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राधा-कृष्ण के जाने के बाद नंदगांव और बरसाना में आज तक क्यों नहीं हुआ एक भी विवाह?

radha krishana राधा-कृष्ण के जाने के बाद नंदगांव और बरसाना में आज तक क्यों नहीं हुआ एक भी विवाह?

भागवान श्री कृष्ण के भक्त सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में है। खास बता ये है कि, जितनी श्रद्धा से भारतीय ठाकुर जी को पूजते हैं। उतनी श्रद्धा से विदेशी लोग भी भगवान कृष्ण को मानते हैं और पूजते हैं। इसीलिए आज हम आपके लिए लेकर आये हैं भगवान श्री कृष्ण के गांव नंदगांव से जुड़ी हुई खास जानकरी।

radha krishan 2 राधा-कृष्ण के जाने के बाद नंदगांव और बरसाना में आज तक क्यों नहीं हुआ एक भी विवाह?
आपको पता है, नंद गांव की गलियों में भगवान कृष्ण खेल-कूदकर बड़े हुए थे। यही कारण है कि, यूपी के मथुरा में बसे नंद गांव में भगवान कृष्ण के दर्शन करने जरूर आते हैं।
नंदगांव, मथुरा से 51 किमी उत्तर-पूर्व की ओर एक पहाड़ी के नीचे स्थित है। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण ने अपना बचपन यहीं बिताया था और उनके बचपन के कुछ निशान भी यहाँ पाए जाते हैं।

यह भगवान कृष्ण के पालक पिता, नन्द के घर के रूप में जाना जाता है जिनकी याद में पर्वत के एक ओर एक भव्य मंदिर खड़ा है। अहाते के केंद्र में खड़ा यह मंदिर ऊंची मजबूत दीवारों से घिरा हुआ है, जहां से भरतपुर की पहाड़ियों का पूरा दृश्य दिखता है और इसका फैलाव मथुरा के गोवर्धन तक है।

इस मंदिर में काले संगमरमर से बनी कृष्ण और बलराम की दो मूर्तियां हैं । वे सभी त्रि-वक्रीय मुद्रा में हैं और बांसुरी पकड़े हुए हैं। उनके बायीं और दायीं ओर यशोदा और नन्द महाराज की मूर्तियाँ हैं। माँ यशोदा की मूर्ति के साथ राधा देवी की मूर्ति है, एक छोटी मूर्ति रोहिणी देवी की और रेवती की है, जो कि बलराम की पत्नी है। नन्द महाराज के साथ कृष्ण के दो दोस्तों, सुदामा और मधुमंगला की मूर्तियाँ हैं। ये मूर्तियाँ वज्रानाभ द्वारा इस मंदिर में स्थापित की गई थी। इस मंदिर को 19वीं शताब्दी की शुरुआत में रूपा सिंह द्वारा बनवाया गया था।

पान सरोवर से कुछ ही दूरी पर कोकिला वन में स्थित प्राचीन शनि मंदिर है। मान्यता है कि शनि जब यहां आये तो कृष्ण ने उन्हें एक जगह स्थिर कर दिया ताकि ब्रजवासियों को उनसे कोई कष्ट न हो। प्रत्येक शनिवार को यहां पर आने वाले श्रद्धालु शनि भगवान की 3 कि॰मी॰ की परिक्रमा करते हैं। शनिश्चरी अमावस्‍या को यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है।

किलावन के शनि मंदिर से नंदगांव का नजारा भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। जब कि नंदराय मंदिर के ऊपर से आप ब्रज के हरे भरे भूभाग, इसके प्राकृतिक सौंदर्य, कोकिलावन के शनि मंदिर और बरसाना के राधारानी के महल का दर्शन कर सकते हैं।
यहां पर एक सरोवर नंदीश्वर पर्वत की तलहटी में स्थित है। कहा जाता है माता यशोदा कृष्ण भगवान को इसी सरोवर में स्‍नान करवाया करती थी। नंदराय और अन्य पुरूष लोग यहीं पर स्नान किया करते थे। इस सरोवर का जीर्णोद्धार संवत 1804 में वर्धमान की रानी ने कराया था। इस सरोवर का जल साफ है। इस कारण इसका नाम पावन सरोवर है।

बरसाना और नंद गांव क्यों नहीं करते एक दूसरे से रिश्ता?
नंदगांव में करीब डेढ़ सौ परिवार हैं हमारे। भले ही हमारा धर्म अलग हो लेकिन ब्रजभूमि में रहते हुए कहीं न कहीं लगाव राधा-कृष्ण की लीलाओं से हो चुका है। तभी तो आजतक बरसाना व नंदगांव के मध्य कोई निकाह नहीं हुआ है।इसे इत्तेफाक कहो या राधाकृष्ण के प्रेम की लीला। एक ओर जहां हिदू धर्म में कभी नंदगांव बरसाना के मध्य शादी विवाह नहीं हुआ।

वहीं आज तक नंदगांव और बरसाना के बीच कभी किसी मुस्लिम परिवार का निकाह भी नही हुआ है।राधाकृष्ण को प्रेम का पूरक समझने वाले नंदगांव-बरसाना में भले ही कोई रिश्ता नहीं हुआ हो, लेकिन दोनों गांवों के मध्य रिश्ता न होने का एक कारण यह भी है कि लठामार रंगीली होली का आयोजन दोनों ही गांव के मध्य होता है। इसमें दोनों गांव की महिलाओं और पुरुषों द्वारा होली खेली जाती है। अगर दोनों गांव के मध्य रिश्ता हो गया तो होली की यह परंपरा खत्म हो जाएगी।

इसलिए इस दिव्य होली के आयोजन को बरकरार रखने के लिए आज तक दोनों गांव के मध्य विवाह सबंध नहीं हुआ। नंदगांव-बरसाना का जो इतिहास है वो संसार में कहीं देखने को नही मिलता है।

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यहां जो प्रेम का रिश्ता है वो राधा-कृष्ण से जुड़ा हुआ है। इसलिए आज भी किसी भी धर्म व जाति के बीच कोई शादी विवाह नही होते। दोनों ही गांव राधाकृष्ण के प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते चले आ रहे है। जो कि,अपने आप में काफी चौंकाने वाला है। इस परम्परा को हिन्दू हो या मुसलमान सभी मानते हैं र निभाते हैं।

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