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विश्व में स्वीकार्य श्रीराम के आदर्श, श्रीराम की वैश्विकता का समग्र रूप

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सत्य, सौहार्द, करुणा, आस्था, आदर्श, त्याग और तप के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की स्वीकार्यता पुरातन काल से ही पूरे विश्व में प्रमाणिकता के साथ मौजूद है।

अयोध्या। सत्य, सौहार्द, करुणा, आस्था, आदर्श, त्याग और तप के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की स्वीकार्यता पुरातन काल से ही पूरे विश्व में प्रमाणिकता के साथ मौजूद है। श्रीराम के आदर्शों ने विश्व के विभिन्न देशों के समुदायों का मार्गदर्शन किया है। आस्था के इस जनसैलाब की व्यापकता दिन-पर-दिन बढ़ी है। आधुनिक युग में भी श्रीराम की वैश्विक स्वीकार्यता का संदेश स्वयं विश्व समुदाय देने की तैयारी में जुटा है। विश्व के विभिन्न देशों में रहने वाले रामभक्तों के लिए यह समय उल्लास, आनंद, गौरव एवं आत्मसंतोष का है।

बता दें कि श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांच अगस्त 2020 को जब भव्य और दिव्य श्रीराम मंदिर निर्माण का भूमिपूजन और कार्यारम्भ करेंगे, उस समय अमेरिका के न्यूयार्क स्थित टाइम्स स्क्वॉयर पर भगवान श्रीराम की भव्य तस्वीर और राम मंदिर की 3-डी छवि दिखाई जाएगी। वैश्विक पटल पर भारतीय संस्कृति की स्वीकार्यता को श्रीराम मंदिर निर्माण का यह समय नये युग में ले जाएगा। विश्व में श्रीराम से संबंधित विशेष चरण व क्षेत्र मिलते हैं।

अनेक प्रसंग जीवंत हैं। दक्षिण पूर्व एशिया के देश थाईलैण्ड, वियतनाम, इण्डोनेशिया, कम्बोडिया और कैरेबियन देश वेस्टइंडीज, सूरीनाम व मॉरीशस में रामायण और श्रीराम से संबंधित अनेक प्रसंग जीवंत हैं। मध्य पूर्व ईराक, सीरिया, मिश्र सहित यूरोप इंग्लैड, बेल्जियम और मध्य अमेरिका के होण्डुरास सहित शेष विश्व के कई देशों में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का समग्र रूप मौजूद है। 05 अगस्त 2020 विश्व के उन सभी देशों में रहने वाले रामभक्तों के लिए हर्ष और आत्मसंतोष का दिन है, जहां-जहां राम की संस्कृति के प्रसंग और क्षेत्र मिले हैं।

विश्व में सांस्कृतिक श्रीराम की उपस्थिति के स्वीकार्य उदाहरण कई है। ईरान-इराक की सीमा पर स्थित बेलुला में लगभग 4000 वर्ष प्राचीन श्रीराम से संबंधित गुफा चित्र मिले हैं। तो वहीं, मिश्र में 1,500 वर्ष पूर्व राजाओं के नाम तथा कहानियां ‘राम‘ की भांति ही मिलती हैं। इटली में पांचवी शताब्दी ईसा पूर्व रामायण से मिलते-जुलते चित्र दीवारों पर मिलते हैं। प्राचीन इटली की एट्रस्कैन सभ्यता कला में रामायण सातवीं शताब्दी ई-पूर्व से प्रारम्भ होकर चौथी शताब्दी तक एट्रस्कैन सभ्यता मध्य इटली रोम से पश्चिम तक टस्कनी आदि राज्यों तक फैलाव रहा। इस सभ्यता की समानता रामायण संस्कृति से बहुत मिलती है।

