नागपुर। पाकिस्तान और बांगलादेशने विभक्त होने के उपरांत भारत इस शब्द का इस्तेमाल नही किया। क्यो की भारत शब्द हिंदुत्त्व का बोध कराता है। एक तरह से इन देशो कि नजर में भारत एवं हिंदुत्व यह एक ही सिक्के के दो पहलू है ऐसा कहना है सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का। वह नागपुर में आयोजित हिंदु धर्म,संस्कृति मंदिर संस्था के अमृत महोत्सव के समापन कार्यक्रम में मार्गदर्शन कर रहे थें। इस अवसर पर हिंदू धर्म संस्कृती मंदिर के अध्यक्ष गुरुनाथ भागवत, वंदना लाखानी, राजेश लोया तथा अरुण लाखानी प्रमुखतासे उपस्थित थें।
अपने मार्गदर्शन में डॉ. भागवत नें कहा की, देश के विभाजन के बाद भारतीय संस्कृतिका उद्गम स्थान माने गए हडप्पा-मोहंजोदारो सभ्याता के मूल स्थान भारत से विभक्त हो गए। लेकिन देश के बटवारे के मांग करनेवालो नें उनके हिस्से में यह उद्मगस्थान जाने के बाद भी कभी हम ही असली भारत है ऐसा दावा नही किया। बल्की उन्होने पाकिस्तान इस नए नाम को स्वीकारा. इतना ही नही पाकिस्तान से भाषा के मुद्देपर अलग हुए बंग्लादेश नें कभी भी हम ही असली भारत है ऐसा नही कहाँ। क्यो कि दोनो देश यह मानते है कि, भारत नाम का चयन हिंदुत्त्व के भाव का परिचायक है।
जिसके चलते वह भारत को हिंदु मानते है। हमारे देश में मत, पंथ और संप्रदाय अपनी विविधता को बारबार दर्शाते है। लेकिन भारत के एकता के दर्शन का परिचालक शब्द हिंदू है और यही हमारी पहचान है। दुनियाँ में उपासना पद्धती को धर्म की संज्ञा दी जाती हैं। अंग्रेजी में उसे रिलीजन कहते है। लेकिन धर्म और रिलीजन यह एकदुसरे के पर्यायी शब्द नही हो सकते। दुनिया की अन्य किसी भाषा और संस्कृती में धर्म शब्द परिभाषित नही किया गया है। संस्कारयुक्त संस्कृती कि मर्यादाओ का आचरण करने कि प्रक्रिया ही धर्म कहलाती है।
अंग्रेजी भाषा का रिलीजन शब्द लॅटिन भाषा के रिलिजिओ शब्द से उत्पन्न हुवा है। रिलिजिओ शब्द का अर्थ बांधकर रखनेवाला ऐसा होता है। जिसके ठीक विपरीत धर्म शब्द हमें मुक्ती का मार्ग दिखलाता है। दुनियाँ में रिलीजन और धर्म इन शब्दो को पर्यायवाची माना गया हैं। लेकिन उनके भावार्थ और मार्मिकता भिन्न हैं। विवादो पर कटाक्षः- इस अवसर पर सरसंघचाल डॉ. भागवत नें अपनी अलग पहचान को लेकर देश में संप्रयादायो के बही खिच-तान पर कटाक्ष किया। उन्होने किसी भी संप्रदाय विशेष का जिक्र किए बिना बताया की, सब को स्वीकारना यह भारतीय परंपरा हैं।
मध्यकाल में भारत पर हुए आक्रमणो के चलते हमारी हिंदुत्व की भावना जाती, पंथ, संप्रदायो में विभाजीत हो गई। हिंदू यह नाम किसी धर्म या उपासना पद्धती का नही है। अपितु यह भारतीय जीवनपद्धती है। हमारी इसी पहचान को हमे नई पिढी को सौंपना हैं। अपने पुरखो कि विरासत को सौंपने कि प्रक्रिया ही संस्कार कहलाती हैं। तथा इन्ही संस्कारो आचरण में लाने सें संस्कृती जन्म लेती हैं। भारतीयता के इसी भाव को अपनाकर हम दुनिया को मार्गदर्शन कर सकते हैं।