मथुरा: कृष्ण की नगरी मथुरा और वृंदावन की होली पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां की होली देखने पूरी दुनिया से लोग आते हैं। वहीं, भारत में भी मथुरा और वृंदावन की होली देखने के लिए भक्तों का जमावड़ा होली से कई दिन पहले ही शुरू होने लगता है।
मथुरा-वृंदावन में सबसे प्रसिद्ध बरसाने की लट्ठमार होली है। ये होली लोगों को सबसे ज्यादा आकर्षित करती है। इस बार बरसाने की लट्ठमार होली 23 मार्च को मनाई जा रही है। इसके अलावा बरसाना के नंदगांव में लट्ठमार होली 24 मार्च को मनाई जाएगी। इस होली की खास बात ये है कि इसमें हुरियारिने अपने पतियों पर भी गुस्सा निकाल लेती हैं और उन्हें लाठियों से धुन देती हैं।
पारंपरिक वेशभूषा में खेली जाती है होली
बता दें कि लट्ठमार होली की तैयारियां होली के काफी पहले से शुरू जाती है। महिलाएं जहां लाठियों में तेल पिलाने लगती हैं तो वहीं, पुरुष पारंपरिक कपड़ों की सिलाई करवाने के साथ-साथ घर में रखी ढाल की साफ-सफाई में जुट जाते हैं। मजबूत ढाल से ही वो हुरियारिनों से अपनी रक्षा करते हैं।
लट्ठमार होली खेलने वाले पुरुष को होरियार और महिलाओं को हुरियारिने कहा जाता है। ये लोग अपने पारंपरिक परिधानों में रहते हैं। महिलाएं जहां साड़ी पहनकर, सिर पर पल्लू रखती हैं तो वहीं, पुरुष मोटी पगड़ी के साथ-साथ कुर्ते और धोती में रहते हैं। इस होली को लेकर पूरे बरसाना कस्बे में उत्सव का माहौल रहता है।
भगवान कृष्ण के समय से चली आ रही परंपरा
मान्यता के अनुसार, लट्ठमार होली श्रीकृष्ण और राधाजी के समय से खेली जा रही है। उस समय श्रीकष्ण भगवान अपने दोस्तों के साथ होली खेलने बरसाने पहुंच जाते थे। इसके बाद वो राधारानी और उनकी सखियों को परेशान करके उनके साथ हंसी-ठिठोली करते थे। उनकी हरकतों से राधा जी परेशान हो जाती थीं और सखियों के साथ मिलकर कृष्ण और उनके सखाओं पर डंडे बरसा देती थीं।
राधाजी के गुस्से से बचने के लिए भगवान श्रीकृष्ण और उनके सखा ढाल का इस्तेमाल करके अपनी रक्षा करते थे। राधा जी भी भगवान श्रीकृष्ण से अलौकिक और अटूट प्रेम करती थीं, इसीलिए वह कृष्ण जी पर डंडे से वार बड़े प्रेम व स्नेह से करती थीं, जिससे उन्हें चोट न लगे। तब से लेकर आज तक ये परंपरा बन गई और कालांतर में इसने रिवाज का रूप ले लिया। तभी से बरसाने और वृंदावन में लट्ठमार होली खेली जाने लगी।
लट्ठमार होली से नहीं लगती किसी को चोट
गौरतलब है कि सबसे पहले वृंदावन के लोग पारंपरिक परिधानों में बरसाने की महिलाओं के साथ लट्ठमार होली खेलने जाते हैं। इसके बाद बरसाने के लोग वृंदावन की महिलाओं के साथ लट्ठमार होली खेलने जाते हैं। यहां गौर करने वाली बात ये है कि होली खेलने के दौरान किसी को भी चोट नहीं लगती है, क्योंकि बड़े प्यार से हुरियारिने-हुरियारों पर वार करती हैं। इस दौरान हंसी-ठिठौली होती है, ठीक वैसे ही जैसे कृष्णजी के समय में होती थी।