नई दिल्ली। साल 2017 की शुरूआत की चुनावी दंगल से हुई थी। पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव साल की शुरूआत में राजनीतिक गरमाहट बनाए हुए थे। ये पांच राज्य थे पंजाब,गोवा,मणिपुर,उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश जिसमें भाजपा के पास पंजाब और गोवा में सरकारें थी तो कांग्रेस के पास मणिपुर और उत्तराखंड में वहीं उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इस राज्यों में सभी पार्टियां अपनी सरकार बनाने की कवायद में जुटी हुई थीं। खासतौर पर पंजाब का समर ज्यादा दिलचस्प हो गया था। क्योकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के मुखिया और पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल पंजाब को लेकर तालठोंक रहे थे। पंजाब में अकालीदल और भाजपा की संयुक्त सरकार शासन में थी।
विकास के मुद्दे के साथ किसानों को जोड़ा कांग्रेस ने
पंजाब में विकास के मुद्दे के साथ बड़ा मुद्दा था किसानों की समस्याओं का बीती सरकार अकाली दल और भाजपा की थी। सरकार का किसानों को लेकर अपना रवैया असंतोष जनक था। किसानों की पानी की किल्लत के साथ बिजली और आधारभूत समस्याओं के अलावा कर्ज एक बड़ी समस्या के तौर पर था। फसलों के मूल्यों का निर्धारण भी इसी समस्या का एक अभिन्न अंग बना हुआ था। भाजपा के साथ अकाली दल इन मुद्दों पर जनता के विश्वास पर खरा नहीं उतर पाया था। पंजाब में उद्योग धंधों को लेकर भी स्थितियां संकट में थी। इसके साथ ही अकाली और भाजपा में आपसी तालमेल की भी कमी पूरे चुनाव में नजर आती रही थी। कांग्रेस पूरे चुनाव में भाजपा पर लगातार जन विरोधी नीतियों और विकास के नाम पर लोगों को छलने का आरोप लगाती रही। इसके साथ ही पूरे चुनाव में अकाली दल के नेताओं का जनता के बीच ना जाना भी कांग्रेस के लिए मुफ़ीद साबित हुआ। एक तरफ़ कांग्रेस किसानों और जरूरतमंदों को लेकर मैदान में थी, तो वही विकास के मुद्दे पर भी अकाली और भाजपा की सरकार को घेर रखा था। इसके साथ ही बेरोज़गारी और नशाबंदी भी अहम मुद्दा थे। इन मुद्दों पर कांग्रेस में तत्कालीन सरकार को चुप्पी साधने पर मजबूर कर दिया था। जिसका परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आया और पंजाब में आखिरकार कांग्रेस की बल्ले बल्ले हो गई।
केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की नीतियों को जनता के सामने नहीं ला पाई भाजपा
पंजाब में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण था, उसकी सहयोगी पार्टी अकाली दल का जनता के बीच ना जाना। इसके साथ ही सत्ता में अकाली दल का एक छत्र क़ाबिज़ होना भी भाजपा के लिए हानिकारक रहा है। जहाँ भाजपा को पंजाब में जन विरोधी नीतियां चलाए जाने का ज़िम्मेदार ठहराया गया। वहीं राज्य में चौपट हो रहे उद्योग धंधों के लिए भी भाजपा को ही ज़िम्मेदार माना गया। भारतीय जनता पार्टी जनता के सामने केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रही नीतियों को लाने में विफल रही। भाजपा और अकाली दल पूरे चुनाव में केवल अपनी सफ़ाई पेश करते रह गए। अपने प्लान और प्रोजेक्टों के बारे में जनता के सामने कभी ला ही नहीं पाए। जहाँ एक तरफ़ कांग्रेस लगातार भाजपा पर विकास के नाम पर छलने का आरोप लगा रही थी। वहीं दूसरी तरफ़ भाजपा के ही और अकाली दल के क़िले में आम आदमी पार्टी सुराख़ कर भाजपा और अकाली दल के परंपरागत मतदाताओं को अपने खेमे में लाने की कोशिश कर रही थी। भाजपा के लिए एक तरफ़ कांग्रेस थी तो दूसरी तरफ़ आम आदमी पार्टी, ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल के पूरा चुनाव उत्तर पर प्रत्युत्तर ही देते हुए खत्म हो गया। आखिरकार इस चुनाव में भाजपा गठबंधन की करारी हार और पंजाब का क़िला भाजपा के हाथ से निकल गया।
आम आदमी पार्टी नाशबंदी और बेरोजगारी को लेकर बनी वोटकटवा
अब आम आदमी पार्टी ने पंजाब में चुनावी जंग की शुरुआत तो बहुत तगड़ी की थी, लेकिन आगे आगे ख़ुद ही पार्टी भ्रष्टाचार के मामलों में उलझती चली गई। पहले तो पार्टी फंडिंग को लेकर ही आम आदमी पार्टी पर आरोप लगे। फिर आम आदमी पार्टी में ही कई टुकड़े हुए। एक धड़ा दूसरे धड़े को लगातार पूरे चुनाव भर ग़लत बताता रहा। वहीं आम आदमी पार्टी चुनाव में जहाँ एक तरफ़ भाजपा को ग़लत बताती थी और विकास के नाम पर छलने की बात करती थी। तो वहीं पर कांग्रेस की नीतियों पर भी सवाल उठाती थी। आम आदमी पार्टी ने कहा कि एक पार्टी विकास के नाम पर छलती है तो दूसरी भ्रष्टाचार करती है । इन दोनों को जनता को इस बार करारा जवाब देना होगा। लेकिन जनता तो जनता है और जनता का जनादेश आदेश। आम आदमी पार्टी जहाँ भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रही थी। वहीं ये दोनों पार्टियां दिल्ली में आम आदमी पार्टी के शासन को जहाँ टॉरगेट कर रही थी। वहीं भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पार्टी में व्याप्त भ्रष्टाचार को ही सामने लेकर आ रहीं थी। ऐसे में आम आदमी पार्टी का सफ़ाई पसंद चेहरा जनता के सामने कुछ इस क़दर बदरंग हुआ कि पार्टी को पंजाब से अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा।
अजस्र पीयूष