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बाबा विश्वनाथ 151 किलो अबीर से खेलेंगे होली, 21 मार्च से शुरू होगी गौने की रस्में ! 

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वाराणसी। काशी में पीढ़ियों पुरानी प्राचीन परंपरा है कि रंगभरी एकादशी से रंगोत्सव का आगाज होता है। कथाओं के अनुसार इसकी शुरुआत खुद बाबा विश्वनाथ शिवरात्रि के बाद उस वक्त करते हैं, जब वो मां गौरा को विदा कराकर लाते हैं।
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यानी बाबा के गौने की बारात। उसी दिन काशीवासी संग खुशी में होली खेली जाती है और उस दिन से बुढ़वा मंगल तक काशी में रंगोत्सव के अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं। इस बार बाबा विश्वनाथ 151 किलो हर्बल अबीर से होली खेलेंगे। इस बार 21 मार्च से गौने की रस्म शुरू हो जाएंगी। गौने की बारात में बाबा विश्वनाथ गुजराती खादी धारण करेंगे और सिर पर अकबरी पगड़ी पहनेंगे। वही दुल्हन के रूप में मां पार्वती इस बार बनारसी साड़ी पहनेंगी।
गौने का ये है कार्यक्रम ?
गौना बारात की तैयारियां अंतिम दौर में है। काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डा. कुलपति तिवारी ने बताया कि 21 मार्च को गीत गवना, 22 मार्च को गौरा का तेल-हल्दी होगा। 23 मार्च को बाबा का ससुराल आगमन होगा।
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बाबा के ससुराल आगमन के मौके पर महंत परिवार के सदस्य सहित 11 ब्राह्मणों द्वारा स्वतिवाचन, वैदिक घनपाठ और दीक्षित मंत्रों से बाबा की आराधना कर उन्हें रजत सिंहासन पर विराजमान कराया जाएगा। 24 मार्च को मुख्य अनुष्ठान ब्रह्म मुहूर्त में शुरु होगा. भोर में चार बजे 11 ब्राह्मणों द्वारा बाबा का रुद्राभिषेक होगा।
पालकी और मंदिर की दूरी 
बीते 357 सालों के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब बाबा की पालकी को मंदिर तक पहुंचाने के लिए पहले की तुलना में कहीं अधिक दूरी तय करनी होगी। पहले मंदिर और महंत आवास आमने-सामने होने के कारण सिर्फ 25 से 30 कदम की बारात होती थी।
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पिछले साल से टेढ़ीनीम से साक्षी विनायक, कोतलवालपुरा, ढुंढिराज गणेश, अन्नपूर्णा मंदिर होते हुए बाबा की पालकी मुख्य द्वार से विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश करने लगी है। यह दूरी कम से कम साढ़े चार सौ मीटर होगी। पालकी यात्रा में डमरूदल और शंखनाद करने वाले 108 सदस्य भी शामिल होंगे।
बाबा 1934 से पहनते हैं खादी
कहा जाता है कि बाबा 1934 ही खादी वस्त्र धारण करते हैं। बताया यह भी जाता है कि 1933 में रंगभरी एकादशी के मौके पर स्व रृस्रूपरानी नेहरू दर्शन करने पहुंची और उन्होंने तत्कालीन महंत महावीर प्रसाद तिवारी से बाबा की रज प्रतिमा को खादी से धारण करने का अनुरोध किया।
महंत ने उनका अनुरोध स्वीकार किया और 1934 से बाबा को खादी के वस्त्र पहनाने का ऐलान कर दिया तब से लेकर आज तक बाबा खादी वस्त्र ही धारण करते हैं।

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