देशभर में एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलितों में काफी रोष है जिसे लेकर सोमवार को भारत बंद का एलान भी किया गया। जिसका सपोर्ट बसपा समेत कई पार्टियों ने किया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस दौरान देश के कई हिस्सों में मचे उत्पात के बाद भी अपने फैसले पर अडिग है। दलितों का मसीहा कही जाने वाली बसपा सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती पर पूर्व डीजीपी और हाल में बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता बृजलाल ने सबसे पहले एससी-एसटी एक्ट को कमजोर करने का आरोप लगाया है।
बृजलाल ने 20 मई 2007 का शासनादेश का हवाला देते हुए कहा कि तत्कालीन मायावती सरकार में पुलिस को स्पष्ट निर्देश थे कि हत्या और बालात्कार जैसे मामलों में ही एससी-एसटी एक्ट लगाया जाए। छोटे मोटे मामलों में इस एक्ट को न लगाया जाए।
आपको बता दें कि बृजलाल बसपा सरकार में मायावती के चहिते अधिकारियों में से एक थे। बृजलाल ने आरोप लगाया है कि मायावती दलितों की मसीहा नहीं हैं, बल्कि दलितों के सम्मान और सुरक्षा के लिए बने एससी-एसटी एक्ट को उन्होंने अपने आदेश से कमज़ोर किया था। बृजलाल ने आगे कहा कि तत्कालीन सरकार सरकार में मुख्य सचिव शंभूनाथ की ओर से जारी इस शासनादेश का पालन करवाना परवाना सभी पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी थी।
इस शासनादेश में लिखा है कि छोटे-मोटे मामलों में इस एक्ट में मुकदमे ही न दर्ज़ किए जाएं। बृजलाल ने बताया कि पुलिस तो हमेशा से ही मुकदमे दर्ज करने से बचना चाहती है और उसपर इस तरह का आदेश दलितों के उत्पीड़न को और बढ़ावा देगा।
महिला के साथ रेप के मामलों में शिकायत पर तुरंत एफआईआर दर्ज करने की व्यवस्था है, लेकिन इस आदेश के अनुसार एससी-एसटी महिला के साथ बलात्कार की पुष्टि जब मेडिकल में हो जाए तभी बलात्कार और एससी-एसटी एक्ट की धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की जा सकेगी। बृजलाल ने आरोप लगाया कि मायावती सरकार के समय ही इस एक्ट को कमज़ोर किया गया। मारपीट, लूट, छेड़छाड़ जैसे मामलों में इस एक्ट का इस्तेमाल नहीं किया गया।
बृजलाल ने आगे कहा कि बसपा सरकार की मंशा थी कि यदि दलितों के उत्पीड़न के मामले सही तौर पर दर्ज़ होंगें तो प्रदेश में संदेश जाएगा कि उनकी ही सरकार में दलितों का उत्पीड़न बढ़ा है। ये संदेश न जाए सिर्फ इसलिए मायावती सरकार में एससी-एसटी एक्ट को कमज़ोर किया गया।