वाराणसी। धर्म नगरी वाराणसी सहित पूरे देश में हरिशयनी एकादशी मंगलवार से सनातनी परम्परा में चार माह तक कोई मांगलिक कार्य नहीं होगा। आज से चार माह तक चराचर जगत के पालन हार श्री हरि (भगवान विष्णु) पाताल लोक में क्षीर सागर में शेषशैया पर विश्राम करेंगे। श्री हरि कार्तिक एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) 31 अक्टूबर को जागेंगे। इसके बाद सभी मांगलिक कार्य प्रारम्भ होंगे।
इसके पूर्व सोमवार की देर रात ही शहनाई पर मंगल धुन के बीच मांगलिक कार्य ठप हो गए। मंगलवार से संत चार माह तक चातुर्मास पर रहेंगे। नगर के जाने माने ज्योतिषविद आचार्य राजकिशोर पांडेय ने बताया कि चातुर्मास में साधु-संत यात्रा पर नहीं निकलते। अपने आश्रम, मठ या मंदिर में एक ही स्थान पर रहते हुए जप, तप, अनुष्ठान करते हैं।
इस दौरान काशी पुराधिपति की नगरी में अध्यात्म और सत्संग की दरिया बहती हैं। जगह-जगह श्रीमद्भागवत कथा और शिवमहापुराण की कथा होती है। गृहस्थ भी श्रीमद्भागवत कथा, शिवमहापुराण कथा का श्रवण कर सन्तों के सानिध्य का लाभ उठाते हैं।
शास्त्रों में बताया गया है कि जब भगवान विष्णु सो जाते हैं तब से भगवान के जागने तक कोई भी शुभ काम जैसे विवाह जनेऊ मुडंन गृहप्रवेश नहीं कराना चाहिए क्योकिं भगवान इन कार्यों में भगवान का आशीर्वाद नहीं होता इसलिए इसे अपूर्ण व अशुद्ध माना जाता है। मकान के निर्माण के लिए नींव रखने के लिए यह समय शुभ नहीं माना जाता है।
31 अक्टूबर से शादी विवाह जैसे शुभ कार्यों पर लगा विराम चार महीने बाद हट जाएगा देवउठनी एकादशी का दिन भी विशेष रुप से विवाह के लिए मंगलकारी है इस दिन चतुर्मास बाद भगवान विष्णु निद्रा से जागते है इसलिए ये स्थिति अबूझ मुहूर्त मानी जाती है इसी दिन से शुभ कार्यों के बंद दरवाजे खुलते है।