नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के धारा 377 यानी की समलैंगिकता को गौर-कानूनी बनाने वाले फैसले पर विचार करने की बात कही है,जिसके बाद इस मुद्दे को लेकर कई लोगों ने अपनी बात रखी है जिसमे से कुछ इसके पक्ष में है तो कुछ इसके विरोध में है। इसी कड़ी में बीजेपी के राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि धारा 377 को हटाया नहीं जाना चाहिए, बल्कि सेक्सुअलिटी का प्रदर्शन करने वाले समलैंगिकों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। स्वामी के इस कानून से नहीं बल्कि सेक्सुअलिटी के प्रदर्शन से दिक्कत है। स्वामी ने कहा कि एलजीबीटी और कम्युनिटी प्राइवेसी में चाहे जो कर लेकिन उन्हें सार्वजनिक मंच पर अपने सेक्सुअलिटी का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।
दरअसल चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा था कि सेक्शन 377 की वजह से उठे मुद्दे पर एक बड़ी बेंच के सामने बहस होनी चाहिए। आईपीसी की धारा 377 अप्राकृतिक शारीरिक संबंध से जुड़ी है, जिसके मुताबिक जो भी प्रकृति के नियमों के खिलाफ किसी पुरुष, महिला या जानवर से शारीरिक संबंध बनाएगा, उसे आजीवन कारावास या दस साल से अधिक की सजा दी जा सकती है और उस पर आर्थिक दंड भी लगाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने आपसी रजामंदी से दो बालिग लोगों के बीच समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से हटाने की मांग करने वाली याचिका को संविधान पीठ के पास भेज दिया है।
ये बेंच नवतेज सिंह जौहर द्वारा फाइल की गई याचिका पर सुनवाई कर रही है। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया जाना चाहिए, क्योंकि ये आपसी सहमति से संबंध बनाने वाले वयस्कों को भी सजा का पात्र बनाता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने वर्ष 2009 में धारा 377 को रद्द कर दिया था, जिसके बाद हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जीएस सिंघवी और जज एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने 11 दिसंबर, 2013 को दिए अपने फैसले में अप्राकृतिक यौन अपराधों से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 की वैधता बरकरार रखी थी।