हरिद्वार कुम्भ महापर्व 2021 का पहला शाही स्नान गुरुवार, 11 मार्च को होगा। साथ ही इस दिन महाशिवरात्रि का महापर्व भी रहेगा। भारत रत्न मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित श्री गंगा सभा के अनुसार, उत्तराखंड सरकार ने सभी प्रमुख अखाड़ों से चर्चा के बाद हरिद्वार कुंभ 2021 के शाही स्नान और प्रमुख स्नान की तारीखें घोषित कर दी हैं।
प्रमुख स्नान के दिन:- गुरुवार, 14 जनवरी 2021 मकर संक्रान्ति के दिन, गुरुवार, इसके बाद 11 फरवरी मौनी अमावस्या के दिन, फिर मंगलवार, 16 फरवरी बसंत पंचमी के दिन, शनिवार, 27 फरवरी माघ पूर्णिमा के दिन, इसके बाद मंगलवार, 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नव सम्वत वर्ष) के दिन और बुधवार, 21 अप्रैल राम नवमी के दिन।
11 मार्च होगा पहला शाही स्नान
पहला शाही स्नान गुरुवार, 11 मार्च 2021 महाशिवरात्रि के दिन होगा। इसके बाद सोमवार, 12 अप्रैल सोमवती अमावस्या के दिन, बुधवार, 14 अप्रैल मेष संक्रान्ति और वैशाखी के दिन, और मंगलवार, 27 अप्रैल चैत्र माह की पूर्णिमा के दिन शाही स्नान किया जायेगा।
कुम्भ महापर्व की प्राचीन मान्यता-
कुम्भ महापर्व के संबंध में समुद्र मंथन की कथा प्रचलित हैं। इस कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक बार महर्षि दुर्वासा के शाप की वजह से स्वर्ग श्रीहीन यानी स्वर्ग से ऐश्वर्य, धन, वैभव खत्म हो गया था। ऐसे होने पर सभी देवता भगवान विष्णु के पास गये। उस समय विष्णु जी ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का तरीका बताया। उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा, और अमृत पान से सभी देवता अमर हो जायेंगे।
राजा बलि भी हुए समुद्र मंथन के लिए तैयार
देवताओं ने ये विष्णु जी की ये बात असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गये। इसी मंथन में वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया।
समुद्र मंथन में निकले 14 रत्न
इस समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्न निकले थे। इन रत्नों में कालकूट कामधेनु, विष, ऐरावत हाथी, उच्चैश्रवा घोड़ा, कल्पवृक्ष, कौस्तुभ मणि, महालक्ष्मी, अप्सरा रंभा, चंद्रमा, वारुणी देवी, पांचजन्य शंख, पारिजात वृक्ष, भगवान धनवंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले थे।
12 साल तक चला युद्ध
समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश निकला तो सभी देवता और असुर उसका पान करना चाहते थे। अमृत के लिए देवताओं और दानवों में युद्ध होने लगा। इस दौरान कलश से अमृत की बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं। ये युद्ध 12 साल तक चला था, इसलिए इन चारों स्थानों पर हर 12-12 वर्ष में एक बार कुंभ मेला लगता है। इस मेले में सभी अखाड़ों के साधु-संत और सभी श्रद्धालु यहां की पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।
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