भारत के इतिहास में डॉ राम मनोहर लोहिया का नाम सबसे सफल, राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर जाना जाता है। सदैव सत्य के रास्ते पर चलने और अपने दम पर देश के रजनीति का रुख बदलने वाले डॉ लोहिया की आज पुण्यतिथि है। देश ने डॉ लोहिया को उनके प्रखर बु़िद्ध और समाजवादी विचारधारा के लिए सम्मान दिया। लोहिया जी ने देश की आजादी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, और अपने विचारों, लेखों और भाषणों के माध्यम से लोगों मे जनजागृति लाने का अथक प्रयास किया।
उत्तरप्रदेश के अकबरपुर में 23 मार्च 1910 को जन्मे डॉ लोहिया अपने पिता के विचारों से बहुत प्रभावित थे। बचपन मे ही उनकी मां का निधन हो गया था जिससे उनके पालन पोषण की जिम्मेदारी उनके पिता ने उठाई। उनके पिता राष्ट्रभक्त थे, लोहिया जी ने उनके पथ पर चलते हुए स्वयं को उनसे जोड़े रखा और समय के साथ युवा अवस्था से ही वें विभिन्न रैलियों और विरोध सभाओं के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लिया। महात्मा गांधी जी के जीवन ने लोहिया जी पर गहरा प्रभव डाला, उनके पिता जी ने जब लोहिया जी को पहली बार गांधी जी से मिलवाया, वहीं से इनके जीवन में परिवर्तन आया, और डॉ लोहिया ने अपने पूरे जीवन काल में गांधी जी के आर्दशों का पालन और समर्थन किया। युवा अवस्था में ही जब वो महज 18 वर्ष के थे उन्होने ब्रिटिश सरकार द्वारा गठित ‘साइमन कमीशन’ का विरोध करने के लिए प्रदर्शन का आयोजन किया।
पठन पाठन में लोहिया जी शुरु से ही प्रखर बुद्धि वाले थे, मैट्रिक उन्होने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, बीएचयू से उन्होने आगे की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 1929 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होने बर्लिन विश्वविद्यालय, जर्मनी से पीएचडी की उपाधि हासिल की। विदेश से पढाई करने के बावजूद उन्होने सदैव भाषा के रुप में हिन्दी को प्राथमिकता दी, उनका ऐसा मानना था कि अंग्रेजी शिक्षित और अशिक्षित जनता के बीच दूरी पैदा करती है। लोहिया जी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। उन्होंने समाचार-पत्र और पत्रिकाओं के संपादकों को कई पत्र लिखे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और वर्ष 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की आधारशिला रखी।
वर्ष 1936 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का पहला सचिव नियुक्त किया। स्वतंत्रता संग्राम में वे कई बार जेल भी गए, उन्होंने दृढ़ता से अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से देश के विभाजन का विरोध किया था। आजादी के बाद भी वे राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में ही अपना योगदान देते रहे। लोहिया ने उन मुद्दों को उठाया जो लंबे समय से राष्ट्र की सफलता में बाधा उत्पन्न कर रहे थे। उन्होंने अपने भाषण और लेखन के माध्यम से जागरूकता पैदा करने, अमीर-गरीब की खाई, जातिगत असमानताओं और स्त्री-पुरुष असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया। देश की दशा और दिशा बदलने के बाद उन्होने देश में अपनी लोकप्रिय पहचान स्थापित की। 57 वर्ष की आयु में 12 अक्टूबर, 1967 को देश का यह महान सूरज सदा के लिए अस्त हो गया।