Breaking News featured देश धर्म राज्य

क्या नारायणबलि और नागबलि विधान से मिट जाता है पितृ दोष?

nagbalipooja || narayan bali

पीढ़ी दर पीढ़ी से पितृ दोष के कारण पनप न पाने वाले लोगों व परिवारों के जीवन को बेहतरीन बनाने के लिये नारायणबलि और नागबलि विधान किया जाता है। आइये जानते हैं डिटेल में-

  • धार्मिक डेस्क || भारत खबर

अक्सर हम देखते हैं कि लोग तमाम कोशिश करने के बाद भी अपने क्षेत्र में पीछे रह जाते हैं, तमाम परेशानियों का पीछा करती रहती हैं और लाख कोशिशों के बाद भी वह अपने जीवन में सफलता अर्जित नहीं कर पाते। इन सभी परेशानियों के पीछे की मुख्य वजह होता है पितृ दोष।

पितृ दोष पर इस बार हम आपको बताने जा रहे हैं कि किस तरह से अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं और किन उपायों को आजमा कर आप खुद को सफल बना सकते हैं। शास्त्रों में वर्णन है कि यह दोस्त पीढ़ी दर पीढ़ी आपका पीछा करता रहता है और जब तक आप इसका निवारण ना करें तब तक यह आपको हानि अथवा नुकसान पहुंचाता रहता है।

साल में एक बार लगने वाले श्राद्ध पक्ष में आप पितृ दोष के निवारण के लिए विशेष उपायों को आजमा कर इस से मुक्त हो सकते हैं। इसके निवारण के लिए शास्त्रों में नारायणबलि विधान व नागबलि का वर्णन मिलता है।

क्या नारायणबलि और नागबलि विधान से मिट जाता है पितृ दोष?

नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। नारायणबलि और नागबलि 2 अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि को करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एकसाथ ही संपन्न करना पड़ता है।

नारायणबलि पूजा और नागबलि विधान इसलिये होता है

जिस परिवार में अपने पितरों के लिए तर्पण को विधि विधान पूर्वक नहीं किया जाता उनके घर में अखंडता और तमाम बाधाएं उत्पन्न होती रहती हैं। जिस आत्मा का अंतिम संस्कार विधि विधान पूर्वक ना हो या फिर उनका पिंडदान व तर्पण ठीक से न किया गया हो उनकी आगामी पीढ़ियों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए। परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो, आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है। इसके लिये प्रेत योनि से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है।

क्यों की जाती है यह पूजा?

नारायणबलि व नागबलि विधान का वर्णन शास्त्रों में मिलता है। यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है, जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी 1 साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है। इसके अलावा घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म 1 साल तक नहीं किए जा सकते हैं। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं, वे भी यह विधान कर सकते हैं। संतान प्राप्ति, वंशवृद्धि, कर्जमुक्ति व कार्यों में आ रहीं बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है। यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भधारण से 5वें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है।

इस हाल में हैं तो न करें नारायणबलि व नागबलि?

नारायणबलि गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णय सिन्धु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है। धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृत्तिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये 6 नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है।

पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय

नारायणबलि व नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए। यह कर्म गंगा तट अथवा अन्य किसी नदी-सरोवर के किनारे में भी संपन्न कराया जाता है। संपूर्ण पूजा 3 दिनों की होती है।

श्री पितृलोक अधीश्वर अर्यमा पितृराजाय नम:

Related posts

पाक ने नहीं रोका आतंकवाद तो फिर होगा सर्जिकल स्ट्राइक : बिपिन रावत

shipra saxena

ऑक्सीजन आपूर्ति को लेकर जवाहिर चिकित्सालय बना आत्मनिर्भर

pratiyush chaubey

कार्यवाही बाधित करने को लेकर तेलंगाना के 11 विपक्षी विधायक निलंबित

Rahul srivastava