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डॉ. जितेन्द्र सिंह ने पूर्वोत्तर सांसद मंच के सांसदों से मुलाकात की

Dr jitendra meeting डॉ. जितेन्द्र सिंह ने पूर्वोत्तर सांसद मंच के सांसदों से मुलाकात की

नई दिल्ली। पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेन्द्र सिंह ने आज यहां पूर्वोत्तर सांसद मंच के सांसदों से मुलाकात की जिनमें पूर्वोत्तर राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्य सभा सदस्य और हाल ही में चुने गए लोक सभा के नए सांसद शामिल थे। इस बैठक का उद्देश्य इन सांसदों को इस क्षेत्र में चल रही सरकार की मौजूदा योजनाओं और भविष्य की योजनाओं के बारे में बताना था। पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय में सचिव डॉ. इंदरजीत सिंह, पूर्वोत्तर परिषद् (एनईसी) सचिव राम मुईवा और मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी इस बैठक के दौरान मौजूद थे।
सांसदों का स्वागत करते हुए डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि पूर्वोत्तर के लोगों की जिंदगी में बेहतरी लाने के लिए केंद्र सरकार इस क्षेत्र के राज्यों के चुने हुए जनप्रतिनिधियों के साथ करीबी समन्वय से काम करेगी। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय इस सरकार में क्षेत्र-आधारित एकमात्र मंत्रालय है। पिछले पांच वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इस सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास को उचित प्राथमिकता दी है। उन्होंने कहा कि विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) के लिए जो प्रक्रियाएं निर्धारित की गई थीं उनका सरलीकरण कर दिया गया है ताकि इस क्षेत्र में परियोजनाओं के निष्पादन में तेजी लाई जा सके और अनावश्यक देरी पर काबू पाया जा सके। डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्रियों और दिल्ली में स्थित विभिन्न राज्यों के निवासी आयुक्तों से अनुरोध किया गया है कि वे पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के साथ समन्वय करें और विभिन्न राज्यों की विकास परियोजनाओं के बारे में संबंधित अधिकारियों से जानकारी लेते रहें। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों के विकास के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि से जुड़े मसलों को लेकर वित्त मंत्रालय से बातचीत की जा रही है। डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि इस मंत्रालय की प्रमुख योजना ‘गैर-व्यपगत केंद्रीय संसाधन पूल’ (एनएलसीपीआर) के अंतर्गत पूर्वोत्तर की परियोजनाओं को वित्त देने के पूर्व के 90:10 के चलन में बदलाव लाया गया है। इसमें पहले 90 प्रतिशत धनराशि केंद्र सरकार देती थी और 10 प्रतिशत खर्च संबंधित राज्य को वहन करना होता था। लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है कि नई योजना ‘पूर्वोत्तर विशेष बुनियादी ढांचा विकास योजना’ (एनईएसआईडीएस) के अंतर्गत अब पूरी 100 प्रतिशत धनराशि केंद्र वहन करेगा जिससे संबंधित राज्य सरकार के राजकोष को भारी राहत मिलेगी और राज्य सरकारों द्वारा बार-बार भेजे जाने वाले उन अनुरोधों पर भी विराम लगेगा जिनमें वित्त की कमी की वजह से अपने हिस्से की धनराशि न दे पाने बात की जाती थी। मंत्रिमंडल के एक और ऐतिहासिक फैसले के बारे में बोलते हुए उन्होंने गैर वन क्षेत्रों में उगाए गए बांस को “वृक्ष” की परिभाषा से छूट देने वाले भारतीय वन (संशोधन) अध्यादेश, 2017 का जिक्र किया जिससे आर्थिक उपयोग के लिए बांस को गिराने और पारगमन के लिए परमिट की आवश्यकता से छूट प्रदान की जा सके। उन्होंने सदस्यों को सूचित किया कि जुलाई 2018 में गृह मंत्री को पूर्वोत्तर परिषद् (एनईसी) का पदेन अध्यक्ष बनाकर और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) को परिषद् का उपाध्यक्ष बनाकर एनईसी का पुनर्गठन किया गया था। डॉ. सिंह ने कहा कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह गुवाहाटी में 3 और 4 अगस्त को होने वाले पूर्वोत्तर के पूर्ण अधिवेशन की अध्यक्षता करेंगे।
पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के कामकाज और भूमिका के बारे में प्रस्तुति देते हुए सचिव डॉ. इंदर जीत सिंह ने कहा कि यह मंत्रालय पूर्वोत्तर राज्यों और संबंधित मंत्रालयों के बीच अंतराफलक का कार्य करने की समन्वयकारी भूमिका अदा करता है। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास दरअसल प्रादेशिक क्षेत्राधिकार वाला एकमात्र मंत्रालय है। उन्होंने बताया कि पूर्वोत्तर राज्यों और संबंधित मंत्रालयों में प्रत्येक के लिए मुख्य नोडल अधिकारियों और नोडल अधिकारियों को नियुक्त किया जा चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा सड़क, नागरिक उड्डयन एवं पर्यटन, आजीविका, सूअर पालन, औषधीय व सुगंधित पौधे और स्वास्थ्य व पोषण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए अंतर-मंत्रालयी समितियां गठित की गई हैं।

