मुंबई। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के एक बुजुर्ग दंपति ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई है। खास बात ये है कि इस कपल में से किसी को कोई गंभीर बीमारी नहीं है, लेकिन उनका कहना है कि वो इस उम्र में समाज के लिए कोई योगदान देने में सक्षम नहीं हैं। उन्होंने प्रेसिडेंट को लिए एक पत्र में कहा है कि हम नहीं चाहते कि उम्र के इस दौर में कोई और हमारी जिम्मेदारी संभाले। लेटर में बुजुर्ग दंपति ने लिखा है कि शादी से पहले साल में ही हम लोगों ने बच्चा नहीं करने का फैसला लिया था इसलिए अब हमारे परिवार में कोई नहीं है। बुजुर्ग अवस्था में हम लोग नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमारी जवाबदेही ले।
लवाटे दंपति ने आगे लिखा कि टर्मिनली इल नाम की बीमारी होने के कराण वे समाज के लिए अपना कोई योगदान नहीं कर सकेंगे। इरावती ने लिखा कि मेरे दो ऑपरेशन हुए। मेरे लिए अकेले कहीं जाना बहुत मुश्किल है। मैं ठीक ढंग से बैठ भी नहीं सकती हूं। मेरी जिंदगी का अब कोई मकसद नहीं रहा है। आपको बता दें कि एक्टिव यूथनेशिया में आम तौर पर पेन किलर का ओवरडोज दिया जाता है, ताकि व्यक्ति की मौत हो जाए। गौरतलब है कि भारत में इच्छा मृत्यु का प्रावधान नहीं है। इच्छामृत्यु को लेकर सबसे पहले बहस साल 2011 में शुरू हुई थी। जब 38 साल से कोमा की स्टेट में रह रहीं केईएम अस्पताल की नर्स अरुणा शानबाग को इच्छा मृत्यु देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक पिटीशन दायर की गई थी।
अरुणा शानबाग के साथ 27 नवंबर 1973 में अस्पताल के ही एक वार्ड ब्वॉय ने रेप किया था। उस वार्ड ब्वॉय ने अरुणा के गले में एक जंजीर बांध दी थी। उसी जंजीर के दबाव से अरुणा कोमा में चली गईं। बाद में कभी इस हालत से बाहर नहीं आ सकीं। इसके बाद वे 42 वर्षों तक वे कोमा में रहीं। अरुणा की स्थिति को देखते हुए उनके लिए इच्छा मृत्यु की मांग करते हुए एक याचिका भी दायर की गयी थी, लेकिन कोर्ट ने इच्छामृत्यु की मांग को ठुकरा दिया था। इसके अलावा केरल एक एक टीचर ने भी यूथनेशिया की डिमांड कोर्ट के सामने रखी थी। जिसे केरल हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।