जम्मू-कश्मीर में बुधवार शाम को महबूबा मुफ्ती ने पीडीपी के 29, नेकां के 15 और कांग्रेस के 12 विधायकों को मिलाकर 56 विधायकों का समर्थन प्राप्त होने का दावा करते हुए सरकार बनाने की सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा। हालांकि महबूबा की सरकार बनाने की कोशिश नाकाम रही। राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने खरीद फरोख्त का हवाला देते हुए विधानसभा भंग कर दी।
जम्मू-कश्मीर में चल रहे राजनीतिक बदलाव के बीच केंद्र सरकार की ओर से एक बयान सामने आया है।मिली जानकारी के मुताबिक राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा विधानसभा भंग करने का फैसला पीडीपी- नेकां-कांग्रेस के सरकार बनाने की गतिविधि के दबाव में नहीं लिया गया है।
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खबर के मुताबिक गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को अपने चुनावी दौरे से लौट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। बैठक में राज्य के हालात चर्चा की गई। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार का मानना है कि राज्य में अब लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव करा लिए जाएं।
मीडिया में केद्रीय सूत्रों के हवाले कहा जा रहा है कि विधानसभा पहले भी भंग हो सकती थी,लेकिन सुरक्षा कारणों और निकाय चुनाव के कारण नहीं हो पाई है। माना जा रहा है कि अब पूरा फोकस निकाय चुनाव के शेष बचे चरणों पर ही होगा।मिली खबर के मुताबिक राज्यपाल द्वारा जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग करने का निर्णय एक दिन पहले ही यानी मंगलवार को ले लिया गया था। विधानसभा भंग करने की प्रक्रिया मंगलवार को ही पूरी कर ली गई थी। बुधवार को राज्यपाल ने इसका ऐलान कर किया।
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माना जा रहा है कि सरकार बनाने के लिए कई पार्टियां खरीद-फरोख्त की कोशिशें कर रही थीं। जिसकी वजह से राज्यपाल को ये निर्णय लेना पड़ा।गौरतलब है कि राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी सफाई देते हुए अपने बयान में इस फैसले की वजहों से गिनाया था।
राजभवन की ओर से जारी बयान में राज्यपाल ने कहा था आशंका थी कि सरकार बनाने के लिए खरीद-फरोख्त हो सकती है। इसलिए उन्हें ये फैसला लेना पड़ा।उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें महबूबा मुफ्ती या सज्जाद लोन की ओर से कोई पत्र नहीं दिया गया है। राज्यपाल ने कहा कि जरूरी नहीं है कि अभी चुनाव हों लेकिन लोक सभा के साथ ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराए जाएंगे।