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जिसके साहस का गवाह है किले का हर कोना, आज भी जिंदा है वो वीरांगना

जिसके साहस का गवाह है किले का हर कोना आज भी जिंदा है वो वीरांगना जिसके साहस का गवाह है किले का हर कोना, आज भी जिंदा है वो वीरांगना

नई दिल्ली।  भारतीय इतिहास  में अपना नाम सुनहरें शब्दों में दर्ज कराने वाले भारतीय वसुंधरा को गौरवान्वित करने वाली झांसी की रानी आज भी उस किले में जिंदा हैं जिसके लिए उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के आगे सिर झुक जाने से अच्छा अपना सिर कटवाना मंजूर किया। रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी थीं और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकुमत के विरुद्ध बिगुल बजाने वाले वीरों में से एक थीं।

 रानी लक्ष्मीबाई
रानी लक्ष्मीबाई

वे ऐसी वीरांगना थीं जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में ही ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से मोर्चा लिया और रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गयीं परन्तु जीते जी अंग्रेजों को अपने राज्य झाँसी पर कब्जा नहीं करने दिया। आज भले ही वीरों के मुकाबलें खड़ी होने वाली लक्ष्मीबाई इस देश की मिट्टी में समां गई हो लेकिन उनके किले में आज भी वो जिंदा हैं।

रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी किसी से छिपी नहीं है। जीते जी अपने राज्य को ब्रिटिश हुकूमत के हाथों ना दिए जाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के इस ऐतिहासिक किले का हर कोना कोना इनके साहस का गवाह है। एक समय में अंग्रेजो ने किले का अस्तित्व खत्म करने के लिए किले पर 60-60 सेर वजनी तोपों के गोले बरसाए थे। इतना ही नही, उन्होंने कई बार इस पर आक्रमण भी किया। इसके बाद भी 400साल से ये किला आज भी वैसा ही खड़ा हुआ है।

झांसी के किले की खासियत

झांसी के किले का निर्माण 1613 में ओरछा साम्राज्य के शासक और बुन्देल राजपूत के चीफ बीर सिंह देव ने किया था। बुंदेला का यह सबसे शक्तिशाली गढ़ हुआ करता था।, महाराजा की मृत्यु के एक दिन पहले उसका नाम बदला गया था।

21 नवंबर, 1853 को रानी लक्ष्मी बाई के पति गंगाधर की भी मौत हो गयी जो उस समय झांसी के राजा हुआ करते थे।  पति की मौत के बाद जनरल डलहोजी ने दामोदर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया। (दत्तक पुत्र थे ) रानी लक्ष्मी बाई को यह सब मंजूर नहीं था उसका खून खौल उठा। और उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने का एलान कर दिया।

झांसी की सेना के आगे अंग्रेज सेना खुद को बेबस मानने लगी रानी की किलाबंदी और उनका जज्बा अंग्रेजों पर भारी पड़ने लगा था। दोनों हाथों में तलवार लेकर घोड़े पर सवार और पीठ पर बच्चे को बांधकर यह देश की शेरनी अंग्रेजों पर टूट पड़ी अंग्रेजों को अब लक्ष्मी बाई की शक्ति का अंदाजा हो गया था। जय-जय भवानी और महादेव से भूमि गूंज उठी थी।

बलिदान और हिम्मत की  प्रेरणादायक

लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को पीठ से बाँधें हुए युद्ध कर रही थीं जो आज हर स्त्री के लिए  बलिदान और हिम्मत की  प्रेरणादायक है। रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लोहा लेने वाली पहली महिला थीं। झांसी की सेना अंग्रेज सेना के मुकाबले बहुत कम थी वो पूरी सिद्दत के साथ दुश्मनों का डटकर मुकाबला कर रहे थे। धन और सेना की कमी होने के कारण अंग्रेजों ने झांसी के किले पर कब्जा कर लिया। लक्ष्मी बाई ने कालपी की तरफ़ बढना शुरू कर दिया।

अचानक एक गोली उनके पैर में आ लगी और उनकी गति धीमी हो गयी जिसके कारण अंग्रेजों ने बाई को चारों तरफ़ से घेर लिया। एक अंग्रेज सेनिक ने लक्ष्मी के पीछे से उनके सिर पर बार कर दिया अत्यंत घायल हो चुकी रानी ने उन अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद रानी के कुछ सेनिकों ने रानी को बाबा गंगादास की कुटिया में पहुंचाया और कुटिया में जल पीने के बाद लक्ष्मी बाई ने दम तोड़ दिया। हालाकिं आज भी उनका के उस किले में रानी लक्ष्मीबाई जिंदा है।

                                                                                         वीरो के साथ वीरांगना बनी
                                                                                बनी  बलिदान और हिम्मत की प्रेरणा
                                                                              मर कर भी जिंदा हैं आज ऐसी वीरांगना

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mohini जिसके साहस का गवाह है किले का हर कोना, आज भी जिंदा है वो वीरांगना

BY MOHINI KUSHWAH

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