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आज भी ‘जिंदा हैं बापू’ जहां रखी गई थी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जन आंदोलनों की नींव

जिंदा हैं बापू आज भी 'जिंदा हैं बापू' जहां रखी गई थी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जन आंदोलनों की नींव

नई दिल्ली। :–  देश की आजादी में एक अतुल्य योगदान रखना वाला आश्रम, जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कई जन आंदोलन का साक्षी बना वो है साबरमती आश्रम जो साबरमती नदी के किनारें स्थित है, जहां आज भी बापू की यादें जिंदा हैं। साबरमती आश्रम से ही महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम का ताना बाना बुनना शुरू किया। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी ने गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे अपना आश्रम बनाया और यहां जीवन के कुछ नये प्रयोग किए जैसे खेती, पशु पालन और खादी। इसी आश्रम से महात्मा गांधी ने देश के स्वतंत्रता संग्राम का ताना बाना बुनना शुरू किया।

महात्मा गांधी
महात्मा गांधी

जन आंदोलनों का नेतृत्व

गांधी जी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई जन आंदोलनों का नेतृत्व किया और साबरमती आश्रम सत्याग्रह और डांडी मार्च जैसे आंदोलनों का साक्षी रहा। गांधी जी ने हालांकि 1933 में आज ही के दिन साबरमती आश्रम को छोड़ दिया, लेकिन उनकी यादों को आज भी इस आश्रम में सहेजकर रखा गया है।

  • इस आश्रम में हर रोज करीब 7लाख लोग घूमने आते हैं। हर रोज इस आश्रम के गेट आठ बजे से सात बजे तक खुलता है। इस आश्रम में आज भी वहीं चीजे मौजूद हैं जो महात्मा गांधी प्रयोग किया करते थे।
  • इस आश्रम को आज म्यूजियम घोषित किया जा चुका है जिसमें हाथ का चरखा और उनके द्रारा प्रयोग की गई लेखन की टेबल को आज भी वैसा ही रखा गया है जैसा वो गांधी जी के समय में था।
  • गांधी जी की उन सभी चीजों को आज भी वैसा ही रखा गया है जो जैसा था जो वहां गए लोगों को महसूस कराता है कि बापू इस देश को छोड़कर नहीं गए हैं बल्कि आज भी जिंदा है सिर्फ इस आश्रम में। उनकी चीजें जिदां हैं उनके साबरमती आश्रम में।
  • गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से ही दांडी मार्च आरम्भ किया था। 241 मील की दूरी करके 5 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचे और अगले दिन नमक-क़ानून तोड़ कर स्वतंत्रता संग्राम में एक नया अध्याय जोड़ दिया। जनता में एक नया जोश उमड़ गया और भी कई आंदोलनों की रणनीति यहीं बनी।

हृदय-कुञ्ज

गुजरात के साबरमती आश्रम में गांधी जी जब वहां होते तो वहां सिर्फ एक छोटी सी कुटियां में रहते जो आज भी वहां मौजूद हैं जो उनके होने का आभास कराती है। जिसे आज भी “हृदय-कुञ्ज” कहा जाता है। यह ऐतिहासिक दृष्टि से अमूल्य निधि है जहाँ उनका डेस्क, खादी का कुर्ता, उनके पत्र आदि मौजूद हैं।

 प्रार्थना भूमि 

प्रार्थना भूमि में एकत्रित होकर गांधी जी हर रोज सुबह-शाम में  प्रार्थना करते थे। यह प्रार्थना भूमि गांधी जी द्वारा लिए गए कई ऐतिहासिक निर्णयों की साक्षी रह चुकी है। जहां जाकर आज भी गांधी जी जिंदा हैं

नंदिनी अतिथिगृह

आश्रम के एक मुख्यद्वार से थोडी दूरी पर स्थित है-गेस्ट हाउस नंदिनी। यहाँ देश के कई जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी जैसे- पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी.राजगोपालाचारी, दीनबंधु एंड्रयूज और रवींद्रनाथ टैगोर आदि जब भी अहमदाबाद आते थे तो यहीं ठहरते थे।

उद्योग मंदिर

गांधी जी ने हस्तनिर्मित खादी के माध्यम से देश को आज़ादी दिलाने का संकल्प लिया था। उन्होंने मानवीय श्रम को आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का प्रतीक बनाया। यही वह जगह थी, जहां गांधी जी ने अपने आर्थिक सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप दिया। यहीं से चरखे द्वारा सूत कातकर खादी के वस्त्र बनाने की शुरुआत की गई। देश के कोने-कोने से आने वाले गांधी जी के अनुयायी इसी आश्रम में रहते थे और यहां उन्हें चरखा चलाने और खादी के वस्त्र बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था।

आश्रम में उद्योग मंदिर की स्थापना 1918 में अहमदाबाद के टेक्सटाइल मिल के कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान की गई थी। इसके अलावा कस्तूरबा की रसोई इस आश्रम के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। यहाँ उनकी रसोई में इस्तेमाल किए जाने वाले चूल्हे, बर्तनों और अलमारी को देखा जा सकता है। अगर आपने अभी तक बापू का साबरमती आश्रम नहीं देखा है तो आप एक बार जरुर जाकर देखें वहां बापू की उन चीजों को देख लगता है…बापू आज भी जिंदा है।

                                                      सत्य और अंहिसा का पाठ पढ़ाने वाले
                                                                   ब्रिटिश हुकुमत की नींव हिलाने वाले
                                                       मर कर भी जिंदा हैं वो बापू दिलों में आज हमारें

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BY-MOHINI KUSHWAH

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