शख्सियत

अकेला तू पहल कर, देख तुझको काफिला खुद बन जाएगा !

Minakshi Sundram अकेला तू पहल कर, देख तुझको काफिला खुद बन जाएगा !

जीवन में कड़ी मेहनत और तपस्या आपको एक ओहदे तक पहुंचा सकती है इस कसौटी पर वही खरे उतरते हैं जो कड़ी मेहनत और लगन से काम करते हैं..भारत खबर की टीम पहुंची ऐसी ही शख्सियत के पास जिन्होंने अपनी मेहनत के दम पर न केवल शिखर की ऊंचाइयों को छुआ बल्कि अपनी दूरदर्शिता से समाज के लिए ऐसे कार्य किए जो हर तबके के लिए सराहनीय हैं।

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हमारी खास पेशकश शख्सियत में हम बात कर रहे हैं मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण के वाइस चेयरमैन मीनाक्षी सुंदरम जी की जो एक उच्च पद पर रहते हुए भी सरल स्वभाव से अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे हैं।

”हौसलों को कर बुलंद रास्तों पर चल दे
तुझे तेरा मुकाम मिल जाएगा
बढ़कर आगे अकेला तू पहल कर
देखकर तुझको काफिला खुद बन जाएगा”

इन पंक्तियों पर सुंदरम जी के कार्य कुछ इस तरह खरे उतरे कि उनकी कार्यप्रणाली से मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण उस मुकाम पर पहुंच गया कि भारत का पहला विकास प्रधाकिरण बना जिसने बिल्डिंग प्लान प्रोसेस को पूर्णता ऑनलाइन लागू किया और उत्तराखंड में प्राधिकरण को पहला कार्यालय बनाया जहां ईआरपी (ERP) लागू किया गया। जिसके लागू होने से ऑफिस ने ई-ऑफिस की ओर कदम बढ़ाया, इनके प्रयास से ‘रिवर फ्रंट डेवलपमेंट’, आवासीय योजना तथा शहर को विकसित करने के लिए पार्कों का निर्माण, यातायात व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने के लिए सड़कों का चौड़ीकरण व अन्य कार्य किए जा रहे हैं।

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कुछ सवालों और जवाबों के जरिए हमने मीनाक्षी सुंदरम जी से देहरादून के विकास और निजी जिंदगी से जुड़े कुछ अहम पहलुओं पर बात की साथ ही जाना तमिलनाड़ु से देहरादून तक का उनका सफर कैसा रहा…

सवाल- आप नॉर्थ इंडिया से नहीं हैं लेकिन आप काफी सालों से देहरादून में रह रहे हैं आपको क्या अलग लगा यहां वक्त बिताकर

जवाब- ऑल इंडिया सर्विसेज की यही ड्यूटी है हम एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में अधिकतर लोकसेवाएं देने के लिए जाने जाते हैं। हर प्रदेश का अपना अलग कल्चर होता है जिससे अनुभव और हुनर का आदान-प्रदान होता है। जिससे पता चलता है कि उसमें प्रत्येक राज्य में 1/3 ही वहां के इनसाइडर्स होते हैं। बाकी 2/3 बाहर से आने वाले लोग होंगे। हर प्रदेश के अपने कल्चर होते हैं वो अब चाहे सोसाइटी के कल्चर हों या एडमिनिस्ट्रेटिव कल्चर, सब अलग होते हैं। जिससे प्रतिभा और जानकारी का आपस में आदान-प्रदान होता है। इसलिए इसे काफी सोच-समझकर निर्धारित किया जाता है। शुरूआत में किसी दूसरे प्रदेश में जाने पर कुछ शंकाएं हमारे मन में होती हैं जैसे लेंग्वेज, कल्चर से जुड़ी भिन्नताएं देखने को मिलती हैं। फिर धीरे-धारे आप खुद को ढ़ाल लेते हैं। जब अंग्रेज ब्रिटेन से आकर भारत पर शासन कर सकते हैं तो भारत के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाकर रहने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।

सवाल- आप काफी सालों से मसूरी देहरादून अथॅारिटी में काम कर रहे हैं ये अंग्रेजों के जमाने में बसाया गया शहर है तो काफी कंजेस्टेड है तो इसके लिए आपने क्या प्लान बनाए हैं?

