होली से पहले लगने वाले होलाष्टक में शुभकार्यों को नहीं किया जाता है। पंचाग के मुताबिक इस बार 22 मार्च से होलाष्टक शुरू हो चुके हैं। इसके साथ ही सभी मांगलिक कार्यों को मान्यता के अनुसार रोकर दिया गया है। लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो आपको जानना बेहद ज़रूरी हैं।
22 मार्च से होलाष्टक शुरू हो चुके हैं, जो होलिका दहन के दिन खत्म होंगे। पंचांग के अनुसार 28 मार्च रविवार को फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाएगा। 29 मार्च को रंगों से होली खेली जानी है।
मांस-मदिरा का करें त्याग
मान्यता है कि होलाष्टक में दौरान खानपान पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। भोजन समय पर करना चाहिए और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके अलावा मांस, मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
भगवान विष्णु की पूजा
शास्त्रों में कहा गया है कि होलाष्टक के दौरान भगवान विष्णु की पूजा करना बहुत अच्छा होता है। ऐसा करने से जीवन की समस्याओं का निवारण होता है। इस दौरान नरसिंह भगवान की पूजा और इस मंत्र का जाप करना चाहिए- ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
क्या कहता है विज्ञान
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से खरमास और होलाष्टक में मौसम काफी बदलता है। इस दौरान सूर्य भी तेजी से चलता है। जिसका प्रभाव सेहत पर भी दिखाई दे सकता है।वर्तमान समय में कोरोना के दूसरे चरण की लहर देखी जा रहा है। इसलिए होलाष्टक में अधिक सतर्कता और ध्यान देने की जरूरत है।
होलाष्टक से जुड़ी कहानी
होलाष्टक से जुड़ी कहानी पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप ने 7 दिनों तक अपने पुत्र प्रहलाद को बहुत यातनाएं दी थीं। आठवें दिन हिरण्यकश्यप की बहन ने अपनी गोद में बिठाकर प्रहलाद को भस्म करने की कोशिश की।
हालांकि भगवन विष्णु की कृपा से प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ और तभी से होलाष्टक मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई। इन 8 दिनों में दाहकर्म की तैयारियां शुरू की जाती है। होलाष्टक खत्म होने के बाद रंगो वाली होली मनाई जाती है और प्रहलाद के जीवित बचने की खुशियां मनाई जाती हैं। इसके बाद से ही सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।