रिजर्व बैंक और मोदी सरकार के बीच चल रहे विवाद में केन्द्र सरकार ने सफाई दी है। सरकार ने कहा है कि उसकी नजर आरबीआई के रिजर्व खजाने पर नहीं है। बता दें कि केन्द्र सरकार की तरफ से डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स सचिव एस सी गर्ग ने कहा कि केन्द्र सरकार ने रिजर्व बैंक से 3.6 लाख करोड़ रुपये लेने की पेशकश नहीं की है।
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गर्ग ने दावा किया कि केन्द्र सरकार ने रिजर्व बैंक के इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क को दुरुस्त करने के तरीकों को इजात करने की पहल की है। इसके साथ ही केन्द्र सरकार की वित्तीय स्थिति को मजबूत करार दिया। उन्होंने कहा कि मीडिया में आरबीआई के रिजर्व खजाने पर सरकार की नजर को लेकर दुष्प्रचार किया जा रहा है। गर्ग ने दावा किया कि मौजूदा वित्त वर्ष के अंत में (मार्च 2019) में केन्द्र सरकार अपना वित्तीय घाटा 3.3 फीसदी पर सीमित रखने में सफल होगी।
मीडिया रिपोर्ट के की मानें तो केन्द्र सरकार 19 नवंबर को होने आरबीआई बोर्ड बैठक में अपना अहम एजेंडा सामने रखा था। बोर्ड में कहा कि रिजर्व बैंक गवर्नर की भूमिका को कम करने का काम कर सकती है। केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक गवर्नर के बीच विवाद की मुख्य वजह केन्द्रीय रिजर्व बैंक के पास मौजूद 9.6 ट्रिलियन (9.6 लाख करोड़) रुपये की रकम है।
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एक समाचार पत्र ने सूत्रों के जरिए कह था कि केन्द्र सरकार रिजर्व बैंक के पास पड़ी इस रिजर्व मुद्रा का लगभग एक-तिहाई हिस्सा लेना चाहती है। केन्द्र सरकार का रुख है कि इतनी बड़ी मात्रा में रिजर्व मुद्रा रखना रिजर्व बैंक की पुरानी और संकुचित धारणा है। इसको बदलने की जरूरत है। आपको बता दें कि केन्द्र सरकार रिजर्व बैंक से चाहती है कि उसे इस रिजर्व मुद्रा से 3.6 ट्रिलियन रुपये दिए जाएं। केन्द्र सरकार इस मुद्रा का संचार कर्ज और अन्य विकास कार्यों पर खर्च के द्वारा अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाहती है।
मिली जानकारी के मुताबिक 19 नवंबर को होने वाली आरबीआई बोर्ड की प्रमुख बैठक में केन्द्र सरकार अपने नुमाइंदों के द्वारा विवादित विषयों पर प्रस्ताव के सहारे फैसला करने का दबाव बना सकती है।गौरतलहब है कि रिजर्व बैंक बोर्ड में केन्द्र सरकार के प्रतिनिधियों की संख्या अधिक है। इसलिए फैसला प्रस्ताव के आधार पर लिया जाएगा तो रिजर्व बैंक गवर्नर के सामने केन्द्र सरकार का सभी फैसला मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।