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जलियाँवाला बाग का बदला लेने वाले क्रांतिकारी उधम सिंह

उधम सिंह

आज क्रांतिकारी उधम सिंह की शहादत का दिन है। बात उस वक्त की है जब भारत पर अंग्रेजों का कब्जा जा था और अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे। अंग्रेजो के द्वारा किए जा रहे जुल्म से हर एक भारतीय परेशान था। बहुत सारे स्वतंत्रा सेनानी ऐसे हुए जिन्होंने भारतीयों के हक के लिए लड़ाई लड़ी और अपनी जान भी गंवाई। ऐसा ही एक नाम है स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह का। जिन्होंने 13 मार्च 1940 को लंदन में हो रही ब्रिटिशों की बैठक मैं शामिल होकर एक ब्रिटिश अधिवक्ता को गोली मार दी। बैठक 13 मार्च 1940 की शाम लंदन के कैक्सटन हॉल में हो रही थी। हॉल लोगों से खचाखच भरा हुआ था। बैठक ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की थी। इस बैठक के दौरान हॉल में कई भारतीय मौजूद थे जिनमें एक उधम सिंह भी थे। जिनके पास एक मोटी सी किताब थी यह किताब एक मकसद के लिए यहां लाई गई थी। जिसके भीतर के पन्नों को इस तरह काटकर एक रिवाल्वर छुपाई गई थी। बैठक खत्म होते ही सब लोग अपनी अपनी जगह से उठकर जाने लगे तभी उधम सिंह ने वह किताब खोली और रिवाल्वर निकालकर माइकल ओ डायर नाम के वक्ता पर गोली चला दी। डायर को दो गोली लगी और पंजाब के इस पूर्व गवर्नर की मौके पर ही मौत हो गई। गोली चलते ही हॉल में भगदड़ मच गई लेकिन उधम सिंह वहीं पर मौजूद रहे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उधम सिंह पर मुकदमा दायर हो गया और ब्रिटेन में ही उन पर मुकदमा चला। 31 जुलाई 1940 को उसे को फांसी हो गई।

उधम सिंह ने अपने संकल्प को किया पूरा

उधम सिंह एक ऐसे नौजवान के रूप में जाने जाते हैं जिसने एक संकल्प को 21 साल तक अपने सीने में दबाए रखता है। यह संकल्प एक घटना से जुड़ा है। 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग में जनरल डायर के आदेश पर निहत्थे वह बेकसूर हजारों भारतीयों को मार दिया गया था जलियांवाला बाग हत्याकांड में यह नौजवान भी था जिसने अपनी आंखों से इस खौफनाक मंजर को देखा था। उसी दिन उधम सिंह ने यह संकल्प कर लिया कि वह जनरल डायर को मारकर इस नरसंहार का बदला लेगा।

उधम ने लिया जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला

उधम सिंह ने जब जनरल डायर को इंग्लैंड में मारकर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया तो इस हत्याकांड के बदले की गूंज पूरे भारत में गूंज उठी। 1940 में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में उधम सिंह जिंदाबाद के नारे लगे और साथ ही कांग्रेस अधिवेशन में उधम सिंह के इस साहसी कार्य की सराहना की गई। उधम सिंह की मौत के बाद उन्हें क्रांतिकारी घोषित कर दिया गया। तभी से उधम सिंह को एक स्वतंत्र सेनानी के रूप में माना जाने लगा। उधम सिंह की साहस और बलिदान की कहानी को एक संकल्प और बदला लेने के जुनून के तौर पर देखा जाने लगा। उधम सिंह भगत सिंह की तरह एक साथ ही क्रांतिकारी थे।