जवाब- देहरादून की डिकंजेशन हमारी पहली प्राथमिकता है जिसके लिए कई मुद्दों पर बातचीत चल रही है, छोटी दूरी पर ट्रैफिक लाइट्स की इंस्टालेशन से लेकर, चौराहों को चौड़ा करना, उन्हें व्यवस्थित तरीके से डेवलप करना, आदि हमारा एजेंडा था। इसके अलावा शहर के अंदर जो गैराज हैं उन्हें दूर शिफ्ट करने की योजना हमने बनाई थी। इसके साथ-साथ कुछ पुनर्विकास योजनाएं जैसे इंदिरा मार्केट का पुनर्विकास, सड़क के चौड़ीकरण के लिए जो दुकानें बाहर होती थीं उन्हें अंदर की तरफ शिफ्ट कर दिया। पार्किंग स्पेस को बढ़ाने के लिए तहसील और कार्यालयों को भी शहर के आंतरिक हिस्सों में ले जाया गया। आढ़त बाजार के एरिया में सड़क को चौड़ी करने के लिए कुछ दुकानों को रिलोकेट किया गया है। इसके अलावा पूरे आढ़त बाजार के शिफ्टिंग की भी योजना तैयार है जिसे जल्द ही लागू किया जाएगा। नदी के किनारे की जगह में नए कनेक्टिंग रोड्स को बनाने का प्रस्ताव भी इसी योजना के अंर्तगत है। इस तरह शहर के पुनर्विकास में काम चल रहा है।

सवाल- आज हम डिजिटाइजेशन के दौर में हैं अथॅारिटी भी लगभग पूरी तरह से डिजिटल हो चुकी है, लोगों को इसका क्या फायदा मिलेगा ? 

जवाब- बिल्कुल…पहले लोगों की शिकायत सुनने में आती थी कि उनका नक्शा सबमिट किया था, नक्शा गायब हो गया है लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब सारे मानचित्रों का बारिकी से रिव्यू किया जा सकता है और कंप्यूटर के माध्यम से किसी भी फाइल के बारे में जानकारी मिल सकती है। इसके अलावा पूरे दफ्तर के सिस्टम को भी आनलॅाइन किया जा रहा है तो आने वाले समय 2017 में एमडीडीए हमारे राज्य की पहली एजेंसी होगी जो पूरी तरह डिजिटल प्रणाली से काम करने वाली होगी।

सवाल- देहरादून उत्तराखण्ड का केंद्र है, पर्यटन के लिहाज से देहरादून काफी फेमस है, तो पर्यटकों के लिए एमडीडीए क्या कुछ सोच रही है?

जवाब- मसूरी में काफी डेवलेपमेंट किया गया है, मालरोड की इलेक्ट्रिक लाइट को अंडरग्राउडिंग किया गया है। गांधीद्वार जो कि काफी संकरा था उसका चौड़ीकरण किया गया है। शहर के सौंदर्यीकरण को बढ़ाने के लिए कनेक्टिंग रोड्स को सही करने का काम, रेलिंग्स लगाने का काम, म्यूजिकल फाउंटेन लगाया। इस तरह के कई काम पर्यटकों को देखते हुए किए गए हैं। इसके अलावा एक शहीद स्थल का भी सौंदर्यीकरण किया गया है। गन हिल की तरफ जाने वाले रोप-वे पर भी काम चल रहा है। ये सारे काम विकास को देखते हुए किए जा रहे हैं। जहां तक देहरादून की बात है मानचित्र में प्रक्रिया को सरल बनाया है जिससे आवासीय सुविधाएं हुई हैं जिससे पर्यटकों को रहने में भी सरलता हुई है और कुछ रोजगार भी बढ़ा है।

