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कोरोना काल में प्रभावित हुआ MSME, उद्यमी ने बताया अब क्‍या करे सरकार   

MSME 3 कोरोना काल में प्रभावित हुआ MSME, उद्यमी ने बताया अब क्‍या करे सरकार   

 

लखनऊ: केंद्र सरकार हो या यूपी सरकार MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) वर्ग के उद्योगों को सहारा देने के लिए कई कदम उठा रही है। कोरोना काल में एमएसएमई सेक्‍टर को काफी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ा।

ऐसे में जमीनी स्‍तर MSME कितना प्रभावित हुआ, उसके सामने चुनौतियां क्या-क्या हैं और वह सरकार से किस तरह की अपेक्षाएं रखता है, इस संबंध भारत खबर के संवाददाता शैलेंद्र सिंह ने मिगलानी एक्सपोर्ट्स के मालिक रविंद्र मिगलानी (Chapter Chairman, Indian Industries Association, Saharanpur) से खास बातचीत की।

 

कोरोना काल में प्रभावित हुआ MSME, उद्यमी ने बताया अब क्‍या करे सरकार   
Ravindra Miglani (Chapter Chairman, IIA, Saharanpur)

 

कोरोना काल में MSME पर मिला-जुला असर

कोरोना काल में एमएसएमई पर असर के बारे में रविंद्र मिगलानी कहते हैं कि, एमएसएमई सेक्टर में सारी छोटी इंडस्ट्रीज आती हैं और यह मिली-जुली इंडस्ट्रीज होती हैं। कोरोना की स्थिति में जो मेडिकल और सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट से जुड़ी हुई इंडस्ट्री थीं उन्हें तो फायदा हुआ, लेकिन जो जनरल इंडस्ट्रीज हैं उन्हें नुकसान हुआ है। कॉस्ट प्रोडक्शन बढ़ गई, डीजल और पेट्रोल के रेट बढ़ने से ट्रांसपोर्टेशन महंगी हो गई और पेपर के रेट बढ़ने से पैकिंग मैटेरियल महंगा हो गया। लकड़ी और एमडीएफ, जो रॉ मैटेरियल है उसके रेट महंगे होने से अनियंत्रित दर 30 से 40 फीसदी महंगी हो गई। उन्‍होंने कहा कि, रॉ मैटेरियल की कॉस्‍ट बढ़ गई, परिवहन चार्जेस बढ़ गए, लेबर रेट बढ़ गए, कुल मिलाकर ओवरऑल कॉस्ट बढ़ गई, लेकिन बायर ने अपने रेट बढ़ाने से मना कर दिया।

कोरोना कर्फ्यू में भी इंडस्‍ट्री खुली होने के सवाल पर रविंद्र मिगलानी कहते हैं कि, कोरोना लॉकडाउन में एमएसएमई सेक्टर में इंडस्ट्री खोलने से कोई फायदा नहीं हुआ, क्‍योंकि मार्केट बंद रही। इंडस्ट्री चलाने के लिए दैनिक चीजों की जरूरत होती है, जो मार्केट से ही मिल पाती हैं। ऐसे में बाजार बंद होने से प्रोडक्शन रुक जाता है और मार्केट में भी डिमांड घट जाती है। ऐसे में कोरोना संकट की स्थिति में एमएसएमई के लिए मिला-जुला असर देखने को मिला, जिनमें कुछ इंडस्ट्री कम इफेक्टेड हैं, कुछ ज्‍यादा इफेक्टेड हैं और कुछ बुरी तरह से इफेक्‍टेड हैं।

पेपर इंडस्ट्रीज को करना पड़ा संघर्ष

उन्‍होंने कहा कि, रॉ मैटेरियल और कंपोनेंट्स के रेट बढ़ने से पेपर इंडस्ट्रीज को बहुत संघर्ष करना पड़ा है। साथ ही प्रोडक्ट की डिमांड भी कम रही। जो खाने-पीने की चीजें, मेडिकल से संबंधित चीजें हैं उनकी डिमांड अच्छी रही, लेकिन लग्जीरियस प्रोडक्ट की डिमांड में कमी आई। जीवन रक्षक दवाएं और जीवन रक्षक खुराक के लिए कमी नहीं थी और आदमी जब उस चीज से रिकवर हो जाएगा, बिजनेस कंफर्टेबल हो जाएंगे तब लोग और चीजों में खर्चा करेंगे।

