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घर के झगड़े और बेरोजगारी दूर करता है यह यंत्र, देखें और क्या-क्या हैं इसके फायदे

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यंत्र एक प्रकार से सुरक्षा कवच है और यह सही नक्षत्र और तिथि में कागज पर, भोजपत्र पर या तांबे पर बनाया जाता है जो ग्रह मारक या बाधक हो उस ग्रह की पूजा यंत्र द्वारा करें। युद्ध दशा-अंतर्दशा प्रत्यंतर्दशा में यंत्र लाभदायक होते हैं। यंत्र को मंत्र का रूप माना जाता है। यंत्र-रचना मात्र रेखांकन नहीं है बल्कि उसमें वैज्ञानिक तथ्य भी है। कुछ यंत्र रेखा प्रधान होते हैं, कुछ आकृति प्रधान और कुछ संख्या प्रधान होते है। कुछ यंत्रों में बीजाक्षरों का प्रयोग होता है। बीजाक्षर एक संपूर्ण यंत्र होता है। हर ग्रह का यंत्र अलग होता है। यह यंत्र केवल दीपावली, होली या ग्रहणकाल में ही बनाकर सिद्ध किया जा सकता है यदि स्वयं निर्माण कर सकते हैं तो ठीक, नहीं तो किसी विद्वान से इन्हें बनवा सकते हैं।

यंत्र का सिद्धांत

यंत्र देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त करने के लिए यंत्र-साधना को सबसे सरल विधि माना जाता है। तंत्र के अनुसार यंत्र में चमत्कारिक दिव्य शक्तियों का निवास होता है। यंत्र सामान्यतः ताम्रपत्र पर बनाए जाते हैं। इसके अलावा यंत्रों को तांबे, चांदी, सोने और स्फटिक में भी बनाया जाता है। ये चारों ही पदार्थ कास्मिक तरंगे उत्पन्न करने और ग्रहण करने की सर्वाधिक क्षमता रखते हैं। कुछ यंत्र भोज-पत्र पर भी बनाए जाते हैं। यंत्र मुख्यतः तीन सिद्धांतों का संयुक्त रूप हैं- आकृति रूप, क्रिया रूप, शक्ति रूप ऐसी मान्यता है कि वे ब्रह्मांड के आंतरिक धरातल पर उपस्थित आकार व आकृति का प्रतिरूप हैं। जैसा कि सभी पदार्थों का बाहरी स्वरूप कैसा भी हो, उसका मूल अणुओं का परस्पर संयुक्त रूप ही हैं। इस प्रकार यंत्र में, विश्व की समस्त रचनाएं समाहित हैं। यंत्र को विश्व-विशेष को दर्शाने वाली आकृति कहा जा सकता हैं। ये सामान्य आकृतियां ब्रह्ममांड से नक्षत्र का अपनी एक विशेष आकृति रूप-यंत्र होता हैं। यंत्रों की प्रारंभिक आकृतियां मनोवैज्ञानिक चिन्ह हैं जो मानव की आंतरिक स्थिति के अनुरूप उसे अच्छे बुरे का ज्ञान, उसमें वृद्धि या नियंत्रण को संभव बनाती हैं। इसी कारण यंत्र क्रिया रूप हैं। “यंत्र” की निरंतर निष्ठापूर्वक पूजा करने से आंतरिक सुषुप्तावस्था समाप्त होकर आत्मशक्ति जाग्रत होती हैं और आकृति और क्रिया से आगे जाकर शक्ति रूप उत्पन्न होता हैं। जिससे स्वतः उत्पन्न आंतरिक परिवर्तन का मानसिक अनुभव होने लगता हैं। इस स्थिति पर आकर सभी रहस्य खुल जाते हैं।

यंत्र विविध प्रकार में उपलब्ध होते हैं कूर्मपृष्ठीय यंत्र, धरापृष्ठीय यंत्र, मेरुपृष्ठीय यंत्र, मत्स्ययंत्र, मातंगी यंत्र, नवनिधि यंत्र, वाराह यंत्र इत्यादि यह यंत्र स्वर्ण, चांदी तथा तांबे के अतिरिक्त स्फटिक एवं पारे के भी होते हैं। सबसे अच्छा यंत्र स्फटिक का कहा जाता है यह मणि के समान होता है। भक्त, संत, तांत्रिक संन्यासी सभी इस यंत्र की प्रमुखता को दर्शाते हें तथा इन्हें पूजनीय मानते हैं।

यंत्रों में मंत्रों के साथ दिव्य अलौकिक शक्तियां समाहित होती हैं। इन यंत्रों को उनके स्थान अनुरूप पूजा स्थान, कार्यालय, दुकान, शिक्षास्थल इत्यादि में रखा जा सकता है। यंत्र को रखने एवं उसकी पूजा करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है और सफलता प्राप्त होती है। श्रीयंत्र विभिन्न आकार के बनाए जाते हैं जैसे अंगूठी, सिक्के, लॉकेट या ताबीज रुप इत्यादि में देखे जा सकते हैं।

यंत्र शास्त्र के अतंर्गत कई ऐसे दुर्लभ यंत्रों का वर्णन है जिनका विधि-विधान से पूजन करने से अभिष्ट फल की सिद्धि होती है, यंत्र की चल या अचल दोनों तरह से प्रतिष्ठा की जा सकती है यह यंत्र धन प्राप्ति, शत्रु बाधा निवारण, मृत्यंजय जैसे कार्यों लिए रामबाण प्रयोग होते हैं। अपने आप में अचूक, स्वयं सिद्ध, ऐश्वर्य प्रदान करने में सर्वथा समर्थ यह यंत्र जीवन को सुख व सौम्यता से भर देता है।

यद्यपि यंत्र का स्थूल अर्थ समझना सरल हैं। परंतु इसका आंतरिक अर्थ समझना सरल नहीं, क्योंकि मूलतः श्रद्धापूर्वक किये गए प्रयासों के आत्मिक अनुभव से ही इसे जाना जा सकता हैं। यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा पंचगव्य, पंचामृत एवं गंगाजल से पवित्र करके संबंधित मंत्र से की जाती हैं। बिना प्राण-प्रतिष्ठा के यंत्र को पूजा स्थल पर नहीं रखा जाता। ऐसा करने से नकारात्मक किरणों के प्रभाव से हानि होने की संभावना रहती हैं। पूजा हेतु मार्गदर्शन, अनेक प्रकार के यंत्रों को एक बार प्राण-प्रतिष्ठा के पश्चात् नियमित पूजा की आवश्यकता नहीं होती और वे जीवन पर्यंत रखे जा सकते हैं।

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