लखनऊ। शरद पूर्णिमा को लेकर बाँके बिहारी के वृंदावन मंदिर में अभूतपूर्व तैयारियाँ की जा रही हैं। मंदिर की और से वर्तमान समय में तैयारियों की देख रेख कर रहे मोंटी गोस्वामी ने भारत खबर को जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष में एक बार ये महोत्सव आता है। जब ठाकुर जी का पूरा श्रृंगार होता है। आज ही के दिन शरद पूर्णिमा के पर्व पर ठाकुर जी मोर मुकुट बंशी और श्रृंगार कर रात्रि में भ्रमण पर चंद्र की किरणों की दूरियाँ चाँदनी से बरसने वाले अमृत का सेवन करते है। आज के ही दिन ठाकुर जी मध्य रात्रि में महा रास कर भक्त को चिरकाल तक की शांति और सुख प्रदान करते हैं।
बिहार और पश्चिम बंगाल में इस व्रत को कोजागरा व्रत कहा जाता है
बता दें कि बिहार और पश्चिम बंगाल में इस व्रत को कोजागरा व्रत कहा जाता है। इसका अर्थ होता है ‘कौन जाग रहा है।’ कहते हैं कि लक्ष्मी उनके घर में प्रवेश करती हैं और समृद्धि का आशीर्वाद देती है। कोजागरा में रात की पूजा के बाद मखाने बताशे का प्रसाद बांटा जाता है। इस रात में कौड़ी खेलने की भी प्रथा है। कौड़ी मां लक्ष्मी को प्रिय हैं। इसलिए मां लक्ष्मी की पूजा करते समय उन्हें कौड़ी भी अर्पित की जाती हैं। इसके पीछे वजह यह है कि कौड़ी समुद्र से उत्पन्न होने के कारण देवी लक्ष्मी का भाई माना जाता है।
कुंवारी कन्याएं सुबह के समय स्नान करके सूर्यदेव की पूजा करती हैं
वहीं उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में इस दिन कुंवारी कन्याएं सुबह के समय स्नान करके सूर्यदेव की पूजा करती हैं और रात में चंद्रमा पूजन करती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से योग्य वर की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, देवी लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा तिथि पर ही हुआ था। इस रात में वह अपने वाहन पर सवार होकर भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आती हैं। शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा सोलह कलाओं में चमकता है और पूरी रात अपनी धवल चांदनी से पृथ्वी को रोशन रखता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा की शीतल चांदनी के साथ ही आसमान से अमृत वर्षा होती है। इसीलिए इस दिन खीर बनाकर रात में उसे चंद्रमा की रौशनी में रखा जाता है। साथ ही मिट्टी के कलश या करवे में पानी भरकर छत पर रखते हैं और अगले दिन आयोग्य प्राप्ति की कामना के साथ इस जल से स्नान करते हैं।