कनेक्टिविटी के लिहाज से हरिद्वार और ऋषिकेश को मेट्रो के माध्यम से देहरादून से जोड़ने के लिए एक स्टडी की गई है जिससे जो डेवलेपमेंट हुई है वो उत्तराखण्ड मेट्रो रेल कोर्पोरेशन के कारण हुई है बहुत जल्द ही हम दिल्ली मेट्रो कोर्पोरेशन से बात करने वाले हैं जो डीपीआर के लिए जो एक महत्वपूर्ण कदम है।

सवाल- सेंट्रल गर्वनमेंट की स्मार्ट सिटी योजना के तहत जारी हुई लिस्ट में अभी तक देहरादून का नाम नहीं आया इस पर क्या कहना चाहेंगे?

जवाब- राज्य की तरफ से अब तक तीन प्रोजेक्ट पेश किए जा चुके हैं जिसमें शहर की जरूरत को देखते हुए एजूकेशनल इंस्टीट्यूटशन्स और नॅालेज बेस्ड इंडस्ट्रीज लाने का प्रयास किया गया जिसे भारत सरकार के ग्रीन फील्ड टाउनशिप के मापदंडों पर खरा न उतरने के कारण रिजेक्ट कर दिया। जिसके बाद रेट्रो फिटिंग प्रोजेक्ट का सबमिशन एरिया ज्यादा होने के कारण सेलेक्ट नहीं हो पाया। अभी राज्य सरकार एमओयूडी के कमेंट्स का इंतजार कर रही है।

सवाल- लोकल लेवल की पॅालीटिक्स का कभी आपके काम करने के तरीके या आप पर कभी कोई प्रभाव पड़ा?  

जवाब- लोकतांत्रिक देश में पॅालीटिक्स का अपना का अपना किरदार होता है जिसे इग्नोर नहीं किया जा सकता है, हमें उसके बीच उसका हिस्सा बनकर रहना होता है और साथ-साथ लोगों के विकास और शहर के विकास के बारे में सोचना है हालांकि इसके कुछ पॅाजीटिव परिणाम भी हैं तो इसे मैं उस तौर पर लेता हूं। कई बार लोकल लेवल की राजनीति से अच्छे सुझाव भी मिलते हैं।

सवाल- सूबे के मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ आपके संबंध काफी अच्छी है इस पर क्या कहना चाहेंगे?

जवाब- मैं समझता हूं मुख्यमंत्री जी का मुझ पर विश्वास होना मुझ पर अतिरिक्त जिम्मेदारी है, मेरा ये कर्तव्य है कि मैं उनके विश्वास पर खरा उतरूं। रही बात संबंध की तो मेरा हर मुख्यमंत्री के साथ इसी तरह का व्यवहार है, जो भी उस कुर्सी पर बैठेंगे वो मेरे लिए बॅास हैं और उनकी प्राथमिकताएं हमारी भी प्राथमिकताएं हैं और होनी भी चाहिए।

सवाल- शहर में एयर ट्रेफिक सिस्टम के डेवलप होने से पर्यटन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इसके अलावा लोकल लेवल पर लोगों को क्या फायदा होगा?

जवाब- जो लोग सड़क के रास्ते राज्य में नहीं आ सकते हैं उनके लिए ये काफी सहायक होगा जिससे लोगों को भी फायदा होगा और राज्य को आर्थिक रूप से भी लाभ पहुंचेगा। इसके अलावा भविष्य में एयर एंबुलेंस से जुड़ी सुविधाओं के विकास के बारे में भी सोचा जा रहा है।

आगे जानिए…आसान नहीं होती एक अधिकारी की डगर

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