इटली में प्राप्त इन चित्रों में राम लक्ष्मण सीताजी का वन गमन, सीताहरण, लव-कुश का घोड़ा पकड़ना, हनुमानजी का संजीवनी लाना आदि प्रमुख हैं। प्राचीन इटली में ‘रावन्ना‘ क्षेत्र मिलता है, जो रावण की कथा के समान है। यहां कुछ कलाकृतियां प्राप्त हुई हैं, जिनमें स्वर्ण मृग, मारीच, सीताहरण की कथा बिल्कुल समान है। आकाशमार्ग से उड़ते हुये घोड़ों के साथ चित्र में जटायु का प्रसंग भी मिलता है।

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इटली में स्थानों और स्थलों आदि के नाम भी श्रीराम से संबंधित हैं। रोमन सभ्यता से पहले की इसी सभ्यता ने रोम का नामकरण किया है। मध्य अमेरिका के देश होन्डुरास के घने जंगलों में हनुमानजी की प्रतिमा व विशाल शहर मिला है। दक्षिण पूर्व एशिया में थाईलैण्ड राम की भाव-भूमि है। यहां अयोध्या है। संजीवनी बूटी का क्षेत्र है। कालनेमि का स्थान है। गणेशजी, सभी संस्कृति कला संस्थानों का लोगो हैं। थाईलैण्ड के राॅयल पैलेस की भीतरी दीवारों पर सम्पूर्ण रामयिन रामायण का अंकन है। सभी राजा राम के नाम से हैं व पूरे महल में विश्व की सबसे लम्बी रामायण पेंटिंग है। राम के नाम से सड़कों व पुलों के नाम हैं।

बैंकाक में रामायण की पारंपरिक चित्रकला की कार्यशाला आयोजित की जाती है। इण्डोनेशिया में चकचक रामायण, बाली द्वीप के देनपासर मुख्य शहर में राम व लक्ष्मण के नाम से मार्गों के नाम हैं। जोगजकार्ता में प्रवबंन मंदिर जावा में प्रसिद्ध मंदिर जो यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व विरासत भी है। इसी मंदिर के बगल में प्रत्येक पूर्णिमा को भव्य रामलीला होती है। पुराविशाता जोगजा पर रामायण बैले 42 वर्षों से लगातार यहां के समुदाय का मनोरंजन कर रहे हैं। इस पौराणिक कला ने जनता को स्थानीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए शिक्षित करने में मदद की है।

इसके अलावा ब्रिटेन, फिलीपींस, कम्बोडिया और पाकिस्तान आदि देशों में भी श्रीराम की संस्कृति के साक्ष्य मौजूद हैं। विद्वानों का मत है कि श्रीराम की सांस्कृतिक विविधता के तथ्यों के अनगिनत प्रमाण हैं, जिनमें अन्वेषण की अपार सम्भावनायें हैं। इस कार्य से भारत की विदेश राजनीति एवं अर्थनीति को विश्व के साथ जुड़ने और जोड़ने का सुन्दर अवसर मिलेगा।

रूस-अमेरिका में रामलीलाओं का मंचन

रूस के मास्कों में ‘राम‘ गेन्नादी मिरवाइलोविच पिचनिकोय रामलीला का प्रशिक्षण देने के लिए चर्चित रहे हैं। रूस के संत को भारत से पद्म श्री जैसा पुरस्कार भी दिया है। मास्कों के जिस स्थान पर उन्होंने अपना जीवन गुजारा, उसका हर कोना ‘राममय‘ है। अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रान्त के स्कूलों में जून के प्रथम सप्ताह में रामलीलाओं को आयोजन किया जाता है। इस आयोजन के लिए सैकड़ों बच्चे लम्बा प्रशिक्षण लेते हैं।

मॉरीशस में रामायण के प्रचार-प्रचार के लिए अधिनियम

हिन्दू महाकाव्य रामायण के आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए माॅरीशस गणराज्य की नेशनल असेंबली ने वर्ष 2001 में एक अधिनियम पारित किया। इससे पूर्व किसी भी देश की संसद ने रामायण के बारहमासी मूल्यों के प्रसार के लिए विधेयक नहीं बनाया था। यह विधेयक 22 मई 2001 को सर्वसम्मति से अनुमोदित हुआ। 14 जून 2001 को गणराज्य के राष्ट्रपति द्वारा अधिनियम के रूप में घोषित किया गया और 30 जून 2001 को सरकारी राजपत्र में प्रकाशित हुआ।

