- यूटी में मुख्यमंत्री के अधिकारों को कम किया
- कानून व्यवस्था, लोक व्यवस्था और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में मुख्यमंत्री की दखल नहीं
भारत खबर || राजेश विद्यार्थी
जम्मू कश्मीर। धारा 370 हटाने के विरोध में एक मंच आई कश्मीर केंद्रीत राननीतिक दलों की गुपकार घोषणा पर केंद्र सरकार ने चोट पहुंचाई। केंद्र सरकार ने उन राजनीतिक दलों के मुद्दे को गहरा झटका दिया। जम्मू कश्मीर के लिए पूर्ण राज्य की मांग कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने नई गजट जारी करके मुख्यमंत्री के अधिकारों को कम कर दिया है। मुख्यमंत्री से कानून व्यवस्था, आईएएस अधिकारियों के तबादले, लोक व्यवस्था और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का कार्यभार उपराज्यपाल देखेंगे।
गुपकार में पूर्व मुख्यमंत्री डा फारूक अब्दुल्ला के घर पर चार अगस्त 2019 को बैैठक हुई थी। जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हटाने के विरोध में नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस, पीडीपी, सीपीआईएम, अवामी नेशनल कांफ्रेंस व अन्य कई राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेता मौजूद थे। पांच अगस्त को ही राज्य से धारा 370 को तोड़ दिया और सैकड़ों नेताओं को नजर बंद कर दिया। गुपकार घोषणा को लेकर डा फारूक अब्दुल्ला फिर से सक्रिय हो गए हैं और राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री के अधिकार सीमित किए
देश के अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की तरह ही जम्मू कश्मीर में भी मुख्यमंत्री के अधिकारों को सीमित कर दिया हैं। यूटी बनाए जाने के एक साल बाद केंद्र सरकार ने नई गजट जारी कर दी है। गजट के अधिसूचना के खंड पांच में लोक व्यवस्था, पुलिस, अखिल भारतीय सेवाओं संबंधी अधिकार उपराज्यपाल को प्रदान किए गए हैं। पुलिस महानिदेशक, मुख्य सचिव नियुक्त करने के अधिकार भी मुख्यमंत्री से वापस ले लिए गए। आईपीएस औेर आईएफएस अधिकारियों के तबादले भी उपराज्यपाल राज्य के मुख्यसचिव से मंत्रणा करने के बाद करेंगे। इस संबंध मे राज्य की राजनीतिक सरकार या केबिनेट के पास कोई अधिकार नहीं रह जाएंगे। पहले मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में केबिनेट लोक सेवा, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और अखिल भारतीय सेवाओं संबंधी आदेश जारी किया करते थे।
गुपकार घोषणा पलेबिसाइट से कम नहीं
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और जम्मू कश्मीर प्रभारी राम माधव ने अपने कश्मीर दौरे के गुपकार घोषणा को पलेबीसाइड फ्रंट से कम नहीं बताया है। कार्यकर्ताओं की बैठक के दौरान राजनीतिक माहौल की समीक्षा करने के दौरान गुपकार घोषणा पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई। पार्टी सूत्रों के अनुसार राम माधव ने कहा मुस्लिम लीग और नेशनल कांफ्रेस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने पलेबीसाइड फं्रट भी बनाया था। उनकी जगह पर गुल शाह को सत्ता सौंपी गई। पलेबीसाइड की मांग करने पर शेख अब्दुल्ला को करीब बीस साल तक जेल में रहना पड़ा। इंदिरा गांधी और शेख अब्दुल्ला के बीच समझौता हुआ और नेशनल कांफ्रेंस को सत्ता की बागडोर सौंपी। शेख अब्दुल्ला ने पलेबीाइड की मांग दोहराय नहीं। फारूक अब्दुल्ला ने भी सत्ता संभालने के बाद स्वायत्ता की मांग को छोड़ दिया। मौका परस्त पार्टी केवल सत्ता की भूखी हैं और लोगों का भला नहीं चाहती है।
