नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन सर्वाधिक कठिन वैश्विक चुनौतियों में से एक है। वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर ठोस कदम उठाने की अनिवार्यता को जरूरत से ज्यादा महत्व नहीं दिया जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस 23 सितम्बर, 2019 को न्यूयॉर्क में ‘क्लाइमेट एक्शन समिट’ की मेजबानी करेंगे, ताकि विश्व भर में जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए और भी अधिक आवश्यक कदम उठाए जा सकें।
एक जवाबदेह राष्ट्र होने के नाते भारत ने सतत विकास और गरीबी उन्मूलन की अनिवार्यताओं को ध्यान में रखते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में कमी सुनिश्चित करने के लिए अपनी ओर से अथक प्रयास किए हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए और भी अधिक आवश्यक कदम उठाने के वैश्विक आह्वान को ध्यान में रखते हुए इसे विकसित देशों से विकासशील देशों को जलवायु वित्त मुहैया कराने के लिए पर्याप्त प्रावधान करना होगा, जैसा कि साझा, लेकिन भिन्न-भिन्न जिम्मेदारियों और समानता के सिद्धांतों के तहत जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) में उल्लेख किया गया है। जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के ठोस कदमों में जलवायु वित्त एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है। दरअसल इस समस्या से निपटने के लिए हाल ही में जो अनुमान लगाए गए हैं उनके मुताबिक नए एवं अतिरिक्त वित्त पोषण के तहत बिलियन डॉलर नहीं, बल्कि ट्रिलियन डॉलर की जरूरत पड़ेगी।
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने ‘अधिक ठोस कदमों के लिए जलवायु शिखर सम्मेलन : भारत की ओर से वित्तीय परिप्रेक्ष्य’ शीर्षक वाला परिचर्चा पत्र पेश किया है। इसमें जलवायु वित्त के विभिन्न मुद्दों पर व्यापक विचार मंथन किया गया है। जिसमें जलवायु संधियों में वित्त, जलवायु वित्त की उपलब्धता– वास्तविकता की जांच, जलवायु वित्त के तीन आवश्यक ‘एस’ यानी स्कोप, स्केल और स्पीड, आर्थिक अनिवार्यताओं के बावजूद भारत की ओर से जलवायु परिवर्तन संबंधी कदम, नई प्राथमिकताओं का उभरना, इत्यादि शामिल हैं।