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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचियों को सुनाया अपना फरमान, कहा- बिना आस्था विश्वास के धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं

42301fba b251 49df 9785 65b33bf07e78 इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचियों को सुनाया अपना फरमान, कहा- बिना आस्था विश्वास के धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं

प्रयागराज। देश में आजकल जहां-तहां से धर्म परिवर्तन कर शादी के मामले सामने आते रहते हैं। लड़का-लड़की अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन शादी तो कर लेते हैं, लेकिन क्या उन्हें पता है कि उनके द्वारा उठाए गए ऐसे कदम से परिवार वालों की प्रतिष्ठा दांव पर लग जाती है। इसी बीच उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फरनगर से आया है। जहां एक लड़की ने धर्म परिवर्तन करके हिंदू लड़के से शादी कर ली। जिसके चलते उनकी तरफ से इलाहाबाद कोर्ट में याचिका दायर की गई थी कि परिवार वालों को उनके शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करने पर रोक लगाने की मांग की थी। जिसके बाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला लेते हुए कहा कि सिर्फ शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन करना वैध नहीं है।

धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं-

कोर्ट ने नूरजहां बेगम केस के फैसले का हवाला दिया जिसमें कोर्ट ने कहा है कि शादी के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है. इस केस में हिन्दू लड़कियों ने धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से शादी की थी. कोर्ट के समक्ष सवाल ये था कि क्या हिन्दू लड़की धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से शादी कर सकती है और ये शादी वैध होगी. कोर्ट ने कुरान की हदीसो का हवाला देते हुए कहा कि इस्लाम के बारे में बिना जाने और बिना आस्था विश्वास के धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है. ये इस्लाम के खिलाफ है. इसी फैसले के हवाले से कोर्ट ने मुस्लिम से हिन्दू बन शादी करने वाली याची प्रियांशी उर्फ समरीन को राहत देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि एक याची मुस्लिम है तो दूसरा हिन्दू है. लड़की ने 29 जून 2020 को हिन्दू धर्म स्वीकार किया और एक महीने बाद 31 जुलाई को उसने विवाह कर लिया. कोर्ट ने इस आधार पर कहा है कि रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि शादी करने के लिए ही धर्म परिवर्तन किया गया है.

कोर्ट ने याचिका खारिज की-

बता दें कि कोर्ट ने सुनवाई के बाद विपरीत धर्म के जोड़े की याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने याचियों को संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होकर अपना बयान दर्ज कराने की छूट दी है. मुजफ्फरनगर जिले के विवाहित जोड़े ने परिवार वालों को उनके शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करने पर रोक लगाने की मांग की थी. लेकिन, कोर्ट ने याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए उसे खारिज दिया है. ये आदेश जस्टिस एमसी त्रिपाठी की एकलपीठ ने प्रियांशी उर्फ समरीन और अन्य की ओर से दाखिल की गई याचिका पर दिया है.

 

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