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करें षटतिला एकादशी का व्रत…होगी वैभव की प्राप्ति

नई दिल्ली। नारद मुनि त्रिलोक भ्रमण करते हुए भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुंचे। वहां पहुंच कर उन्होंने वैकुण्ठ पति को प्रणाम करके उनसे अपनी जिज्ञास व्यक्त करते हुए प्रश्न किया कि प्रभु षट्तिला एकादशी की क्या कथा है और इस एकादशी को करने से कैसा पुण्य मिलता है।

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जानिए क्या है कथा?

देवर्षि द्वारा विनित भाव से इस प्रकार प्रश्न किये जाने पर लक्ष्मीपति भगवान विष्णु ने उन्हें इसके पीछे की कथा सुनाई। उन्होंने कहा, प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मणी रहती थी। ब्राह्मणी मुझमें बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति रखती थी। यह स्त्री मेरे निमित्त सभी व्रत रखती थी। एक बार इसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी आराधना की। व्रत के प्रभाव से स्त्री का शरीर तो शुद्ध तो हो गया परंतु यह स्त्री कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी अत: मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ड में रहकर भी अतृप्त रहेगी इसलिए मैं स्वयं एक दिन भिक्षा लेने पहुंच गया।

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स्त्री से जब मैंने भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया। कुछ दिनों पश्चात वह स्त्री भी देह त्याग कर मेरे लोक में आ गयी। यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देखकर वह स्त्री घबराकर मेरे समीप आई और बोली की मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली है। तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है।

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मैंने फिर उस स्त्री से बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब वे आपको षट्तिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं। स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से ब्रह्मणी ने षट्तिला एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गयी। इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्न दान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।

ऐसे रखें व्रत:-

व्रत विधान के विषय में जो पुलस्य ऋषि ने दलभ्य ऋषि को बताया वह यहां प्रस्तुत है। ऋषि कहते हैं माघ का महीना पवित्र और पावन होता है इस मास में व्रत और तप का बड़ा ही महत्व है। इस माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षट्तिला कहते हैं। षट्तिला एकादशी के दिन मनुष्य को भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखना चाहिए। व्रत करने वालों को गंध, पुष्प, धूप दीप, ताम्बूल सहित विष्णु भगवान की षोड्षोपचार से पूजन करना चाहिए। उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाना चाहिए। रात्रि के समय तिल से 108 बार ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा इस मंत्र से हवन करना चाहिए।

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