मुंबई। काफी दिनों से चर्चा में रही किंग खान की रईस फिल्म आखिरकार आज सिनेमाघर में रिलीज हो गई है। सालों तक रोमांस के बादशाह इस बार कंप्लीट मसालेदार फिल्म के हीरो के तौर पर लौटे हैं और हर रंग में रंगे हुए नजर आते हैं। ये फिल्म उनके फैंस का दिल जीतने वाली है। हालांकि फिल्म में शाहरुख की तुलना में पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान को करने के लिए कुछ ज्यादा नहीं था, लेकिन जो मिला, वो उन्होंने बढ़िया अंदाज में किया। वे मोहसिना के रोल में अपना असर छोड़ने में कामयाब रही हैं।
शाहरुख के अलावा नवाजुद्दीन ने किया दमदार काम:-
शाहरुख खान के बाद अगर कोई तालियां बंटोरता है, तो वे नवाजुद्दीन हैं, जिन्होंने मजूमदार के रोल में कमाल का काम किया है। उनकी मौजूदगी फिल्म के परदे को जीवंत कर देती है। आंखों से अभिनय और जोरदार संवादों ने नवाज की परफॉरमेंस को और जानदार बना दिया। रईस के दोस्त के रोल में जीशान एक बार फिर बहुत अच्छे रहे। सहायक भूमिकाओं में अतुल कुलकर्णी, नरेंद्र झा, (शराब माफिया के बॉस) बेहतरीन रहे हैं। लैला मैं लैला.. में सनी लियोनी की अदाएं दर्शकों का दिल जीतने वाली हैं।
80 के दशक पर बनी है किंग खान की रईस:-
रईस की कहानी का फॉरमेट 80 का दशक है, जब गुजरात में शराब पाबंदी के बाद भी महाराष्ट्र और आसपास के इलाकों से गुजरात में धड़ल्ले से अवैध शराब की तस्करी होती थी। पेट पालने की गरज से बचपन से क्राइम की दुनिया में आ जाने और बड़े होकर इस दुनिया में छा जाने वाले हीरोज की तमाम कहानियां बॉलीवुड में बन चुकी हैं। ये कहानी काफी हद तक वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई (अजय देवगन, कंगना और इमरान हाश्मी) की याद भी दिलाती है।
कहानी का स्ट्रक्चर काफी मिलता है। रईस जिस राजनैतिक सिस्टम से अपने दुश्मनों को निपटाकर कामयाबी पाता है, वही सिस्टम आगे जाकर उसकी जान का दुश्मन बन जाता है। राहुल ढोलकिया और उनके लेखकों की टीम ने फिल्म की धांसू शुरुआत की। बेहद तेज रफ्तार दिलचस्पी के साथ रईस का सफर तमाम मसालों के साथ आगे बढ़ता है। इमोशन, एक्शन, रोमांस, आइटम सॉन्ग और डायलॉगबाजी का हर मसाला फिल्म के पहले हाफ को जबरदस्त पैसा वसूल बना देता है, लेकिन सेकेंड हाफ में फिल्म का सफर डगमगाने लगता है।
बोर कर सकता है क्लाइमेक्स:-
जहां रईस राजनीति के चक्र में फंसता है, वहीं से फिल्म कमजोर होना शुरू हो जाती है। क्लाइमैक्स में तो और कोई चारा ही नहीं था, लेकिन क्लाइमैक्स में रईस का हीरोज्म खत्म हो जाता है और मजूमदार की तरफ शिफ्ट हो जाता है, जो कहीं से रईस का हीरो नहीं बन सकता। फिल्म की पंच लाइन सॉलिड हैं। बनिए का दिमाग, मियां भाई की डेरिंग.. तालियां पिटवाता है, तो अम्मी कहती हैं कि कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा धर्म नहीं होता.. सॉलिड रहे हैं, लेकिन इन सबमें आगे रहा है, बैटरी मत कहना.. जो हर बार तालियां बजवाता है।