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दुर्गा सप्तशती में ज्ञानकाण्ड और कर्मकाण्ड की अजश्र धारा, इसके 700 श्लोकों में 700 प्रयोग

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नई दिल्ली : कोरोनाकाल के बीच इस वर्ष हालांकि देश भर के मंदिर अभी खुले नहीं, लेकिन नवरात्र के दिन शनिवार को मां की आराधना में आस्था के करोड़ों दीप देशवासियों के दिल में जल उठे। शक्ति और आत्मसंयम का यह पर्व अपने आप में पूरा है। कोई ऐसा तथ्य नहीं जो इससे परे हो। कर्मकांड की अच्छी जानकारी न हो तो इस महापर्व के दौरान मां दुर्गा की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ सर्वोत्तम है। दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं। देवी की तीनों चरित्रों देवी महाकाली, देवी महालक्ष्मी और देवी महासरस्वती के आराधना मधुकैटभ वध, महिषासुर वध और शुम्भ निशुम्भ का उनकी समस्त सेना सहित वध की कथाओं का पाठ किया जाता है| मां महाकाली की स्तुति एक अध्याय में, मां महालक्ष्मी की स्तुति तीन अध्यायों में और मां महासरस्वती की स्तुति नौ अध्यायों में वर्णित की गई है।

प्रयोग को मिलाकर कुल 700 श्लोक 700 प्रयोगों के समान माने गए हैं। कहते हैं कि दुर्गा सप्तशती 100 बार पाठ करने से सभी तरह की सिद्धियाँ प्राप्त होती है।
गीता ग्रंथों में जिस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानकाण्ड का सर्वोपयोगी और लोकप्रिय ग्रन्थ है, उसी प्रकार दुर्गा सप्तशती ज्ञानकाण्ड और कर्मकाण्ड का सर्वोपयोगी और लोकप्रिय ग्रन्थ है। शक्ति उपासना वस्तुतः यह ज्ञान कराती है कि यह समस्त दृश्य प्रपंच ब्रहम शक्ति का ही विलास है।

यही ब्रह्म शक्ति सृष्टि, स्थिति तथा लय कराती है। एक ओर जहां यही ब्रह्मशक्ति अविद्या बनकर जीव को बन्धन में बांधती है, वहीं दूसरी ओर यही विद्या बनकर जीव को ब्रह्म साक्षात्कार करा कर उस बन्धन से मुक्त भी कराती है।

महर्षि मेधा ने सर्वप्रथम राजा सुरथ और समाधि वैश्य को यह अदभुत दुर्गा का चरित्र सुनाया। उसके पश्चात महर्षि मृकण्डु के पुत्र चिरंजीवी मार्कण्डेय ने मुनिवर भागुरि को यही कथा सुनाई थी ।

यही कथा द्रोण पुत्र पक्षिगण ने महर्षि जैमिनी को सुनाई थी। जैमिनी ऋषि महर्षि वेदव्यास जी के शिष्य थे। फिर इसी कथा संवाद का सम्पूर्ण जगत के प्राणियों के कल्याण के लिए महर्षि वेदव्यास ने मार्कण्डेय पुराण में वर्णन किया है। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ सभी तरह के मनोरथ सिद्धि के लिए करते हैं। श्री दुर्गा सप्तशती महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करता है। दुर्गा सप्तशती के सभी तेरह अध्याय अलग अलग इच्छित मनोकामना की सहर्ष ही पूर्ति करते हैं। दूसरे शब्दों में जगत कल्याण के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ सार्वभौमिक हुआ, जिससे श्रावण मात्र से भी समस्त बाधाएं दूर हो जाती हैं।

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