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जानिए प्रयागराज की इस बेटी को गूगल ने क्यों बनाया डूडल? झांसी की रानी से क्या है नाता

जानिए प्रयागराज की इस बेटी को गूगल ने क्यों बनाया डूडल? झांसी की रानी से क्या है नाता

लखनऊः आपने बचपन में वो कविता जरुर पढ़ी होगी। झांसी की रानी को याद करते वक्त “खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी” ये पंक्तियां खुद ब खुद जहन में आ जाती हैं। देश के लगभग हर बच्चे की जुबान पर इस कविता की पंक्तियां रटी हुईं होंगी।

सुभद्रा कुमारी चौहान - विकिपीडिया

आज इस कविता की लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान की 117वीं जयंती है। भारत की अग्रणी लेखिका और स्वतंत्रता सेनानी सुभद्रा की उपलब्धियों को सम्मान देते हुए गूगल ने आज अपना इन्हें डूडल बनाया है। गूगल के डूडल में सुभद्रा साड़ी पहने हाथ में कलम लिए हुए लिखते नजर आ रही हैं। उनके पीछे रानी लक्ष्मीबाई और स्वतंत्रता आंदोलन की झलक साफ देखने को मिल रही है।

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प्रयागराज में हुआ था जन्म

आज के ही दिन यानी 16 अगस्त 1904 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद ( अब प्रयागराज) के पास निहालपुर में जन्म हुआ था। बचपन से ही सुभद्रा को कविताएं लिखने का शौक था। महज 9 साल की उम्र में सुभद्रा ने कविता लिखा। ये कविता उन्होंने नीम के पेड़ पर लिखी थी। सुभद्रा की दो किवता संग्रह और तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए। मुकल और त्रिधारा नाम से उनकी दो कविता संग्रह प्रकाशित हुईं। मोती, सीधे-साधे चित्र और उन्मादिनी नाम से उनकी तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए।

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सुभद्रा की अनेक रचनाओं में से ‘झांसी की रानी’ कविता बहुत प्रचलित हुई। इस कविता ने जन-जन के दिलों में स्वतंत्रता के प्रति जनून पैदा कर दिया। सुभद्रा की ये कवित इस कदर फेमस हुई कि उन्हें सभी के दिलों का कवि बना दिया।

असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली पहली महिला

सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी स्वतंत्रता और देश प्रेम की भावनाओं को सिर्फ कागज तक ही नहीं समेटे रखा, उन्होंने इसे असल जिंदगी में भी जी कर दिखाया है। राष्ट्रपति महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन की लड़ाई में भाग लेने वाली वो पहली भारतीय महिला थीं। आजादी की लड़ाई में सक्रिया भूमिका निभाने वाली सुभद्रा को कई बार जेल जाना पड़ा। उनकी रचनाएं दूसरों के अंदर भी देशभक्ति जगाने का काम करती थीं। उनकी रचनाएं पढ़कर अनेक लोग आजादी की लडाई में कूद पड़े।

झाँसी की रानी' को जन-मानस तक पहुँचाने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान!

मौत को लेकर कही थी ये बात

सुभद्रा की कविताएं हमेशा आजादी के दिवानों के लिए प्रेराणा का स्रोत बनी। देश आजाद होने के बाद 15 फरवरी को 1948 को महज 44 साल की उम्र में सुभद्रा का निधन हो गया। बताया जाता है कि एक बार सुभद्रा ने मौत को लेकर कहा था कि “मेरे मन में तो मरने के बाद भी धरती छोड़ने की कल्पना नहीं है। मैं चाहती हूं, मेरी एक समाधि हो, जिसके चारों तरफ मेला लगा हो, बच्चे खेल रहें हो, स्त्रियां गा रही हो और खूब शोर हो रहा हो।”

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