दार्जिलिंग में चल रहे विवाद ने अब एक नया मोड ले लिया है। GJM के साथ GNLF (गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट) हाथ मिलाकर अपना संबंध TMC से तोड़ दिया। पार्टी का कहना है कि वह पार्टी गठन के बाद से ही गोरखालैंड के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। जीएनएलसी के साथ हाथ मिलाकर जहां एक तरफ जीजेएम खासा उत्साहित दिखाई दे रहा है तो वही उसने अपना अगल गोरखालैंड के लिए जंग और भी ज्यादा तेज कर दी है। ऐसे में गुरुवार को सरकारी कार्यालयों में बंद का तीसरा दिन है।
अपनी तेज तर्रार नेता की छवि रखने वाले सुभाष घिसिंग के नेतृत्व बनी GNLF ने काफी पहले गोरखालैंड के लिए अपना आंदोलन शुरू किया था। ऐसे में दार्जिलिंग में गोरखा हिल काउंसिल का निर्माण किया गया था। जिसके बाद गुरुंग ने जीएनएलएफ का साथ छोड़ दिया था। जिसके बाद जीजेएम की स्थापना 2007 में करने के बाद वह पहाड़ों की बड़ी ताकत के रूप में सामने आए।
GNLF के प्रवक्ता जिम्बा का कहना है कि टीएमसी उपहार के जरिए गोरखालैंड की मांगों पर से ध्यान भटका रहे हैं। जिम्बा का कहना है कि GNLF सुभाष घिसिंक के नेतृत्व में बनी है और यह 80 के दशक से गोरखालैंड के लिए संघर्ष कर रहा है। GNLF का लक्ष्य गोरखालैंड राज्य को हासिल करना है। इस बीच बंद का आह्वान करने के बाद भी मिरिक, दार्जिलिंग, कसर्यिंग , कलिम्पोंग में कोई इतनी बड़ी घटना नहीं हुई है। सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा अब अपनी चरम सीमा तक पहुंच गया है। अलग राज्य की मांग कर रहे और स्कूलों में बांग्ला भाषा को अनिवार्य बनाने के विरोध में GJM(गोरखा जनमुक्ति मोर्चा) द्वारा मंगलवार को भी बंद के कारण दार्जिलिंग में अशांति बनी रही। यहां GJM कार्यकर्ताओं ने बंद होने के कारण सरकारी दफ्तरों में तोड़फोड़ की और कोई वाहन को चलने नहीं दिया। ऐसे में GJM कार्यकर्ताओं का कहना है कि बंद होने के कारण यहां कोई वाहन नहीं चलेगा। बंद के कारण बाजार और दुकानें भी बंद रही इक कारण लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। GJM कार्यकर्ताओं का कहना कि पहाड़ी क्षेत्र में घूमने आए पर्यटकों को अपनी सुरक्षा खुद ही सुनिश्चित करनी है उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी नहीं है। वही दार्जिलिंग में स्थिति को सामान्य बनाने के लिए राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से मदद की गुहार लगाई है।