लखनऊ। सोमवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद ने बताया कि सिर्फ ज्ञान के ही माध्यम से ईश्वर को समझा नहीं जा सकता है, बिना भाव के भक्ति नहीं मिल सकती।
स्वामी जी ने कहा कि जिस ज्ञान से हम लोग भौतिक वस्तुओं को जानते हैं उसके जरिए हम ईश्वर के गुण समझ नहीं पाएंगे स्वामी जी ने बताया कि एक भक्त ने श्री रामकृष्ण को पूछा था- महाराज ज्ञान के द्वारा क्या ईश्वर के गुण समझे जाते हैं? श्री रामकृष्ण ने कहा वे इस ज्ञान से नहीं समझे जाते एकाएक क्या कोई कभी यह जान सकता है? ‘साधना करनी चाहिए’ एक बात और किसी भाव का आश्रय लेना जरूरी है। जैसे दास्य भाव, ऋषियों का शांत भाव था।
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा भगवान को जानने के लिए कोई भाव आश्रय करना जरूरी है भाव यानी ईश्वर के साथ एक रिश्ता बनाना चाहिए जैसे हनुमान जी का दास्य भाव था, उन्होंने भगवान श्रीराम को प्रभु समझकर अपने को उनका दास समझकर एक आदर्श दास्य भाव का निदर्शन दिया है और इस स्वभाव से ही उनको परम ज्ञान प्राप्त हो गया।
उन्होंने कहा कि श्री रामकृष्ण कहते हैं ऋषिगण का शांत भाव था तो नाना प्रकार का भाव है कोई भी भाव जब तक हम आश्रय ग्रहण नहीं करेंगे, विचार-वितर्क और ज्ञान-चर्चा और बुद्धि से हम भगवान को प्राप्त नहीं कर सकेंगे।
स्वामी जी ने कहा कि हमें ज्ञान के माध्यम से ईश्वर के बारे में जानकारी पहले ले लेना चाहिए उसके उपरांत ईश्वर की भक्ति करना चाहिए। कारण भक्ति की परिपक्व अवस्था भाव है, कोई भी भाव आश्रय ग्रहण करें उस भाव को लेकर अगर हम भगवान की ओर बढ़े तब हम उनका गुण समझ सकते हैं एवं आखिर में उनको प्राप्त कर सकते हैं।