लखनऊ। बीजेपी के पूर्व सांसद और राम जन्मभूमि न्यास से जुड़े डॉ राम विलास वेदांती ने आर्ट ऑफ़ लिविंग के मुखिया आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के अयोध्या में प्रवेश पर सरकार से प्रतिबंध करने की मांग की है। वेदांती का कहना है कि श्रीश्री रविशंकर का अयोध्या मामले से कोई लेना-देना नहीं है और वे बिना वजह समझौते के लिए अलग फार्मूला बना रहे हैं, जिसे राम जन्मभूमि से जुड़े लोग स्वीकार नहीं करेंगे। वेदांती ने आगे कहा कि श्रीश्री रविशंकर का अचानक राम प्रेम किसी के गले नहीं उतर रहा है और उन्हें श्री राम जन्मभूमि के नाम पर व्यापार नहीं करने दिया जाएगा।
बता दें कि गोरखनाथ मंदिर के होलिकोत्सव में हिस्सा लेने पहुंचे डा. वेदांती ने दिल्ली रवाना होने से पहले श्रीश्री रविशंकर के अयोध्या मामले में हस्तक्षेप पर संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा कि वे किसी देवी-देवता को मानते नहीं है। राम जन्मभूमि का मसला देश के संतों, आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी ने प्रमुखता से उठाया है और इसके लिए बहुत सारे नेता और संत जेल भी गए हैं। जन्मभूमि आंदोलन में श्रीश्री कहीं भी पता नहीं था। अब वे हस्तक्षेप कर रहे हैं, जिसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।
वहीं श्रीश्री पर हमला बोलते हुए वेदांती ने कहा कि रविशंकर आर्ट ऑफ लिविंग नाम का एनजीओ चलाते हैं और वे राम जन्मभूमि को भी एनजीओ समझ रहे हैं. उन्हें यह व्यापार नहीं करने देंगे। शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन सैयद वसीम रिजवी पर वेदांती ने कहा कि रिज़वी उस मीर बाकी के खानदान से हैं, जिन्होंने बाबरी मस्जिद बनवाई थी और जब उनका कहना है कि देश के 80 प्रतिशत मुसलमान चाहते हैं कि मंदिर वहीं बने, जहां रामलला विराजमान है तो इसको लेकर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उनकी बातों पर आपत्ति करने का अधिकार किसी को नहीं है।
वहीं दूसरी ओर श्रीश्री ने अयोध्या विवाद पर कहा है कि अगर यह विवाद नहीं सुलझा तो भारत सीरिया बन जाएगा। श्रीश्री अयोध्या विवाद को अदालत के बाहर सुलझाने की वकालत करते रहे हैं और उन्होंने सोमवार को फिर जोर देते हुआ कहा कि मामला कोर्ट के बाहर ही सुलझाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि यह मामला नहीं सुलझा तो देश सीरिया बन जाएगा। अयोध्या मुस्लिमों का धार्मिक स्थल नहीं है। उन्हें इस धार्मिक स्थल पर अपना दावा छोड़ कर मिसाल पेश करनी चाहिए।
साथ ही उन्होंने कहा कि अदालत में चले रहे मामले पर श्रीश्री कहते हैं कि अगर अदालत से फैसला अगर आया भी तो लोग स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि एक पक्ष को हार स्वीकार करना पड़ेगा। हारने वाला पक्ष मान भी जाएगा, लेकिन कुछ समय बाद फिर विवाद शुरू हो जाएगा।