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पत्रकार से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक का वाजपेयी का ‘अटल’ सफर

16 53 पत्रकार से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक का वाजपेयी का ‘अटल’ सफर

नई दिल्ली: बीजेपी के वरिष्ठ नेता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की तबियत लगातार खराब होती जा रही है। कल रात जारी किये गये मेडिकल बुलेटिन में बताया गया कि बाजपेई जी की तबियत 24 घंटे से ज्यादा खराब है। बाजपेई जी के ठीक होने के लिए देश भर में दुआओं का दौर जारी है। एम्स हॉस्पिटल में नेताओं और समर्थकों की भीड लगी हुई है।

16 53 पत्रकार से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक का वाजपेयी का ‘अटल’ सफर

अटल की पूरा राजनीतिक जीवन यहां पढ़ें

अटल का जन्म

अटल बिहारी वाजपेई अगर राजनीति में न आते तो शायद वो कवि होते या पत्रकार होते, अटल जी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। पिता ग्वालियर मे शिक्षक थे कविता लिखने का शौक उन्हे बचपन से था, अटल छात्र जीवन से ही आरएसएस से जुड गए, संघ की सभाओं में जाकर खूब कविताएं सुनाते थे, ग्वालियर के बिक्टोरिया कालेज से बीए और कानपुर के डीएबी कालेज से एमए किया, फिर वाजपेई ने पत्रकारिता को अपना करियर चुना, कई पत्रिकाओं का उन्होने संपादन भी किया, वाजपेई के बोलने की असाधारण शक्ति ने देश के बड़े नेताओं को काफी प्रभावित किया, फिर 1951 में बाजपेई भारतीय जनसंघ में शामिल हुए।

राजनीतिक शुरुआत खराब रही

हालाकि अटल जी की राजनीतिक  शुरुआत खराब रही और 1956 में अपना पहला चुनाव हार गए लेकिन 1957 में बलराम पुर लोकसभा सीट से वाजपेई को जीत मिली, और वाजपेई पहली बार संसद पहुंचे, वाजपेई के पहले भाषण से ही पूरी संसद उनकी मुरीद हो गई, 1968 से 1973 तक वाजपेई जनसंघ के सदस्य रहे, आपात काल के दौरान वाजपेई ने इंदिरा सरकार पर जमकर निशाना साधा, जिस कारण सरकार ने उन्हे जेल में ठूस दिया, आपात काल की समाप्ति के साथ ही फिर  1977 में जनता पार्टी की सरकार बने, और उस सरकार में वाजपेई को विदेश मंत्री बनने का मौका मिला, फिर इसी कार्यकाल में संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में जब बाजपेई ने हिंदी में भाषण दिया, तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया दंग हो गई।

वाजपेई ने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर दिया बयान

फिर 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी का गठन किया गया और वाजपेई बीजेपी के अध्यक्ष बने और संसदीय दल के नेता भी, इसी दौरान 90ब्बे के दशक में राममंदिर मुद्दा गरम था, अयोध्या में कारसेवको का हुजूंम लगा हुआ था, वाजपेई कट्टरता के समर्थक नहीं थे, लेकिन सवाल पार्टी हित का था लिहाजा अटल ने वही किया जो पार्टी के लिए सही था और 6 दिसबंर 1962 को कारसेवको ने विवादित ढ़ांचे को गिरा दिया, देश की धर्म निरपेक्षता तार-तार हो गई, फिर वाजपेई ने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर संसद में पार्टी के इस कदम का घोर विरोध किया।

पहली बार प्रधानमंत्री बने

फिर वाजपेई का कद लगातार ऊंचा होता चला गया, और एक बार देश आम चुनाव के लिए तैयार हो गया, फिर 1996 में पार्टी ने उन्हे पीएम पद का उम्मीदवार बनाया गया, फिर 16 मई 1996 को अटल विहारी वाजपेई पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन बहुमत के अभाव में अटल सरकार मात्र 13 दिनो में गिर गई,  फिर 1998 में देश एक बार फिर लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गया,  और अटल जी अगुवाई में बीजेपी का परचम फिर लहराया. 19 मार्च 1998 को अटल जी देश के दोबारा प्रधानमंत्री बने, सत्ता में आने के महज एक महीने बाद अटल जी की सरकार में पोखरण में पांच परमाणु बिस्फोट किए गए और अटल ने पूरे विश्व को अपना अटल रूप दिखा दिया।

पाकिस्तान को दिया था जवाब

फिर इसी बीच अटल जी ने पाकिस्तान के साथ शांति वार्ता पर एक कदम बढाते हुए बात की, दिल्ली और लाहौर के बीच बस सेवा की शुरुआत करते हुए पाकिस्तान पहुंच गए, लेकिन इसी बीच एनडीए की सहयोगी पार्टी aiadmkने अपना सहयोग वापस ले लिया और एन वक्त पर मायावती ने पाला बदला और महज एक बोट से अटल जी की सरकार फिर गिर गई,  और इस बार अटल जी का कार्यकाल मात्र 13 महीने तक चला, वहीं वाजपेई जी देश के कार्यकारी प्रधानमंत्री बने रहे, इसी दौरान पाकिस्तान ने धोखा देते हुए गुपचुप तरीके से कश्मीर मे करगिल सहित भारत की कई चोटियों पर कब्जा कर लिया, फिर इस घुसपैठ का जबाव देते हुए अटल जी ने आपरेशन विजय का एलान किया, फिर तीन महीनों तक चले इस युध्द में भारत ने पाक सेना को मार कर चोटियों पर फिर से तिरंगा लहराया।

तीसरी बार प्रधानमंत्री बने

फिर 1999 में एक बार फिर आम चुनाव हुए  फिर अटल जी के अगुवाई में nda ने 303 सीटों पर जीत हासिल की, फिर अटल जी देश के तीसरी बार प्रधान मंत्री बने, फिर इस कार्यकाल में वाजपेई जी ने कई योजनाओं की शुरु आत की, वहीं एक बार फिर पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की कवायद शुरु की गई, लेकिन उस शुरुआत के बदले भारत को एक बार फिर विश्वास घात का सामना करना पड़ा और 13 दिसबंर 2001 को संसद में आतंक वादियों ने हमला कर दिया, फिर सरकार की सूझबूझ और सैनिको की अटूट साहस की बजह से आतंकियो को मार गिराया गया, फिर अटल जी की धीरे धीरे तबियत खराब होने लगी, और उनके दोनों घुटनों की सर्जरी कराई गई. फिर अटल जी ने सियासत को अलविदा कह दिया।

लगातार खराब रही अटल की तबियत

अटल बिहारी वाजपेई अब सियासत में नहीं है सत्ता में नहीं है संसद में नहीं है लेकिन लोगो के दिल में अटल ने अटल छाप छोड रखी है, अटल की अटल ईमानदारी पर विपक्ष को कभी शक नहीं हुआ, और मौजूदा की केंद्र सरकार ने 2014 को भारत रत्न देकर सम्मानित किया गया, और अब अटल बिहारी वाजपेई की तबियत लगातार खराब चल रही है, पक्ष और विपक्ष के तमाम नेता उनकी तबियत की जानकारी लेने के लिए एम्मस पहुंच रहे है।

by ankit tripathi

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