल अर्पण किया जाता है तो इसे जलाभिषेक कहते हैं। वहीं रुद्राभिषेक में विधिवत तरीके से पंच अमृत के द्वारा महादेव को स्नान करवाया जाता है। ये पांच अमृत दूध, दही, घी, शहद और बूरा हैं। इन्हीं पांच अमृतों से अलग-अलग तरीके से अभिषेक किया जाता है। स्नान के बाद ब्राह्मणों के द्वारा वेद-मंत्रों के साथ जल से अभिषेक करवाया जाता है, तब इसे रुद्राभिषेक कहा जाता है।
महादेव को जल है प्रिय
आचार्य जी ने बताया कि भगवान शंकर को जल काफी प्रिय है। भगवान शंकर को श्रृंगी या लोटे से जल अर्पण किया जाता है। महादेव केवल जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं। भाव, भक्ति और समर्पण ही भोलेनाथ को प्रसन्न करने का एकमात्र रास्ता है। इसके विषय में शास्त्रों में भी बताया गया है, भगवान शंकर को प्रसन्न करना काफी आसान होता है। भगवान सिर्फ भाव के ही भूखे होते हैं, सच्चे मन से किया गया स्मरण बड़े-बड़े तप से बढ़कर होता है।
क्या है 108 माला का रहस्य
पूजा पाठ में 108 दानों की माला का इस्तेमाल होता है, माला रुद्राक्ष या चंदन की बनी होनी चाहिए। इसी माला से अलग-अलग मंत्रों का उच्चारण करते हुए ईश्वर की आराधना करते हैं। शास्त्रों के अनुसार अश्वनी से लेकर रेवती तक कुल 27 नक्षत्र होते हैं और एक नक्षत्र के कुल 4 चरण होते हैं।
इन्हीं के गुणनफल से 108 की संख्या मिलती है, यह मनुष्य के पल-पल का हिसाब होता है। इस तरह से 108 मालों का जाप करने से मंत्र प्रत्येक चरण में भ्रमण कर लेता है। जिससे हमारे सभी कष्ट और विकार मिट जाते हैं। रुद्राभिषेक में 108 बार ऊं नम: शिवाय का जाप किया जाता है। इसके अलावा अलग-अलग राशि के हिसाब से रुद्राभिषेक की अलग-अलग विधि होती है।
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