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मोदी सरकार के पास नहीं हैं आंकड़े, 1990 के कत्लेआम में कितने कश्मीरी पंडितों ने गंवाई जान

कश्मीरी पंडितों .. मोदी सरकार के पास नहीं हैं आंकड़े, 1990 के कत्लेआम में कितने कश्मीरी पंडितों ने गंवाई जान

जम्मू- कश्मीरः जनवरी 1990 में घाटी से कश्मीर पंडितों का विस्थापन शुरू हुआ था अब 29 साल हो गए हैं लेकिन केंद्र की मोदी सरकार के पास आंकड़ा तक नहीं है कि आखिर कितने कश्मीरी पंडितों को विस्थापन के दौरान अपनी जान गंवानी पड़ी थी। दरअसल तमाम सरकारें आईं और गईं, लेकिन इन बेघर कश्मीरी पंडितों की दशा की परवाह किसी ने नहीं की। हालांकि इस पर समय- समय पर राजनीति खूब हुई है।

कश्मीरी पंडितों .. मोदी सरकार के पास नहीं हैं आंकड़े, 1990 के कत्लेआम में कितने कश्मीरी पंडितों ने गंवाई जान

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आपको बता दें कि गृहमंत्रालय के हवाले से एक चौकाने वाली खबर है कि कश्मीर पंडितों के विस्थापन  दौरान हुए कत्लेआम में कितने लोगों ने जान गवाई है..? केंद्र की मोदी  सरकार के पास इसका कोई भी आंकड़ा नहीं है। जनवरी 1990 में घाटी से कश्मीर पंडितों का विस्थापन शुरू हुआ था। वहां से भगाए गए पंडित कभी वापस अपने घरों में नहीं जा सके। किसी भी सरकार ने कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के लिए ठोस कदम नहीं उठाए हैं।

कश्मीर में करीब 30 साल पहले 3 लाख से अधिक कश्मीर पंडितों को जबरन घाटी से निकाला गया था। इस दौरान सैकड़ों मंदिर तबाह कर दिए गए थे। लेकिन इस मामले की न तो कोई एसआईटी जांच हुई और न ही किसी आयोग का गठन किया गया। लोकतांत्रिक देश के नागरिक, कश्मीर पंडितों को अपने ही घरों को छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा था।

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ये ऐसा वक्त था जब अलगाववादी और आतंकी राज्य में अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाने के लिए उनकी जान लेने के लिए उतारू थे। सैकड़ों पंडितों ने अपनी जान गंवाई थी। यहां तक कि पंडितों के दरवाजों पर धमकी भरे पोस्टर चिपकाए गए। अखबारों में धमकाने वाले विज्ञापन छपे गए। उन दिनों घाटी में सब तरफ हिन्दू विरोधी नारे गूंजा करते थे। मस्जिदों में लगे स्पीकर भी पंडितों को डराने और धमकाने का स्रोत बन हुए थे। साल 1990 की 19-20 जनवरी को कश्मीरी पंडितों को घाटी जबरन बेदखल कर दिया।

गौरतलब है कि महीने भर में 3 लाख पंडित कश्मीर छोड़कर देश के अलग-अलग हिस्सों में बसने को मजबूर हुए। आज भी वहां से विस्थापित लोग अपना दर्द बयान करते हुए कराहने लगते हैं। इंडिया टुडे के संवाददाता अशोक उपाध्याय ने इस मामले में सूचना के अधिकार के तहत गृह मंत्रालय में एक RTI दायर की, जिसमें पूछा गया कि इस दौरान आतंकियों ने कितने कश्मीरी पंडितों की हत्या की थी।

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RTI में ये भी पूछा कि इन मामलों में अब तक क्या-क्या प्रोग्रेस हुई है। लेकिन गृह मंत्रालय की ओर से  RTI के जवाब में कहा गया कि उसे इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। जवाब में ये भी कहा गया कि इसके लिए जम्मू कश्मीर सरकार से जानकारी मांगी जाए। क्योंकि साल 2005 में बना RTI कानून राज्य में लागू नही होता। गृह मंत्रालय के इस जवाब के बाद नेताओं के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है। इस पर जम्मू- कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष रविंद्र शर्मा ने कहा कि यह बीजेपी सरकार की लापरवाही दर्शाता है कि उन्होंने अब तक आंकड़े नहीं जमा किए हैं। उनके पास अब तक कश्मीरी पंडितों की मौत और आतंकियों के खिलाफ दर्ज किए गए मामलों की कोई जानकारी नहीं है।

मामले में प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र रैना का कहना है कि यह गृह मंत्रालय के अधिकारियों की लापरवाही को दिखाता है, जबकि उस दौरान घाटी में सैकड़ों कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम हुआ था। उन्होंने कहा कि इस मामले के लिए जांच आयोग गठित होना चाहिए। रैना ने यह भी कहा कि कांग्रेस को इसमें बोलने का कोई हक नहीं है। क्योंकि जब यह सब हो रहा उस दौरान कांग्रेस सिर्फ मूकदर्शक बनी देख रही थी।

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महेश कुमार यादव

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