1953 से पहले की स्थिति मांगते बन गया पूर्ण यूटी
जम्मू कश्मीर में 1953 से पहले की स्थिति की मांग करते अब राज्य को पूर्ण यूटी का दर्जा दे दिया गया हैं। राज्य में नेशनल कांफ्रेंस ने सबसे अधिक राज किया है। नेशनल कांफ्रेंस का मुद्दा 1953 से पहले की स्थिति बहाल करने का रहा। इस मुद्दे पर 1996 में नेकां ने बहुमत भी हासिल किया। बहुमत हासिल करने के बाद जम्मू कश्मीर को स्वायत्तता की मांग की गई। जम्मू, लद्दाख और कश्मीर को क्षेत्रीय स्वायत्तता दिए जाने का मुद्दा भी उठाया। स्वायत्तता और ़क्षेत्रीय स्वायत्तता पर दो अलग अलग कमीशन भी बनाए गए। कमीशन की रिपोर्ट के बाद भी नेशनल कांफ्रेंस ने रिपोर्ट को लागू नहीं किया। जिसका असर चुनावों में हुआ और राज्य में पीडीपी व कांग्रेस की गठबंधन सरकार बन गई। भाजपा केेंद्र में आते ही एक संविधान, एक प्रधान के अपने एजेंडे को लागू करके जम्मू कश्मीर को दो हिस्सो मेें बांट दिया गया। जम्मू कश्मीर और लद्दाख को यूटी बना दिया।
दिल्ली की तर्ज पर होगा राज्य में कामकाज
पूर्व स्पीकर कविंद्र गुप्ता के अनुसार जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र बहाली को लेकर राजनीतिक दल एकजुट हुए हैं और केंद्र सरकार भी चाहती है कि विधानसभा चुनाव हों। हथबंदी की रिपोर्ट के बाद के राज्य में चुनाव होंगे। रिपोर्ट भी जल्द ही आ जाएगी और चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। केंद्र सरकार की अधिसूचना में साफ है कि जम्मू कश्मीर में कामकाज नई दिल्ली की तर्ज पर होगा। राज्य में कानूून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी है और भ्रष्टाचार भी अधिक है। इन दोनों मुद्दों को केंद्र ने अपने पास रखा है। वरिष्ठ अधिकारियों को अब राज्य के मंत्रियों की तरफ नहीं ताकना होगा।
विशेष दर्जे की मांग पर लगाया अंकुश
वरिष्ठ एडवोकेट हरीचद जलमेरिया के अनुसार 1953 से पहले जम्मू कश्मीर में वजीर ए आला ‘प्रधानमंत्री‘ और सदर ए रियासत ‘ राष्ट्रपति‘ होता था। शेख अब्दुल्ला वजीर ए आला और डा कर्ण सिंह सदर ए रियासत हुआ करते थे। स्वर्गीय श्यामा प्रसाद मुखर्जी के चलाए गए आंदोलन के बाद मुख्यमंत्री और गर्वनर बनाए गए। स्वायत्ता की भी मांग जोर शोर से उठी और इस मांग को भी केंद्र की भाजपा सरकार ने दरकिनार कर दिया। राज्य के लिए और अधिकारों और विशेष दर्जे की मांग पर केंद्र सरकार ने अंकुश लगा दिया और गजट जारी कर दी।
गुपकार घोषणा पर केंद्र का तमाचा
जम्मू विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष और संविधान विशेषज्ञ प्रो हरी ओम ने केंद्र सरकार के इस मूव का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि केंद्र ने दो दिन पहले गजट जारी करके मुख्यमंत्री के अधिकारों को सीमित कर दिया। यह आदेश गुपकार घोषणा पर केंद्र सरकार का तमाचा है। जम्मू कश्मीर पूरी तरह से भारत का अभिन्न अंग पांच अगस्त 2019 को ही बन गया था। जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने और अलगाववादी सोच की राजनीतिक दलों को केंद्र ने करारा जवाब दिया है।