नई दिल्ली। दुनिया भर में शहनाई के लिए मशहूर प्रख्यात शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को कौन नहीं जानता जो अपनी शहनाई वादक के लिए मशहूर हैं औऱ जिन्होनें शहनाई को आज एक अलग ही पहचान दी हैं। और आज वो वो भलें ही हमारें बीच नहीं हैं पर उनकी शहनाई के प्रति दिवानगी को लेकर ऐसा ही लगता हैं कि वो हमारें बीच हैं इसलिए आज दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल को ओर से भी दुनिया भर में उन्हें डूडल बनाकर श्रद्धांजलि दी जा रही हैं।
शहनाई के रुप में बनारस की पहचान
बनारस यूपी का एक ऐसा शहर हैं जिसकी एक अलग ही खास्यित हैं जो अपनी तबजीब के लिए जाना जाता हैं पर बनारस को आज बिस्मिल्लाह खान की शहनाई के लिए जाना जाता हैं। बनारस को एक अलग पहचान देने वालें बिस्मिल्लाह खान ही हैं। बिस्मिल्लाह खान का जन्म बिहार के डुमरांव में 21 मार्च, 1916 को हुआ था। बिस्मिल्लाह खान का असली नाम कमरुद्दीन हैं जिन्हें बाद में बिस्मिल्लाह खान के नाम से पुकारा जाने लगा। 6 साल की उम्र में ही बिस्मिल्लाह खान वाराणसी चले गये थें। जहां उनके चाचा की ओर से उन्हें संगीत का प्रशिक्षण दिया गया। बाद में वाराणसी स्थित विश्वनाथ मंदिर के अली बक्श विलायतु से उन्होंने शहनाई बजाने का प्रशिक्षण लिया।
आज भी जब कभी भी शहनाई बजती हैं तो बिस्मिल्लाह खान को अक्सर याद किया जाता हैं। कांग्रेस की ओर से तो कोलकाता महाधिवेशन में विशेष तौर पर बिस्मिल्लाह खान को शहनाई बजाने के लिए आमंत्रित किया था। बता दे कोलकाता महाधिवेशन नेताजी इंडोर स्टेडियम में आयोजित किया गया था जहां कांग्रेस महाधिवेशन में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने कहा था कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई कांग्रेस को दिल्ली के तख्त तक पहुंचायेगी। इसी महाधिवेशन में पहली बार सोनिया गांधी कांग्रेस के सार्वजनिक मंच पर आयीं थीं। उस्ताद एक सच्चें हिंदुस्तानी थें। बिस्मिल्लाह खान आजाद भारत के प्रसिद्ध क्लासिकल संगीतकारों में एक थे। उस्ताद को हिंदू-मुस्लिम एकता के उदाहरण के लिए भी जाना जाता हैं।
शहनाई थी उस्ताद की बेगम
बिस्मिल्लाह खान शहनाई को अपनी बेगम की तरह मानते थें। और ईश्वर से भी बढ़कर वो अपनी शहनाई को मानते थे इसी वजह से बिस्मिल्लाह खान की मौंत के वक्त उनकी शहनाई को उनके साथ जलाया गया था। वो कभी भी किसी में भेदभाव नहीं करते थें और ना ही उनके लिए कोई जातपात कोई मायनें रखती थी। उनका मानना था कि जिदंगी तो कभी भी किसी भी वक्त खत्म हो जाएंगी लेकिन संगीत ही एक ऐसी चीज हैं को कभी भी खत्म नहीं होगी और ना ही इस दुनिया से संगीत का अस्तित्व खत्म होगा। यें देश की विरासत हैं जो पूरी दुनिया में जानी जाती हैं।
भारत की आजादी पर किया गया था निमंत्रण
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां कितनी बडी शख्सितय के रुप में हैं इस बात का सबूत ये हैं कि जब भारत को 1947 के समय जब आजादी मिली थी तो उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को लाल किले पर शहानई बजाने के लिए आमंत्रण किया गया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू के दिनों से ही लाल किले से प्रधानमंत्री का भाषण खत्म होने के बाद दूरदर्शन पर शहनाई वादन के कार्यक्रम की एक तरह से परंपरा ही बन गयी थी।
फिल्मों से हैं गहरा नाता-
बिस्मिल्लाह खान का फिल्मों से गहरा संबंध था. उन्होंने सत्यजीत रे की फिल्म ‘जलसा घर’ में काम किया. वर्ष 1959 में आयी फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ में उन्होंने शहनाई की धुन दी थी. 1967 की फिल्म ‘दि ग्रेजुएट’ में एक पोस्टर भी था, जिसमें बिस्मिल्लाह खान के साथ 7 संगीतकारों को भी दर्शाया गया था.
21 मार्च को जन्मे बिस्मिल्लाह 21 अगस्त को दुनिया से चले गये
21 मार्च को बिहार के डुमरांव में जन्म लेने वाले बिस्मिल्लाह खान 21 अगस्त, 2006 को बनारस ही नहीं, इस दुनिया को छोड़कर चले गये. 17 अगस्त, 2006 को उन्हें बुखार हुआ, तो वाराणसी के हेरिटेज हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. चार दिन बाद कार्डियक अरेस्ट ने इस महान फनकार को हम सबसे छीन लिया. भारत सरकार ने उनकी मृत्यु के दिन को राष्ट्रीय शोक घोषित किया. भारतीय सेना ने इस अमर फनकार को 21 तोपों की सलामी दी. उनके पार्थिव शरीर को उनकी शहनाई के साथ ही वाराणसी में दफन कर दिया गया।
भारत रत्न से लेकर कई अवॉड
बिस्मिल्लाह खान भारत के ऐसे सख्स हैं जिन्होनें कई अवॉड को अपने नाम किया हैं बता दे कि बिस्मिल्लाह खान को भारत के विशेष रत्न से भारत रत्न से भी सम्मानित किया जा चुका हैं।
-संगीत नाटक अकादमी अवाॅर्ड (1956)
-पद्म श्री (1961)
-ऑल इंडिया म्यूजिक कॉन्फ्रेंस, अल्लाहाबाद में बेस्ट परफॉर्मर का पुरस्कार (1930)
-ऑल इंडिया म्युजिक कॉन्फ्रेंस में तीन मेडल्स, कलकत्ता (1937)
-पद्म भूषण (1968)
-पद्म विभूषण (1980)
-संगीत नाटक अकादमी शिष्यवृत्ति (1994)
-रिपब्लिक ऑफ ईरान द्वारा तलार मौसिकुई (1992)
-मध्यप्रदेश सरकार का तानसेन पुरस्कार
-भारत रत्न (2001)