नई दिल्ली। परम पावनी मां गंगा की पावन गाथा और प्रकटय के पीछे एक लम्बी और मार्मिक कथा है। भागीरथ का वो असम्भव प्रयास है जिसको पूरा करने में 3 पीढ़ी बीत गई थी। तब धरती पर गंगा की पावन धारा का प्राकट्य हुआ था। मां गंगा ही इस देश की एक ऐसी नदी हैं। जिन्होने पूरे भारत में एक छोर से दूसरे छोर को तय किया है। गंगा के जल लेकर कई शोध हुए है। वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा का जल कभी भी सड़ता नहीं है। ना ही बर्षों रखने पर कोई गंध आती है। इसलिए मां गंगा को सबसे पवित्र और पाप नाशक देव तुल्य नदी माना गया है।
गंगा के अवतरण की कथा
गंगा की उत्पति को लेकर एक प्राचीन कथा है। जिसके अनुसार प्राचीनकाल में अयोध्या के राजा सगर हुआ करते थे। जिसने साठ हजार पुत्र थे। राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करने के लिए अपना घोड़ा छोड़ दिया। लेकिन देवराज इन्द्र राजा सगर के यज्ञ से इस कदर भयभीत था कि उसने सगर का यज्ञ असफल करने के लिए वह घोड़ा चुराकर महर्षि कपिल के आश्रम में बांध दिया। जहां पर घोड़ा देखकर सगर के पुत्र ऋषि को अनाप-शनाप कहने लगते हैं। अचानक हुए शोर से ऋषि कपिल की तपस्या भंग हो जाती है। इसके बाद महर्षि कपिल जैसे ही सगर के इन पुत्रों की ओर देखते हैं। तुरंत ही ये 60 हजार पुत्र जल कर भस्म हो जाते हैं। इसके बाद महाराजा सगर आश्रम में आकर महर्षि कपिल से क्षमा याचना करते हैं। अपने पुत्रों की मुक्ति के लिए महर्षि कपिल से उपाय पूछते हैं। क्योंकि क्योंकि पृथ्वी का सारा जल अगस्त्य ऋषि पी गये थे।
जिसके बाद अब मृत आत्मा की शांति तथा तर्पण के लिए कोई नदी नहीं बची थी। तब महर्षि कपिल ने राजा सगर से कहा कि वे जाकर स्वर्ग से गंगा को धरती ले आयें इसके लिए कठोर तप करना होगा तभी इनकी मुक्ति संभव होगी। इसके बाद राजा सगर, उनके बाद अंशुमान और फिर महाराज दिलीप तीनों ने गंगा को धरती पर लाने के लिए कठोर तप किया लेकिन वे अपनी साधना में सफल ना हो सके और उन्होंने प्राण त्याग दिए। भागीरथ के इसी प्रयास के चलते ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर भागीरथ को वर मांगने के लिए कहा इसके बाद भागीरथ ने मां गंगा को धरती पर लाने का वर मांग लिया। तब ब्रह्मा जी ने कहा की भागीरथ गंगा का प्रवाह रोक पाना आसान ना होगा। अगर गंगा अपने वेग से धरती पर आई तो प्रलय मच जायेगी। इसलिए गंगा के वेग को रोकने का सामर्थ केवल भगवान शंकर के पास है। तुमको शिव की शरण में जाना चाहिए। इसके बाद भागीरथ ने भगवान शंकर की एक पांव पर खड़े होकर कठोर तपस्या की इसके बाद शिव प्रसन्न हुए और फिर गंगा का प्राकट्य हो गया।