माता सीता को समर्पित नेपाल का जानकी मंदिर

नेपाल के जनकपुर के केन्द्र में स्थित हिन्दू मंदिर माता सीता को समर्पित है। मंदिर की वास्तु हिन्दू-राजपूत वास्तुकला है। यह नेपाल में सबसे महत्वपूर्ण राजपूत स्थापत्यशैली का उदाहरण है और जनकपुर धाम भी कहलाता है।

श्रीलंका में होती है रामलीला ‘कुन्तू‘

इस देश में कई रामायण आधारित स्थल मौजूद हैं। गांवों में मैदानी रामलीला ‘कुन्तू‘ होती है। राबगोडा, श्रीलंका के ऊपरी मध्य क्षेत्र कैंडी में चाय के बागानों के बीच 40 फीट ऊंची हनुमानजी की प्रतिमा और विशाल मंदिर है। हनुमान जयंती पर अत्यंत विशाल कार्यक्रम होते हैं। श्रीलंका के कोलम्बो क्षेत्र में सिंहली व तमिल कुत्तू रामलीलायें सिंहली समुदाय के द्वारा मंचित की जाती हैं।

लाओस में प्रतिदिन होता है रामायण का मंचन

14वीं शताब्दी में जब थाईलैण्ड की प्राचीन राजधानी ‘अयुध्या‘ पर आक्रमण हुआ, तो बहुत लोगों ने पलायन कर वर्तमान नगर बैंकाक पहुंचे और नया शहर बसाया। कुछ लोग लाओस के दुर्गम स्थान लुअंग प्रबंग पहुंचे व बौद्ध संस्कृति के साथ रामायण मंदिर भी बनाया। यहां आज भी प्रतिदिन रामायण मंचित की जाती है। ताड़ पत्र पर रामायण मिलती है। इस कम्युनिस्ट देश में लगातार प्रतिदिन रामलीला का मंचन होता है।

कैरिबियन देशों में रामलीला की समृद्ध परंपरा

कैरेबियन देश ट्रिनिडाड एवं टोबैगा जैसे अंग्रेजी भाषी देश में रामलीला की अत्यन्त समृद्ध परम्परा रोमांचित करती है। छोटे से देश में 52 रामलीला मण्डलिय होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। 2012 में रामलीला को एक्ट के रूप में सरकार ने मान्यता दी है। यहां 200 वर्ष पुराना मिट्टी का मंदिर, राम लक्ष्मण, हनुमानजी के साथ भरतजी के तीर पर हुनमानजी, गाय आदि की आकृति, भारत की सास्कृतिक परंपरा का उदाहरण हैं।

‘लघु भारत‘ नाम से प्रसिद्ध है फिजी

आस्ट्रेलिया महाद्वीप से भी आगे छोटे-छोटे द्वीपों का देश फिजी, जिसे 20 हजार किलोमीटर दूर लघु भारत भी कहा जाता है। यहां 100 वर्ष पूर्व रामलीला का मंदिर बनाया गया है। फीजी में मैदानी रामलीलाओं की समृद्ध परम्परा विद्यमान है।

श्रीराम का देश ‘सूरीनाम‘

श्रीराम का अपभ्रंष (अपभ्रंष में) ‘सूरीनाम‘ माना जाता है। यहां रामलीला की समृद्ध परम्परा विद्यमान है। इस देश में जहां सबसे प्राचीन रामलीला प्रारंभ हुयी थी, वहां तुलसीजी की अद्भुत प्रतिमा लगायी गयी है। तुलसी जयंती पर अनेक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। परामिरिवो सूरीनाम व जार्जटाउन से 250 किलामीटर दूर नैकेरी सूरीनाम में गंगा मंदिर वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति की मान्यता का उदाहरण है।

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