नई दिल्ली: बीते दिनों मेघालय की एक कोयला खदान में 15 मजदूर फंस गए है. तब से लगातार राहत बचाव कार्य जारी है. वहीं केंद्र सरकार ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय को एक तस्वीर दिखाई जिसमें मेघालय की अवैध कोयला खदान में फंसे खनिकों को बचाने के लिए किए जा रहे बचाव अभियान की झलक थी। इस दौरान सरकार ने अदालत को बताया कि यह कार्य थाईलैंड सरकार द्वारा पिछले साल किए गए बचाव अभियान से काफी अलग है।
खदान का कोई रास्ता नहीं नहीं है
अदालत के सामने पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह खदान 350 गहरी है और उनके पास इसका कोई ब्लूप्रिंट नहीं है। उन्हें नहीं पता कि लोग इस खदान में कहां फंसे हुए हैं और उनका पता लगा पाना काफी मुश्किल है। मेहता और मेघालय सरकार के महाधिवक्ता अमित कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय और राज्य आपदा मोचन बल, नौसेना और कोल इंडिया के विशेषज्ञों अभियान में शामिल हैं और वह खनिकों को बाहर निकालने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। पिछले साल 14 दिसंबर से 15 खनिक खदान में फंसे हुए हैं।
थाईलैंड से काफी अलग है मेघालय खदान हादसा
इस दौरान सॉलिसिटर जनरल ने थाईलैंड अभियान का जिक्र करते हुए कहा कि उस मामले के लिहाज से यह काफी अलग है। हमारे पास खदान के अंदर के ढांचे का स्केच नहीं हैं क्योंकि यह अवैध है। इसी वजह से बचाव कार्य में बाधा पहुंच रही है। आपको बता दें कि थाईलैंड में बच्चों की फुटबॉल टीम के साथ ही कोच भी खदान में फंस गए थे। सभी को 18 दिनों तक चले अभियान के बाद सुरक्षित बाहर निकाला गया था।
खदान के अंदर का पानी गंदा
तुषार मेहता ने कहा, ‘थाईलैंड मामले में गुफा का ब्लूप्रिंट था और पानी साफ था लेकिन खदान के अंदर का पानी गंदा है और गोताखोर एक निश्चित गहराई के बाद आगे नहीं जा पा रहे हैं। हमने शक्तिशाली वाटर पंप लगाए हैं जो प्रति मिनट 1800 लीटर पानी बाहर निकाल रहे हैं लेकिन पानी का स्तर कम नहीं हो रहा है क्योंकि खदान पास की नदी से जुड़ा हुआ है और खदान नदी से 10 फीट नीचे स्थित है।’ उन्होंने आगे कहा कि अधिकारी खदान में होने वाले पानी के रिसाव को रोक नहीं पा रहे हैं क्योंकि उन्हें नहीं मालूम कि कहां से पानी का खदान में आना जारी है।
इससे पहले गुरुवार को उच्चतम न्यायलय ने इस खदान में फंसे 15 खनिकों को बचाने के काम पर असंतोष व्यक्त करते हुये कहा था कि उन्हें बचाने के लिए ‘शीघ्र, तत्काल एवं प्रभावी’ अभियान चलाने की जरूरत है क्योंकि यह जिंदगी और मौत का सवाल है। लगभग तीन हफ्ते से खदान फंसे लोगों के लिए ‘प्रत्येक मिनट कीमती’ है।