प्रयागराज। देश में पारिवारिक विवादों के चलते लोग तलाक लेने जैसा कड़ा कदम उठाते हैं। आज के समय में थोड़ा सा आपसी विवाद इतना बढ़ जाता है कि वह तलाक के बाद ही खत्म होता है। तलाक के मामले आए दिन कोर्ट के सामने आते रहते हैं। ऐसा ही मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने आया। एक पति ने तलाके के लिए कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसमें पत्नी के DNA करवाने को लेकर बात कही गई थी। तलाक याचिका में लिखा था कि क्या एक पति अपनी पत्नी को डीएनए टेस्ट के लिए कह सकता है या फिर खुद भी डीएनए टेस्ट करवाने से इंकार कर सकता है। जिसको लेकर आज हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी बच्चे की प्रमाणिकता करने के DNA टेस्ट को वैध तरीका बताया है।
ये पूरा मामला-
बता दें कि कोर्ट ने यह अहम फैसला एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुनाया। दरअसल, एक पति ने तलाक के लिए एक याचिका दायर की थी। जिसमें मुद्दा था कि पति की ओर से दायर की गई तलाक की याचिका में क्या एक पति अपनी पत्नी को डीएनए टेस्ट करवाने के लिए कह सकता है या फिर खुद भी डीएनए टेस्ट करवाने से इनकार कर सकता है? ये मामला साल 2013 का है। पति ने दावा किया कि वह 15 जनवरी 2013 से अपनी पत्नी के साथ नहीं रह रहा था और 2014 में उनका तलाक हो गया था। तलाक के बाद पत्नी ने मायके में 2016 में एक बच्चे को जन्म दिया। पति ने दावा किया कि 15 जनवरी 2013 से ही उसके और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध नहीं बने तो फिर यह बच्चा उसका कैसे हो सकता है। वहीं पत्नी का कहना है कि बच्चा उसी के पति का है। इसके बाद ही पति ने पत्नी के डीएनए टेस्ट करवाने के लिए आवेदन किया था। जिसमें हाई कोर्ट की बेंच ने यह फैसला सुनाया।
डीएनए टेस्ट सबसे ज्यादा वैध और वैज्ञानिक तरीका-
जस्टिस विवेक अग्रवाल ने याचिका की सुनवाई के दौरान कहा, “डीएनए टेस्ट सबसे ज्यादा वैध और वैज्ञानिक तरीका है। जिससे पति अपनी पत्नी की बेवफाई प्रमाणित करने के लिए करवा सकता है। इसके अलावा डीएनए टेस्ट से पति साबित कर सकता है कि पत्नी बेवफा, व्यभिचारी या फिर धोखेबाज नहीं है।