- भारत खबर || नई दिल्ली
अपने किसी भी काम को शुरू करने से पहले आज के दौर में व्यक्ति सबसे पहले यह बात करता है कि हमें इस कार्य को करने से सफलता मिलेगी या नहीं। हम इस कार्य को करने में सफल होंगे या नहीं। इस बात को लेकर वह काफी असमंजस में पड़ जाता है और वह जिस काम करने को करने की निर्धारित योजना बनाता है उसे भी पूर्ण नहीं कर पाता। हमें सबसे पहले यह बात जानने की जरूरत है कि आखिर सफलता क्या है। क्या होती है सफलता? आइए जानें।
अपने मानसिक विचारों को प्रश्नोत्तर करते हुए हम यह जानेंगे कि सफलता क्या है। सफलता का मतलब है कि हमें लक्ष्य की प्राप्ति का हो जाना। जब हमें अपने किए गए कार्यों में अपने निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है तो उसे हम सफलता की संज्ञा देते हैं। बताते चलें कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्यों के अनुसार अपने जीवन को एक नई दिशा प्रदान करने के लिए अनेकों लक्ष्यों का चुनाव करता है। उसके मन में घड़ी-घड़ी लक्ष्य बदलते रहते हैं। लेकिन यदि मनुष्य अपने जीवन में सफलता की कसौटी को छूना चाहता है तो उसे अपना एक लक्ष्य निर्धारित करना होगा और उसी के अनुसार कार्य करना होगा। तभी आप अपने जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं।
यदि आप एक उत्तम लक्ष्य की प्राप्ति करना चाहते हैं। तो आपको यह विशेष रुप से ध्यान रखना होगा कि आपको अपने सभी कार्यों को सुचारु एवं नियमित रूप से पूरी लगन के साथ करना होगा। आप अपने कार्य को अपनी तरफ से नियमित रूप से करें। तभी आप अपने लक्ष्य के पथ की और अग्रसर होंगे।
गौरतलब है कि भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवत गीता के श्लोक में मानव शरीर को मात्र एक कपड़े के टुकड़े की संज्ञा दी है। एक ऐसा कपड़ा जिसे एक आत्मा हर जन्म में बदली है। अर्थात मानव शरीर आत्मा का एक स्थाई वस्त्र है। इस बात से यह तात्पर्य है कि सफल लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें बाहरी आवरण अर्थात शरीर रूपी आवरण पर ध्यान ना देकर अपनी अंतरात्मा से जुड़ना चाहिए व उसकी पहचान करनी चाहिए।
लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा डालने वाले कुछ ऐसे कारण भी भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवत गीता के माध्यम से बताएं हैं। भगवान श्री कृष्ण ने लक्ष्य की प्राप्ति में विफल हो जाने के मात्र तीन कारण बताए हैं। वह कारण इस प्रकार हैं काम, क्रोध और लोभ अर्थात यदि आपके भीतर काम यानी वासना की भावना जागृत होगी तो आप अपने लक्ष्य से विमुख होंगे। इसी के साथ-साथ यदि आप क्रोध को अधिक बढ़ावा देते हैं तो क्रोध आपके भीतर एक भ्रम की स्थिति पैदा करेगा।
जिससे आपकी मानसिक स्थितियों में काफी हलचल पैदा होगी और आपका ध्यान अपने लक्ष्य की ओर से विचलित हो जाएगा। जिससे आप हमेशा अशांत रहेंगे। अब अंतिम कारण है लोभ, यदि आप किसी चीज से ज्यादा लोभ रखेंगे अर्थात लालच रखेंगे तब आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकते। क्योंकि लोग के कारण मनुष्य एक स्थान पर ही स्थिर रह जाता है और अपने लक्ष्य के मार्ग की ओर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता।
इसी के साथ साथ लक्ष्य की प्राप्ति में हमें अपनी मानसिक चेतना को उजागर करना होता है। मानसिक चेतना को उजागर करने के लिए हमें अपनी दैनिक प्रक्रिया में भी बदलाव लाना पड़ेगा। नित्य प्रतिदिन भोर में उठकर प्राणायाम अर्थात ध्यान की क्रिया को अपनाकर हम अपनी मानसिक चेतना को उजागर कर सकते हैं। ऐसा करने से हमारे मन मस्तिष्क पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव पड़ेगा और वह सकारात्मक ऊर्जा हमें हमारे लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी। हमारे हृदय में नवीन प्रेरणाओं का आगमन होगा। ऐसा करने से हम अपने लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ेंगे और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। यही लक्ष्य प्राप्ति का मूल मंत्र है।