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पृथ्वी पर कैसे हुई जीवन की उत्पत्ति, नासा का बड़ा दावा

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  • भारत खबर || नई दिल्ली 

बताया जाता है कि डीएनए के द्वारा ही जीवन का विकास वृद्धि एवं प्रजनन जैसे सभी कार्य होते हैं।  लेकिन सबसे  बड़ा सवाल यह आता है कि पृथ्वी पर जीवन कहां से आया।  सबसे बड़ा सवाल आज हमारे मन में यह उठता है कि इस पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति कैसे हुई।  क्योंकि उनकी उत्पत्ति के लिए  डीएनए कहां से आया। क्योंकि डीएनए के बिना जीवों की उत्पत्ति होना असंभव है।  इस पर अमेरिका के सबसे बड़े शोध संस्थान नासा ने भारी शोध के दौरान कई विकल्प खोजे हैं। यूरोपियन नुक्लेअर एजेंसी ने भी इसके कई प्रमाण खोजे हैं।  

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नासा और यूरोपियन नुक्लेअर एजेंसी का मानना है कि यह सब शिव शक्ति से ही संभव है। नासा ने तो भगवान शिव को  इस सृष्टि का रचयिता मान ही लिया है। इसके साथ-साथ यूरोपियन नुक्लेअर एजेंसी इस बात को मान रही है कि भगवान शिव सृष्टि के रचयिता है।  शोध संस्थानों द्वारा भारतीय  ग्रंथों के अनुसार शोध के दौरान यह पता लगाया गया है कि भारतीय पहले से ही अनुवांशिकता के नियमों को जानते थे।

बताते चलें कि नासा के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिए अपना एक रिसर्च ऑपरेशन चलाया। जिसमें उन्हें यह पता चला कि पृथ्वी पर डीएनए किस प्रकार से आया और जीवों की उत्पत्ति कैसे हुई। नासा की रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त  सन् 2011 में  अलास्का यूएसए में उल्का पिंण्डों की भारी बरसात हुई।  जिसमें  डीएनए की पुष्टि की गई नासा की नासा के वैज्ञानिकों ने जब उल्का पिंण्डों की गहनता से शोध कार्य करना आरंभ करा तो उन्हें उल्कापिंड के अंदर से डीएनए निकलता हुआ नजर आया।

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इसी के आधार पर नासा ने यह साबित किया है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति उसी डीएनए के कारण हुई थी। जो सबसे पहले उल्कापिंड के जरिए पृथ्वी पर पहुंचा। बताते चलें कि नासा की रिपोर्ट के मुताबिक  डीएनए भरे हुए जिन उल्का पिंण्डों की गहनता से जांच की गई। उनका पिंडों का आकार शिवलिंग के समान था नासा के वैज्ञानिकों ने सन 2011 में अपनी वेबसाइट के जरिए पूरी दुनिया को यह बताया कि इस पृथ्वी पर जीवन कैसे संभव हुआ। नासा का कहना है कि अंतरिक्ष में विराजमान ईश्वरीय शक्ति के द्वारा पृथ्वी पर डीएनए को पहुंचाया गया। इसके कारण ही यह जीवन संभव हुआ।

नासा एजेंसी ने अपने शोध संस्थान के आगे भगवान नटराज की एक विशाल प्रतिमा भी लगाई है। बताते चलें कि भगवान शिव का दूसरा नाम रुद्र नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ होता है उग्र। जो विज्ञान की भाषा में एसिड के नाम से जाना जाता है। डीएनए भी एक एसिड की तरह ही होता है।

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भारतीय वेदों में इसे हिरण्यगर्भ अर्थात सूत्रात्मा की संज्ञा दी गई है। सूत्रात्मा अर्थ है सूत्र अर्थात धागा। वैज्ञानिकों का भी यही मानना है कि डीएनए भी एक धागा या फिलामेंट की तरह ही होता है।  इसी के साथ-साथ नासा द्वारा ली गई अंतरिक्ष की अन्य  तस्वीरों में भी यह जाहिर किया है कि इस संसार में अंतरिक्ष में कोई न कोई शक्ति जरूर विराजमान है। बताते चलें कि नाश्ता भी  ईश्वरीय चमत्कार ऊपर विश्वास करने लगा है। जो विज्ञान की भाषा से बेहद परे हैं।

बताते चलें कि स्विट्जरलैंड के जेनेवा में स्पीकर यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर नुक्लेअर रिसर्च  एक शोध संस्थान के बाहर भगवान शिव के नटराज रूप की  विशाल प्रतिमा भी लगी हुई है। यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर नुक्लेअर रिसर्च  संस्थान ने भी  महादेव शिव को  ऊर्जा का स्रोत माना है। शोध संस्थान में भगवान शिव की इस नटराज  रूपी प्रतिमा को आस्था और विज्ञान का मेल माना गया है। 

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शोध संस्थान के बाहर लगी भगवान नटराज की विशाल प्रतिमा के नीचे महान वैज्ञानिक कैम्ब्रा की कुछ लाइनें लिखी हुई हैं। जिसमें उन्होंने भगवान शिव की अवधारणा की गहरी व्याख्या की है।   उन्होंने कहा कि हजारों साल पहले भारतीय कलाकारों ने भगवान शिव  की कांस्य की प्रतिमाएं और भगवान शिव के तांडव करते हुए कई चित्र बनाएं। उनका कहना है कि तांडव में भगवान शिव ने सृष्टि  के पांचों रूपों की व्याख्या की है। उन्होंने सर्जन से विनाश होने तक के 5 प्रकारों का वर्णन किया है। सृष्टि , स्थिति, संघार, तिरोभव, और अनुग्रह।  उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि शिव का नृत्य करता हुआ रोक ब्रह्मांड के अस्तित्व को रेखांकित करता है।

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