सरकार कैसे कर सकती थी मदद

रविंद्र मिगलानी बताते हैं कि, एमएसएमई सेक्टर ने पूरा का पूरा फाइनेंस बैंक से लिया हुआ था, लेकिन कोरोना काल में मार्केट में पेमेंट फंस गई, रिकवरी नहीं हो पाई और ऐसे में बैंक का लोन रीपेमेंट नहीं हो पाया, लेकिन बैंक का इंटरेस्ट चलता रहा। ऐसे में एमएसएमई सेक्टर के लिए सरकार को यह करना चाहिए था कि एमएसएमई सेक्टर में जो भी बैंकों से लोन लिया हुआ है, उसके इंटरेस्ट को रोक दिया जाना चाहिए था। वहीं, अगर 3-4 महीने के लिए इंटरेस्ट खत्म कर दिया जाता तो यह सरकार की मॉरल ड्यूटी भी होती और इससे एमएसएमई सेक्टर को मदद भी मिलती। उन्‍होंने कहा कि, इलेक्ट्रिसिटी बिल को भी कम से कम तीन महीने के लिए माफ किया जाना चाहिए था, लेकिन सरकार ने इस मांग को यह कहकर नकार दिया कि इंडस्‍ट्री चल रही है। लेकिन उद्यमियों का यह कहना है कि इंडस्ट्री पहले की तरह नहीं चल रही है, क्योंकि मार्केट बंद है, लेबर कॉस्‍ट बढ़ गई, प्रोडक्ट की डिमांड कम हो गई।

सरकार ने खत्‍म की पुरानी प्रोत्‍साहन स्‍कीम

रविंद्र मिगलानी ने यह भी कहा कि, पहले MEIS (मर्चेंट एक्सपोर्ट फ्रॉम इंडिया स्कीम) के तहत गवर्नमेंट एक्सपोर्ट के ऊपर इंसेंटिव मिला करते थे। इसमें इंपोर्टिसंस मिलता था पांच पर्सेंट का। उदाहरण देते हुए उन्‍होंने बताया कि, मान लीजिए किसी ने एक करोड़ का एक्सपोर्ट किया, उसे पांच लाख रुपए का लायंस मिल जाता था, जिसमें से चार लाख 90 हजार रुपए तक बैंक में जमा हो जाते थे, जिसे एक्‍सपोर्टर उसी कॉस्ट में जोड़ लेता था और बायर को कोई छूट दे देता था कंप्‍टेटिव बिजनेस के लिए। लेकिन सरकार ने 2020 में उसे खत्म कर दिया और जनवरी 2021 से एक नई स्कीम लाई। इसका नाम दिया रोडटेट (RODTET)। लेकिन जिस नई स्कीम का ऐलान किया गया, अभी वह प्रैक्टिकल एग्जीक्यूशन में नहीं आई। स्‍कीम के रूल्स, उसके रेगुलेशंस पोर्टल पर अभी उसकी फंक्शनिंग चालू नहीं हुई। पुरानी स्कीम भी डिस्कंटीन्यू कर दी गई और नई स्कीम अभी चालू नहीं हुई। ऐसे में पुरानी स्‍कीम पर एक्सपोर्टर को बिजनेस प्रमोशन के लिए जो प्रोत्साहन मिलता था वह अब नहीं मिल रहा है।

बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में मदद करे सरकार

रविंद्र मिगलानी कहते हैं कि, अब सरकार से यही कहना है कि अगर एमएसएमई से जुड़े छोटे उद्यमियों को बढ़ावा नहीं दे सकते तो जो पुरानी स्कीम है, उसे तो चलने दिया जाए। उन्‍होंने यह भी कहा कि, गवर्नमेंट ऑफिसेज में टाइम बॉन्डिंग अकाउंटेबिलिटी होनी चाहिए और उसके ऊपर हाई अथॉरिटी को दो-तीन महीने में जवाबदेही होनी चाहिए। लकड़ी का फर्श डिपार्टमेंट का एक सेल डिगू को होना चाहिए। लकड़ी का सहारनपुर सबसे बड़ा कन्वेंशन सेंटर है, लेकिन लकड़ी परचेज करने के लिए हमें 200 से 500 किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है। सहारनपुर में सेल डिगू चाहिए और रेडीमेड वुड बिकिनी चाहिए, जिसे खरीदने के बाद हम उससे तुरंत प्रोडक्‍शन स्टार्ट कर सकें। इसके अलावा हम सहारनपुर में इंडस्ट्रियल टाउन डेवलप करने के लिए करीब ढाई सौ बीघे जमीन में वुड सिटी बना रहे हैं, इसके लिए रोड, स्ट्रीट लाइट, पार्क बाउंड्री वॉल जैसे बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में गवर्नमेंट कुछ मदद दे तो और बेहतर होगा।

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