लखनऊ। बुधवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द ने बताया कि अहंकार ही मनुष्य की सारी समस्याओं की जड़ है। अहंकार अर्थात यह अहंबोध कि मैं शरीर हूँ और यह ममत्व बोध कि ये शरीर, मन, धन-जन और परिवार मेरा है। जबकि प्रकृतरूप से मैं यह शरीर नहीं हूँ।
शरीर के भीतर रहने वाला शरीरी हूँ, अजर-अमर आत्मा हूँ। मेरा शरीर, मन, धन और संपत्ति जो दिखाई पड़ रहा है यह सब ईश्वर का है। स्वामी जी ने कहा कि अहं बुद्धि को नाश करना एकरुप असाध्य है इसलिए श्रीमद्भागवतम् में ब्रह्मा जी ने कहा है- “जब तक कोई भगवान के चरण में शरण नहीं लेता हैं तब तक कितना ही प्रयास करें उनके मन के भीतर का बसे हुआ अहंकार का नाश नहीं होता है।”
एकमात्र भगवत् कृपा से ही हमारे जन्म-जन्मांतर का अहंकार एवं हमारे सारे दुःख के कारण का अंत हो सकता है। इसलिए हमें ईश्वर के चरणों में प्रार्थना करना चाहिए क्योंकि उनकी कृपा बिना हम अहंकार को नष्ट नहीं कर पाएंगे।
उन्होंने कहा कि यदि हम व्याकुल होकर प्रार्थना करें तब ईश्वर की कृपा से हमारे मन का अहंकार जड़ से निर्मूल हो जाएगा एवं हम लोग भगवत् चरण में आश्रय लेकर भगवत् दर्शन करते हुए जीवन सफल कर पाएंगे।