सचिव महोदय ने सदस्यों को पूर्वोत्तर क्षेत्र की प्रमुख योजनाओं और संगठनों जैसे – पूर्वोत्तर विशेष बुनियादी ढांचा विकास योजना (एनईएसआईडीएस), पहाड़ी क्षेत्र विकास कार्यक्रम (एचआईडीपी), पूर्वोत्तर सड़क क्षेत्र विकास योजना, पूर्वोत्तर ग्रामीण आजीविका परियोजनाएं, पूर्वोत्तर क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबंधन परियोजना, पूर्वोत्तर क्षेत्रीय कृषि मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड, पूर्वोत्तर हस्तशिल्प एवं हस्तकरघा विकास निगम लिमिटेड(एनईएचएचडीसी) की जानकारी दी। उन्होंने सदस्यों को जानकारी दी कि प्रत्येक गैर-छूट वाले मंत्रालय को अपनी सकल बजटीय सहायता (जीबीएस) का 10 प्रतिशत हिस्सा पूर्वोत्तर राज्यों के विकास के लिए आवंटित करना होता है। उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों में रेलवे समेत इन गैर-छूट वाले मंत्रालयों द्वारा 1,83,036 करोड़ रुपये का खर्च उठाया गया है, वहीं 2019-20 में बजट आवंटन 56,530 करोड़ रुपये है।
उपरोक्त के अलावा पूर्वोत्तर के लिए फरवरी 2018 में एक नीति फोरम बनाया गया। इस फोरम की पहली बैठक 10 अप्रैल 2018 को अगरतला में हुई जहां स्थायी आर्थिक विकास के रास्ते में आने वाली बाधाओं की पहचान की गई। उसकी दूसरी बैठक 4 दिसंबर 2018 को गुवाहाटी में हुई जिसमें पूर्वोत्तर में बांस, चाय, डेयरी और पर्यटन के विकास के लिए सुझाव दिए गए।
इन सांसदों को पूर्वोत्तर परिषद् (एनईसी) के बारे में बताया गया जिसकी स्थापना 1971 में की गई थी। शुरुआत से ही एनईसी ने इस क्षेत्र के संपर्क को सुधारने पर ध्यान केंद्रित किया है जो यहां सभी विकास गतिविधियों के लिए एक प्रमुख बाधा बनी रही है। अपने प्रयास में इस परिषद् ने इस क्षेत्र में अंतर-राज्य कनेक्टिविटी में सुधार लाने की दिशा में बड़े तौर पर योगदान दिया है। एनईसी की फंडिंग के साथ कुल 10,911 किलोमीटर लंबाई की सड़कों का निर्माण किया गया है और रख-रखाव के लिए उन्हें संबंधित राज्यों के सुपुर्द कर दिया गया है। एनईसी ने 11 अंतर-राज्य बस टर्मिनल परियोजनाओं, ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित करने की दिशा में काम किया है और क्षेत्र के मौजूदा हवाई अड्डों के बुनियादी ढांचे के उन्नयन / मजबूतीकरण में योगदान दिया है।

इस संवाद के दौरान इन सांसदों ने अपने क्षेत्रों से जुड़े विकास संबंधी मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने इस बात में खुशी जताई कि उनके राज्यों के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा एक प्रमुख नोडल अधिकारी और एक नोडल अधिकारी मनोनीत किया गया है और उन्होंने इच्छा ज़ाहिर की कि उन्हें नियमित आधार पर अपने क्षेत्रों की विकास परियोजनाओं के स्टेटस के बारे में बताया जाता रहे।
इस बैठक में लोकसभा सांसद तापीर गाओ (पूर्व सियांग, अरुणाचल प्रदेश), किरेन रिजिजू (पश्चिमी कामेंग, अरुणाचल), अब्दुल खालेक (बरपेटा, असम), रामेश्वर तेली (डिब्रूगढ़, असम), दिलीप साईकिया (मंगलदोई, असम), गौरव गोगोई (कलियाबोर, असम), तपन कुमार गोगोई (जोरहाट, असम), नबा कुमार सरानिया (कोकराझार, असम), कृपानाथ मल्लाह (करीमगंज, असम), पल्लब लोचन दास (तेजपुर, असम), श्रीमति क्वीन ओझा (गुवाहाटी, असम), राजदीप रॉय (सिलचर, असम), लोर्हो एस फोज (बाहरी मणिपुर), डॉ. राजकुमार रंजन सिंह (आंतरिक मणिपुर), विंसेंट पाला (शिलॉन्ग, मेघालय), कुमारी अगाथा संगमा (तुरा, मेघालय), सी. लालरोसंगा (मिजोरम), तोखेहो येपथोमी (नागालैंड), इंद्रा हांग (सिक्किम), श्रीमति प्रतिमा भौमिक (पश्चिमी त्रिपुरा), रेबती त्रिपुरा (त्रिपुरा पूर्व) सम्मिलित हुए।
इसके साथ ही बैठक में राज्यसभा सांसद मुकुट मिथी (अरुणाचल प्रदेश), भुबनेश्वर कलिता (असम), बीरेन्द्र प्रसाद वैश्य (असम), रिपुन बोरा (असम), श्रीमति रानी नाराह (असम), कामाख्या तासा (असम), बिश्वजीत दैमारी (असम), श्रीमति वानसुक साइम (मेघालय), रोनाल्ड सपा लाउ (मिजोरम), के. जी. केन्ये (नागालैंड), हिशे लाचुंगपा (सिक्किम), श्रीमति झरना दास बैद्य (त्रिपुरा), के. भावानंद सिंह (मणिपुर) भी शामिल हुए।

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