सुनाम गांव में पैदा हुए उधम सिंह

उधम सिंह 26 जनवरी 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में पैदा हुए थे। बचपन में उनका नाम शेर सिंह था। 7 साल की उम्र में मां और बाप दोनों का साया उठ जाने से वह अनाथ हो गए। तब उन्हें अपने बड़े भाई मुक्ता सिंह के साथ अमृतसर के खालसा अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। अनाथालय में ही उन्हें उधम सिंह नाम मिला और बड़े भाई को साधु सिंह। 1917 में साधु सिंह की मृत्यु हो गई फिर भी उधम सिंह ने हिम्मत नहीं हारी और 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड होने के बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन में दाखिल हुए। इसी के साथ में पढ़ाई भी कर रहे थे पढ़ाई के दौरान ही लाहौर में उनकी भगत सिंह से मुलाकात हुई। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उधम सिंह दलित समुदाय से आते थे। उधम सिंह का बलिदान स्वाधीनता आंदोलन में दलितों की भागीदारी को दर्शाता है। यह बात अलग है कि दलितों के बलिदान को न तो इतिहास में जगह मिली और न ही स्वाधीनता संग्राम सेनानियों की तैयार सूची में उनका नाम दर्ज किया गया।

मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा ने उठाया धार्मिक राष्ट्रवाद

8 और 9 सितंबर को फिरोज शाह कोटला मैदान दिल्ली में हिंदुस्तान सोशल रिपब्लिकन एसोसिएशन की बैठक में ब्रिटिश शासन को खत्म करके भारत को एक समाजवादी देश के रूप में स्थापित करने का सपना क्रांतिकारियों के द्वारा बुन लिया गया। मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा ब्रिटिश हुकूमत का सहयोग करते हुए धार्मिक राष्ट्रवाद के मुद्दे को उठा रहे थे। कौम के आधार पर दो अलग- अलग राष्ट्र की बात करने वाले यह दोनों संगठन बुनियादी तौर पर एक ही दृष्टि से संपन्न थे

कांग्रेस ने लोगों को बताया राष्ट्र

कांग्रेस धार्मिक राष्ट्रवाद के विचार के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन के मूल्यों से अपने को समृद्ध कर रही थी साथ ही उसने ब्रिटिश पार्लियामेंट के पैटर्न और भारत की परंपराओं को भी अपने राष्ट्र के विचार में जोड़ा। कांग्रेस और उसकी विचारधारा क्रांतिकारी आंदोलनों के प्रतीकों के नारों की व्याख्या करती है। अर्थात एक प्रकार से क्रांतिकारी आंदोलन कार्यों के राष्ट्रवाद की बुनियाद पर कांग्रेस का राष्ट्रवाद गड़ा जाता है। जिसमें स्पष्ट तौर पर राष्ट्र का अर्थ लोगों से हो जाता है

लम्बे समय तक किया अंग्रेजों ने जुल्म

अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों का एक लंबा इतिहास है। जलियांवाला बाग हत्याकांड उसकी एक निर्मम कड़ी है। इसकी पृष्ठभूमि में अंग्रेजों का काला कानून रॉलेक्ट एक्ट है। इस कानून के तहत अंग्रेज सरकार किसी भी भारतीयों को बिना कारण बताए गिरफ्तार कर सकती थी उसे जितने दिन चाहे बिना किसी सुनवाई के जेल में रख सकती थी। गांधी ने इसे काला कानून करार देते हुए कहा था कि वकील, दलील और अपील की कोई गुंजाइश इसमें नहीं है। इसे भारत स्वीकार नहीं करेगा। इसको लेकर जगह-जगह पर विरोध प्रदर्शन हुए

कांग्रेस ने बनाई बदले की रणनीति

कांग्रेस की नरम और गरम दलीय राजनीति ने बरक्स क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के अत्याचार अन्याय और अपमान का बदला लेने और उनके जुल्मों पर प्रहार करने की रणनीति बनाई। वास्तव में देश भक्ति और राष्ट्र के मौजूं प्रतीक और नारे क्रांतिकारी आंदोलन ने सर्जित किए। भारत माता की संकल्पना, वंदे मातरम और इंकलाब, जिंदाबाद जैसे नारों के साथ क्रांतिकारियों ने आत्म बलिदान को परम नैतिक मूल्य बनाया। राष्ट्रवाद की इसी स्पष्ट विचारधारा, उसके प्रतीक और नैतिक मूल्य क्रांतिकारी आंदोलन में दिखाई पड़ते हैं। इतना ही नहीं, इन नौजवानों के पास भारत के भविष्य और उसकी राजनीति की भी स्पष्ट समझ दिखाई पड़ती है

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