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अलविदा 2017- भाजपा के तिलिस्म में जीत कर हार गई कांग्रेस मणिपुर

bjp 9 अलविदा 2017- भाजपा के तिलिस्म में जीत कर हार गई कांग्रेस मणिपुर

नई दिल्ली। साल 2017 की शुरूआत ही रोचक रही राजनीति की गरमाहट के साथ चुनावी रंग ने पूरे साल ही चुनाव की रंगत को बिखेरा। साल की शुरूआत में पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव थे। ये पांच राज्य थे पंजाब,गोवा,मणिपुर,उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश जिसमें भाजपा के पास पंजाब और गोवा में सरकारें थी तो कांग्रेस के पास मणिपुर और उत्तराखंड में वहीं उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इस राज्यों में सभी पार्टियां अपनी सरकार बनाने की कवायद में जुटी हुई थीं। पूर्वोत्तर राज्यों में असम को छोड़कर भाजपा की सरकार कहीं नहीं थी। भाजपा पूर्वोत्तर से कांग्रेस का पत्ता काटना चाहती थी। ऐसे में मणिपुर में कांग्रेस का गढ़ माना जा रहा था। भाजपा का पूरा दारोमदार मणिपुर का काबिज होने का था। वहीं कांग्रेस मणिपुर को बचाना चाह रही थी।

bjp 9 अलविदा 2017- भाजपा के तिलिस्म में जीत कर हार गई कांग्रेस मणिपुर

एंटी इंकमबेंसी और क्षेत्रीय मुद्दों के साथ क्षेत्रीय दलों से तालमेल की कमी कांग्रेस पर पड़ी भारी
15 सालों से मणिपुर में कांग्रेस का शासन था। लेकिन मणिपुर में उग्रवाद, फर्जी मुठभेड़, विवादित अफ़्स्पा क़ानून, बेरोज़गारी, सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार, आर्थिक नाकाबंदी, आम हड़ताल, और घाटी के लोगों के बीच की जातीय टकराव की स्थितियों से कांग्रेस निपटने में नाकाम थी। साथ ही क्षेत्रीय दलों के अलावा की मुद्दों पर कांग्रेस पार्टी के भीतर भी घमासान मचा हुआ था। कई बड़े नेताओं ने ऐन चुनावी माहौल में पार्टी से नाता तोड़ लिया और भाजपा के खेमें में शामिल हो गए। इसके साथ ही लगातार कांग्रेस की ओर से भाजपा को टॉरगेट करने के बजाय अपने ही घर में एक दूसरे पर टॉरगेट करना भाजपा के लिए बड़ा फायदेमंद रहा । पूरे चुनाव के दौरान क्षेत्रीय दलों की नाराजगी भी कांग्रेस के लिए एक बड़ी समस्या बनी रही। क्षेत्रीय दलों की महत्वपूर्ण भूमिका से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ऐसे खड़ा था कि मानो उसे पता ही नहीं था कि किंग मेकर की भूमिका में क्षेत्रीय दल बड़े ही महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं।

एंटी इंकमबेंसी और क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल से मिली सत्ता की चाभी
भारतीय जनता पार्टी इस बार पूर्वोत्तर में असम के बाद अब मणिपुर को टॉरगेट पर लिए हुए थी। मणिपुर में 15 सालों के कांग्रेस के शासन के कारण जहां एक तरफ एंटी इंकमबेंसी थी। तो दूसरी तरफ मणिपुर में उग्रवाद, फर्जी मुठभेड़, विवादित अफ़्स्पा क़ानून, बेरोज़गारी, सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार, आर्थिक नाकाबंदी, आम हड़ताल, के अलावा जातीय हिंसा में कांग्रेस की आंख बंदी। ऐसे में कांग्रेस सरकार के खिलाफ पूरा माहौला था। भाजपा ने इसको टॉरगेट करने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की अगुवाई में पूर्वोत्तर के राज्यों में कांग्रेस मुक्ति के लिए नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस का गठन किया। जिसके तहत छोटे और क्षेत्रीय दलों को साथ जोड़ने और कांग्रेस से नाराज लोगों को अपनी तरफ लाने के लिए प्लानिंग की गई। इसके साथ ही उन मुद्दों का चिन्हित किया गया। जिन पर कांग्रेस ने कोई काम नहीं किया था, ऐसे में कांग्रेस सरकार के 15 साल के कामों के साथ उन क्षेत्रों को भाजपा ने टॉरगेट किया जहां पर विकास भी नहीं पहुंचा था ना ही जातीय मुद्दों पर कांग्रेस का रूख साफ हुआ था। लिहाजा परिणाम स्वरूप भाजपा को 21 सीटें हासिल हुई तो कांग्रेस के पाले में 28 सीटें थी लेकिन सरकार के लिए बहुत किसी के पास नहीं था। ऐसे में भाजपा की क्षेत्रीय दलों की नीति उसके लिए लाभदायक साबित हुई और भाजपा ने मणिपुर का किला जीत कर पूर्वोत्तर में असम के बाद मणिपुर में सरकार बना ली।

Piyush Shukla अलविदा 2017- भाजपा के तिलिस्म में जीत कर हार गई कांग्रेस मणिपुरअजस्र पीयूष

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