प्रयागराज: संगम नगरी में होली के शुरुआती दौर में होली का हुड़दंग एक-दूसरे के बीच में प्रेम का रंग बरसाने का काम करता है। जगह-जगह पर सांस्कृतिक एवं साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनमें बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल होते हैं।
कवियों ने दिया होली को एक नया स्वरूप
अगर देखा जाए तो यह परंपरा प्रयागराज में पिछले कई दशक से होती आ रही है। कहा जाता है कि साहित्यकारों की इस संगम नगरी में होली के समय साहित्यकार होली खेलने से कभी पीछे नहीं हटे। महाकवि निराला, हरिवंश राय बच्चन, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत आदि ने प्रयागराज की होली को एक नया स्वरूप दिया था।
होली के समय जहां निराला के घर पर भांग की बूटी वाली होली होती थी तो वहीं, महादेवी वर्मा के घर पर जमघट वाली होली होती थी। इसमें लोग नशे के रंग में लाल-पीले होकर एक-दूसरे पर ठहाके लगाते थे।
महालंठ सम्मेलन
होली के समय में प्रयाग में होने वाले यह सम्मेलन बहुत ही मनोरंजकपूर्ण होता है। इस सम्मेलन को प्रकृति के खुले वातावरण में हास्य कवि सम्मेलन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। प्रयाग की धरती पर वर्ष 1960 के दौर से यह कार्यक्रम स्वरूप रानी पार्क के पास में शुरू किया गया था।
ठठेरी बाजार की कपड़ा फाड़ होली
प्रयागराज का यह कपड़ा फाड़ होली पूरे भारत में प्रसिद्ध है। जहां होली के तीसरे दिन लोग एक-दूसरे के कपड़े फाड़कर रंग में डूबते हुए होली खेलते हैं। ठठेरी बाजार के इस होली को यहां आकर हेमवती नंदन बहुगुणा, हरिवंश राय बच्चन जैसी बड़ी हस्तियां अपने दौर में लोगों के साथ खेलते थे। कहा जाता है कि होली के समय इस बाजार के गली में एक बार आने के बाद हिंदू हो या मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी के मतभेद दूर हो जाते हैं। सभी के ऊपर प्रेम और भाईचारे का रंग चढ़ जाता है।
लोकनाथ की होली
‘होली खेले रघुवीरा’ गाते हुए लोकनाथ की होली की अगर बात करें तो कहा जाता है कि लोकनाथ चौराहे पर पंडित नेहरू के ढोल की थाप पर हरिवंश राय बच्चन इस होली के गीत को गाया करते थे। लोकनाथ चौराहा और अतरसुइया के बड़े पार्क में फूलों से भरे रंग को ड्रम में भरा जाता है और होली की शुरुआत अबीर-गुलाल से करते हुए रंग की बौछार से खत्म कर दिया जाता है। यहां की सबसे खास बात यह है कि लोकनाथ के होलीकार होली गीत को झूमते गाते हुए भांग और रस भंगे के नशे में पूरे प्रयागराज में कई किलोमीटर पैदल चलकर प्रसिद्ध नाग वासुकी मंदिर पर पहुंचकर भगवान शिव के सामने फगुआ को गाते हैं।