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मानव समाज को बदलने में मलेरिया ने निभाई है प्रमुख भूमिका…जाने मलेरिया से जुड़े ऐतिहासिक किस्से

malaria मानव समाज को बदलने में मलेरिया ने निभाई है प्रमुख भूमिका...जाने मलेरिया से जुड़े ऐतिहासिक किस्से

मलेरिया मानव सभ्यता के प्राचीनतम रोगों में से एक है जिसका उल्लेख 1600 ईसा पूर्व वैदिक लेखों में भी किया गया है। हिप्पोक्रेट्स द्वारा 2500 वर्ष पूर्व एवं 500 ईसा पूर्व आर्यन सर्जरी के संस्थापक चरक एवं सुश्रुत द्वारा भी इसका उल्लेख किया गया है।

ऐतिहासिक दृष्टि से मलेरिया द्वारा युद्ध एवं शांति में भी अहम भूमिका निभाई गई है। मलेरिया के द्वारा ग्रीस की वैभवता, रोमन साम्राज्य का पतन, इजिप्शियन सभ्यता का नाश एवं सीलोन (श्रीलंका) की प्राचीन संस्कृति को समाप्त करने में बड़ा हाथ रहा है। प्राचीन रोम को यूरोप की मलेरिया कैपिटल (राजधानी) के रूप में जाना जाता था।

मलेरिया का बढ़ता प्रकोप

ऐसा मानना था, कि दलदली जमीन से उठने वाली हवा के कारण यह रोग होता है, अत: इटली में मैल + एरिया (गंदी + हवा) शब्दों को जोड़कर मलेरिया शब्द की उत्पत्ति हुई। पनामा नहर का निर्माण कार्य भी मलेरिया के कारण रोकना पड़ा था।

मानव इतिहास में मलेरिया की भूमिका

इतिहास के निर्माण में गैर मानवीय शक्तियों की भी भूमिका है। नई दुनिया के नाम से मशहूर अमेरिका में खेतों के मालिक मूल अमेरिकियों की बजाय अफ्रीकी गुलाम क्यों पसंद करते थे? अफ्रीकी देश सेनेगल के गोरी आइलैंड स्थित गुलामों के संग्रहालय के प्रभारी एलोय कोली बताते हैं, इसका एक कारण मलेरिया है। गुलामों और बाहर से आकर बसे लोगों के खून में परजीवियों के कारण अमेरिका महाद्वीप में मलेरिया ने दस्तक दी थी। स्थानीय एनॉफिलिस मच्छर ने उन्हें हर जगह फैलाया। जल्द ही बड़ी संख्या में मूल अमेरिकी और यूरोपीय लोग मलेरिया से मरने लगे। लेकिन, मच्छरों से भरे गन्ने के खेतों में काम करने के बावजूद अफ्रीकी गुलाम इस बीमारी से बचे रहते थे। उन्हें मलेरिया से प्रतिरोध विरासत में मिला था।

द फीवर किताब में सोनिया शाह लिखती हैं, वेस्टइंडीज के जमींदार किसी यूरोपीय की तुलना में अफ्रीकी गुलाम के लिए तीन गुना अधिक पैसा देते थे। द मोसक्विटो में तिमोथी विनेगार्ड लिखती हैं, अन्य बीमारियां भी फैलाने वाले मच्छरों ने किसी अन्य जानवर की तुलना में हमारे इतिहास को आकार देने में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अफ्रीका में मलेरिया बेहद घातक था। यूरोपीय प्रवासी उससे मर जाते थे। इसलिए वे बड़ी संख्या में उन इलाकों में जाकर बसे जहां मच्छर कम थे जैसे दक्षिण अफ्रीका, केन्या, जिम्बाबवे और उत्तर अफ्रीका का भूमध्य सागर तटीय क्षेत्र। दूसरी ओर पश्चिम अफ्रीका में बसने वालों के हर वर्ष मरने की आशंका पचास प्रतिशत थी। अफ्रीका के मलेरिया से प्रभावित क्षेत्रों में फ्रेंच और ब्रिटिश शासक स्थानीय लोगों के माध्यम से शासन चलाते थे। जिन इलाकों में मलेरिया नहीं था, वहां बड़े पैमाने पर यूरोपीय प्रवासी बस गए। मलेरिया बताता है कि 47 लाख गोरों की आबादी का दक्षिण अफ्रीका नाइजीरिया से इतना अलग क्यों है। वहां बहुत कम गोरे हैं। दक्षिण अफ्रीका गोरों के रंगभेदी शासन के लिए कुख्यात था। नाइजीरिया की राजनीति मुसलमानों और ईसाइयों के बीच विभाजित है।

रोमन साम्राज्य की रक्षा मलेरिया ने की

मलेरिया ने अन्य महाद्वीपों को भी आकार दिया है। किसी समय यह यूरोप में बहुत अधिक फैला था। प्राचीन रोम पर विजय पाना इसलिए मुश्किल था क्योंकि दलदली क्षेत्र इसकी हिफाजत करता था। रोमन लोग सोचते थे कि वहां घातक धुएं के कारण लोग बुखार के शिकार होते हैं। इसलिए गंदी हवा से मले रिया शब्द बना। ईसा पूर्व 218 में हनीबल ने रोम पर हमला किया था लेकिन मलेरिया के कारण वह जीत नहीं पाया था। उसकी पत्नी, बेटे और अधिकतर सैनिकों की मौत हो गई। बारबेरियंस के हमले का भी यही नतीजा हुआ।

मलेरिया ने सैनिकों का समर्पण कराया

कई सदी तक मलेरिया की दवा सिंचोना की छाल की कमी रही। डच सरकार ने इंडोनेशिया में इसके पेड़ उगाए। 1900 तक डच हर साल पांच हजार टन कुनैन बनाने लगे थे। दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनों ने नीदरलैंड्स पर हमला कर कुनैन के भंडार पर भी कब्जा कर लिया। जापानियों ने इंडोनेशिया पर हमला कर सिंचोना के बगीचे हथिया लिए। इस तरह दुनिया की 95% कुनैन तानाशाह ताकतों के कब्जे में आ गई। मित्र देशों की फौजों के पास मलेरिया से बचाव के साधन कम थे। दक्षिण पूर्व एशिया में उनके 60% सैनिक मलेरिया से बीमार पड़ गए थे। बाटान द्वीप में अमेरिकी और फिलीपीनी सैनिकों ने जापानियों के सामने जब आत्म समर्पण किया तब वे मलेरिया से पीड़ित थे

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